Uttarakhand UCC: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक पास हो गया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य विधानसभा में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पेश किया था, जिसे ध्वनि मत से मंजूरी मिली. अब उत्तराखंड, देश का पहला राज्य बन गया है जहां समान नागरिक संहिता विधेयक (Uniform Civil Code) है. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना पी.देसाई के नेतृत्व में राज्य द्वारा नियुक्त समिति ने 2 फरवरी को अपना ड्राफ्ट सौंपा था.
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) कानून लागू होने के बाद राज्य में अलग-अलग धर्म के लोगों के लिए विवाह, विरासत, तलाक और गोद लेने जैसे मुद्दे एक समान कानून से नियंत्रित होंगे. आपको बता दें कि यूसीसी, उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में से एक था. कयास लग रहे हैं कि इसी तरह के विधेयक जल्द ही गुजरात और असम विधानसभा में भी रखे जा सकते हैं.
भारत के संविधान में कैसे आई समान नागरिक संहिता (UCC) की बात? संविधान सभा में इस बारे में क्या बात हुई थी. कौन-कौन पक्ष में था और कौन विपक्ष में? यूनिफॉर्म सिविल कोड पर डॉ. आंबेडकर की क्या राय थी? जानिये इस Explainer में…
UCC पर क्या कहता है भारत का संविधान?
समान नागरिक संहिता (UCC) को पारित करने का वादा भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 (Article 44 of Indian Constitution) से उपजा है. इस अनुच्छेद में कहा गया गया है कि, “राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा…” इस अनुच्छेद को संविधान सभा द्वारा 23 नवंबर, 1948 को एक जोरदार बहस के बाद अपनाया गया था. संविधान सभा में यूसीसी के पक्ष और विपक्ष में जोरदार तर्क रखे गए थे.
कौन-कौन था UCC के विरोध में?
मुस्लिम लीग के नेता और विधानसभा सदस्य मोहम्मद इस्माइल खान (Mohammad Ismail Khan) ने मसौदा संविधान के अनुच्छेद 35 (जो बाद में अनुच्छेद 44 बन गया) को में संशोधन का सुझाव देते हुए बहस की शुरुआत की. उन्होंने जोर दिया कि इस प्रावधान में यह बात भी शामिल होनी चाहिए कि ”कोई भी समूह, वर्ग या लोगों का समुदाय अपने निजी कानून को छोड़ने के लिए बाध्य नहीं होगा, यदि उसके पास ऐसा कोई कानून है…” इस्माइल (Mohammad Ismail Khan) ने तर्क दिया कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को लंबे समय से चली आ रही धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि यह देश में असंतोष पैदा कर सकता है और सद्भाव को बिगाड़ सकता है.
मुस्लिम लीग के कौन से नेता अड़ गए थे?
बी पोकर साहिब बहादुर ने भी इस्माइल द्वारा सुझाए गए संशोधन के पक्ष में तर्क देते कहा, “अगर यह (संविधान सभा) जैसी कोई संस्था धार्मिक अधिकारों और प्रथाओं में हस्तक्षेप करती है, तो यह अत्याचार होगा…” मुस्लिम लीग के एक और नेता नजीरुद्दीन अहमद (Naziruddin Ahmad) ने भी एक ऐसा ही प्रस्ताव रखा- “बशर्ते किसी भी समुदाय का व्यक्तिगत कानून, जिसे क़ानून द्वारा गारंटी दी गई है, उसमें समुदाय की मंजूरी के बिना किसी भी सूरत में कोई बदलाव नहीं होगा…”
अहमद ने तर्क दिया कि यूसीसी, मसौदा संविधान के अनुच्छेद 19 (जो बाद में अनुच्छेद 25 बन गया) के तहत धर्म की स्वतंत्रता के साथ टकराव होगा.
पक्ष में क्या तर्क रखे गए थे?
कांग्रेस सदस्य और संविधान सभा मसौदा समिति के सदस्य केएम मुंशी ने इस विचार का विरोध किया कि यूसीसी अत्याचारी है. उन्होंने कहा कि राज्य को धार्मिक आचरण में हस्तक्षेप न करने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन कुछ मामलों को धर्मनिरपेक्ष कानून द्वारा शासित किया जाना चाहिए, न कि धर्म द्वारा. मुंशी ने तर्क दिया कि यदि विरासत और उत्तराधिकार जैसे मामलों को व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों से मैनेज किया जाता है, तो मौलिक अधिकार के बावजूद महिलाओं को कभी भी बराबरी का दर्जा नहीं मिल सकेगा.
संविधान मसौदा समिति के एक अन्य सदस्य, अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर ने भी इस धारणा का पुरजोर विरोध किया कि यूसीसी असंतोष और वैमनस्य का कारण बनेगा. उन्होंने कहा, यूसीसी का उद्देश्य समुदायों के बीच मतभेद को हटाकर एकता और सौहार्द स्थापित करना है.
UCC पर क्या थी डॉ. बीआर आंबेडकर की राय?
संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर आंबेडकर यूसीसी के पक्ष में थे. उन्होंने कहा कि इस बात पर बहस करने में बहुत देर हो चुकी है कि यूसीसी को लागू किया जाना चाहिए या नहीं, क्योंकि काफी हद तक इसे पहले ही लागू किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि देश में विवाह और विरासत जैसी चुनिंदा चीजों को छोड़कर, यूसीसी पहले से लागू है. हालांकि, आंबेडकर ने संबंधित सदस्यों को कुछ आश्वासन दिए. जैसे- अनुच्छेद की भाषा पर उन्होंने कहा कि “राज्य प्रयास करेगा…” ऐसा लिखा जाएगा. इससे जो समुदाय इसको लेकर चिंतित हैं, उनके हितों की रक्षा की जा सकेगी.
डॉ. आंबेडकर ने तर्क दिया कि अनुच्छेद में ऐसा शब्द इस्तेमाल करने से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि यूसीसी को सभी नागरिकों पर लागू नहीं किया जा सकता है, और यह केवल उन लोगों पर लागू हो सकता है जो इस कोड से बंधे होने के लिए तैयार हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 10, 2024, 15:28 IST