उज्जैन. बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में पितृपक्ष पर क्षिप्रा नदी के घाट पर भक्तों का मेला लगा है. यहां देश-विदेश से लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कराने के लिए पहुंच रहे हैं. इसके साथ ही जो लोग उज्जैन पहुंच कर तर्पण नहीं कर सकते. उनके लिए ऑनलाइन की सुविधा भी की गई है. इसके साथ ही यहां के पुरोहितों के पास श्राद्ध कराने आए लोगों की 150 साल पुरानी वंशावली भी रहती है.
उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे के सिद्धवट घाट पर कर्मकांड करने वाले पंडित ने बताया कि 16 श्राद्ध में पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. उज्जैन के गया कोटा पर भी पूजन पाठ किया जाता है. साथ ही रामघाट पर भी तर्पण पूजन-पाठ किया जाता है. उन्होंने कहा कि भगवान राम ने वनवास के दौरान राजा दशरथ का पिंडदान तर्पण उज्जैन में करवाया था. इसके अलावा माता पार्वती ने सिद्धवट घाट पर वटवृक्ष लगाया था.
150 साल पुरानी वंशावली
उज्जैन में पंडे-पुजारियों के पास लोगों के परिवार का 150 साल पुराना रिकॉर्ड भी मिल जाता है. लोगों को सिर्फ अपनी जाति और गोत्र बताना होता है. उसके बाद पंडे आपके बुजुर्गों के नाम बता देते हैं. यहां के पंडे पुजारियों के पास यहां श्राद्ध कराने आने वालों की वंशावली रहती है. इस साल 29 सितंबर से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हुई थी. जो कि 14 अक्टूबर तक रहेगी. उज्जैन में राम घाट, सिद्धवट, गया कोटा में पिंडदान-तर्पण और श्राद्ध के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है. यहां लोग पूर्वजों की शांति के लिए जल-दूध से तर्पण और पिंडदान करते हैं. शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है.
सिध्दवट प्रेत-पिशाच की मुक्ति का धाम
उज्जैन पंडित सोनू पंड्या ने बताया कि सतयुग से ही तर्पण श्राद्ध के लिए उज्जैन सिद्ध माना जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. जब भगवान भोलेनाथ की सेना भूत-प्रेत पिशाच ने महाकाल से अपना मुक्ति का स्थल मांगा, तो उनके आशीष से मुक्ति का स्थल सिद्धवट क्षेत्र दिया गया था. तब से सिद्धवट को प्रेत पिशाच की मुक्ति के लिए प्रेत शिला के रूप में जाना जाता है. उन्होंने बताया कि स्कंद पुराण के अनुसार भगवान राम-सीता और लक्ष्मण साथ में इस नगर से गुजरे थे, तब उन्होंने अपने मृत पिता दशरथ जी के लिए यहां पर तर्पण श्राद्ध किया था.
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FIRST PUBLISHED : October 3, 2023, 15:34 IST