कर्नाटक चुनाव के बाद दक्षिण भारत के इकलौते राज्य तेलंगाना में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। तेलंगाना विधानसभा चुनाव में एक रोचक मुकाबले की उम्मीद की जा सकती है। बीजेपी और कांग्रेस की तैयारी से उम्मीद की जा सकती है कि राज्य में त्रिकोणात्मक संघर्ष की स्थिति बन सकती है।
कर्नाटक चुनाव के बाद दक्षिण भारत के इकलौते राज्य तेलंगाना में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। तेलंगाना के चुनाव इस लिहाज से और भी ज्यादा अहम हो जाते हैं, क्योंकि भाजपा ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीत सभी को चौंकाया था। वहीं साल 2014 में 10% के मुकाबले BJP ने 2019 में 19.45% वोट हासिल किए थे। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि तेलंगाना में सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति का मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में से किससे होने जा रहा है।
हालांकि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद तेलंगाना के सीएम केसीआर ने कांग्रेस को अपना प्रतिद्वंद्वी माना है। लेकिन राजनीति में जो बात कही जाती है, उसके असल मायने अलग होते हैं। जिस तरीके से देशव्यापी स्तर पर गैर-BJP सियासत को KCR ने मजबूत करने की पूरी शिद्दत से कोशिश पिछले दिनों दिखाई है। उससे यह साफ पता चलता है कि केसीआर BJP को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। हालांकि केसीआर कांग्रेस को प्रतिद्वंती बोलते हैं, लेकिन प्रतिद्वंदी बीजेपी को मानते हैं।
बता दें कि साल 2016 में हुए हैदराबाद नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने AIMIM को पीछे छोड़ दिया था। BJP ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पर 48 सीटें हासिल करते हुए चार सीटों की बढ़त ले ली थी। BJP से महज TRS 7 सीट आगे थी। ऐसे में संदेश यही गया था कि तेलंगाना की फिजा धीरे-धीरे बदल रही है। कर्नाटक के बाद तेलंगाना दूसरा ऐसा राज्य हैं, जहां पर भाजपा का कमल नहीं खिला। लेकिन बीजेपी राज्य में अपनी मतबूत जड़ें जमाती नजर आ रही है।
कर्नाटक हार का तेलंगाना पर फर्क
कर्नाटक में बीजेपी की हार से तेलंगाना की सियासत पर कितना क्या असर पड़ा। यह जानने में सभी को दिलचस्पी है। कांग्रेस सांसद और प्रदेश अध्यक्ष A रेवनाथ रेड्डी का दावा है कि कर्नाटक में जनता ने जिस तरह से बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया है। उसी तरह से तेलंगाना की जनता TRS को भी सत्ता से बेदखल करेगी। कांग्रेस का मानना है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का मुकाबला होना है। ऐसे में तेलंगाना की जनता राष्ट्रीय राजनीति को ध्यान में रखकर मतदान करेगी।
तेलंगाना राज्य में 199 विधानसभा सीटें हैं। जिनमें से 19 सीटें SC और 12 सीटें ST वर्ग के लिए सुरक्षित हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य में 73.37 फीसदी वोट पड़े थे। इस दौरान 2 करोड़ 5 लाख 99 हजार 739 लोगों ने मतदान किया था। वहीं साल 2018 में TRS के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 46.87% मत मिले थे। जिसके बाद टीआरएस को 88 सीटें हासिल हुई थीं। टीआरएस प्रमुख केसीआर ने चुनाव के बाद यह दावा किया था कि इस बाद उनकी पार्टी 95 से 110 सीटें मिलेंगी।
2023 में बीजेपी का जादू रहेगा बरकरार
तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी। कांग्रेस को 28.43% वोट हासिल हुए थे और उसे 19 सीटें मिली थीं। जबकि BJP ने 6.98% वोट हासिल किए थे और एक सीट पर जीत मिली थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कहानी पलट दी थी। बीजेपी ने करीब 20 फीसदी वोट लाकर जता दिया था वह उभरती हुई ऐसी ताकत है, जो सरकार बनाने का दम रखती है। ऐसे में सवाल है क्या साल 2023 में बीजेपी का वह दमखम बरकरार रहने वाला है।
साल 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान कई अन्य पार्टियों ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। जिनमें से CPI-CPM 0.84%, NCP 0.14%, AIMIM 2.71%, BSP 2.06% और TDP 3.51% शामिल हैं। इस चुनाव में आप पार्टी भी उतरी थी। आप को 0.06% वोट मिले थे। हालांकि लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव टीआऱएस दल अन्य दलों से काफी आगे हैं।
हो सकता है त्रिकोणात्मक संघर्ष
कर्नाटक के प्रभाव से निकलकर अगर बीजेपी ने राज्य में अपनी पैठ को मजबूत करने के लिए प्रयास किया तो इससे त्रिकोणात्मक संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सीएम केसीआर सीधे तौर पर कांग्रेस को अपना प्रतिद्वंती बता रहे हैं। वहीं आंकड़े भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं। कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस के भी हौंसले बुलंद हैं। वहीं कांग्रेस तेलंगाना में अपनी सरकार बनाने के सपने देख रही है। TRS पार्टी के लिए भी यह स्थिति अनुकूल हो सकती है, अगर वह अपना वोट बैंक संभाल ले। क्योंकि BRS के वोट बैंक के बंटने का सीधा फायदा बीजेपी और कांग्रेस को होगा। ऐसे में तेलंगाना विधानसभा चुनाव में एक रोचक मुकाबले की उम्मीद की जा सकती है।