तेलंगाना में इस साल के अंत तक चुनाव होने हैं। ऐसे में कर्नाटक के बाद अब मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा तेलंगाना में भी जोर पकड़ने लगा है। बता दें कि तेलंगाना के अस्तित्व में आने के कई साल पहले साल 1960 में मुस्लिमों को आरक्षण के दायरे में लाने का पहला प्रस्ताव लाया गया।
तेलंगाना में इस साल के अंत तक चुनाव होने हैं। ऐसे में कर्नाटक के बाद अब मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा तेलंगाना में भी जोर पकड़ने लगा है। माना जा रहा है कि तेलंगाना चुनाव में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला है। बता दें कि कुछ ही महीने पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया था कि तेलंगाना में बीजेपी की सरकार बनी तो राज्य में मुसलमानों को मिलने वाले आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा।
तेलंगाना में मु्स्लिम आरक्षण का मुद्दा
जिसके बाद अब मुस्लिम आरक्षण अब तेलंगाना में भी मुद्दा बन गया है। केंद्रीय मंत्री शाह ने हैदराबाद की एक रैली के दौरान राज्य के 4% मुस्लिम कोटे को असंवैधानिक बताया था। उन्होंने कहा था कि राज्य में भाजपा की सरकार बनने से पर इस आरक्षण को खत्म किया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने यह सवाल भी किया था कि सत्तारूढ़ बीआरएस, कांग्रेस और AIMIM को आरक्षण सूची में कब और किस आधार पर लेकर आई। आरक्षण क्या धर्म पर आधारित है और क्या इस आऱक्षण से सभी मुस्लिमों को फायदा होता है। क्या तेलंगाना के पिछड़े मुसलमानों का इन आरक्षणों से उत्थान हुआ है और राजनैतिक दल इससे कैसे निपट रहे हैं।
कब शुरू हुआ यह मुद्दा
बता दें कि तेलंगाना के अस्तित्व में आने के कई साल पहले साल 1960 में मुस्लिमों को आरक्षण के दायरे में लाने का पहला प्रस्ताव लाया गया। जिसके बाद आंध्र प्रदेश में ओबीसी के पिछड़ेपन को लेकर संयुक्त अध्ययन किया जा रहा था। इस दौरान पाया गया कि अनुसूचित जाति की तुलना में धोबी और बुनकर शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर अधिक पिछड़े थे। जिस कारण तत्कालीन सरकार ने उस दौरान से उन्हें पिछड़े वर्गों में शामिल करना शुरू कर दिया था।
हालांकि मुस्लिमों को आरक्षण के लिए काफी लंबा इंतजार करना पड़ा था। आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कोटला विजया भास्कर रेड्डी ने साल 1994 में एक सरकारी आदेश जारी करते हुए मुस्लिमों की दो कैटेगिरी जैसे धोबी और बुनकर को ओबीसी की लिस्ट में शामिल किया गया। जिसके बाद कांग्रेस की सरकार गिरी और राज्य में टीडीपी की सरकार बनीं। लगभग नौ सालों तक टीडीपी पुट्टास्वामी आयोग की शर्तों का विस्तार करती रही। वहीं साल 2004 में एक बार फिर कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद मुस्लिमों को ओबीसी मानकर 5वीं श्रेणी बनाकर उन्हें 5 फीसदी कोटा दिए जाने का आदेश जारी किया गया।