सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और अयोध्या में राम मंदिर बन गया। 22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा समारोह होगा। राम मंदिर की बस इतनी सी कहानी नहीं है। इस राम मंदिर की नींव में चांदी की ईंट रखी गई तो हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि उसकी नींव में सैकड़ों कारसेवकों के रक्त की बंदे भी शामिल हैं। वो रक्त जो उन्होंने इस मंदिर के लिए अपने रामलला के लिए चढ़ाया था। कार सेवकों ने 2 नवंबर 1990 के दिन राम मंदिर के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी। अयोध्या सीरिज के पहले, दूसरे और तीसरे भाग में हमने आपको 1949 में रामलला के प्रकट होने और तब के प्रधानमंत्री नेहरू व फैजाबाद के डीएम केके नायर के बीच मूर्ति हटाने को लेकर हुए टकराव की कहानी व कोर्ट के आदेश के बाद राजीव गांधी द्वारा ताला खुलावाने व राम मंदिर विवाद सुलझाने के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्लान की कहानी बताई। अब आपको कारसेवकों पर गोली चलवा कर सपा नेता के मुल्ला मुलायम बनने की कहानी बताते हैं।
अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता
2 नवंबर 1990 के दिन क्या हुआ था। ये कहानी शुरू होती है जो दिन पहले 30 अक्टूबर 1990 से जब हिंदू संगठनों ने अयोध्या में कारसेवा का ऐलान किया था। इससे पहले 23 अक्टूबर को लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रोककर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन इससे कारसेवकों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई थी। लाखों की तादाद में कारसेवक अयोध्या पहुंच रहे थे। वहीं यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने ऐलान किया था कि बाबरी मस्जिद पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। इसी तनाव के बीच अयोध्या में 30 अक्टूबर का सूरज उगता है। पूरे अयोध्या में कर्फ्यू लगा हुआ था। पुलिस ने विवादित ढांचे के डेढ़ किलोमीटर के दायरे में बैरिकेटिंग कर दी थी। लेकिन तब भी हजारों कार सेवक हनुमान गढ़ी पहुंच गए। जो बाबरी ढांचे के एक दम करीब था। मुलायम सिंह यादव का फरमान था कि किसी भी कीमत पर बाबरी मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।
वानर ने थाम रखी थी ध्वजा
एक सरकारी बस को साधु लेकर ड्राइव करने लगा वो पहले ड्राइवर था। वो ड्राइव करता हुआ सारी बैरिकेडिंग को लेते हुए राम जन्मभूमि तक पहुंच गया। जहां कहा जाता था कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता वहां भगवा ध्वज फहरा दिया। कहा जाता है कि फायरिंग करने के बाद जब वहां कोई नहीं था तो हनुमान जी के प्रतीक माने जाने वाले वानर के ध्वजा को पकड़कर बैठने की एक बेहद ही दिलचस्प तस्वीर ने तब खूब सुर्खियां बटोरी थी।
खून से लाल हो उठा सरयू का पानी
पुलिस पहले तो लोगों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ती रही। कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई थी। पहली बार 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों पर चली गोलियों में 5 लोगों की मौत हुई थीं। इस गोलीकांड के दो दिनों बाद ही 2 नवंबर को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, जो बाबरी मस्जिद के बिल्कुल करीब था। प्रशासन उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था, लेकिन 30 अक्टूबर को मारे गए कारसेवकों के चलते लोग गुस्से से भरे थे। हनुमान गढ़ी के सामने लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे। पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें करीब ढेड़ दर्जन लोगों की मौत हो गई। ये सरकारी आंकड़ा है।