देश के कर्मठ, नामी व्यवसायी द्वारा सप्ताह में सत्तर घंटे काम करने की बात पर बातें…
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भावना, सदभावना, दुर्भावना (व्यंग्य)
भौतिक युग में सम्प्रेषण इतना बढ़ गया है कि साथ साथ बैठे दो लोगों का बतियाना…
पहले चालान के क्या कहने (व्यंग्य)
पिछली सदी की बात करें तो कोई वाहन चालक अनजाने में या जानबूझकर ट्रैफिक नियमों का…
पुस्तक मेले के बारे उदगार (व्यंग्य)
लेखकों, किताबों, प्रकाशकों व जुगाड़ुओं का मेला फिर आ गया। फेसबुक, व्हाट्सेप, अखबार और एंटीसोशल मीडिया…
जब हम गए विदेश (व्यंग्य)
भारतीय जीवन से विदेश का आकर्षण कभी खत्म नहीं होता। आजकल तो जो हिन्दुस्तानी बंदा विदेश…
मोहमाया का कार्ड (व्यंग्य)
ढोंगपुर के उपभोक्तावादी साम्राज्य में, दिखावट की सबसे मंत्रमुग्ध वस्तुओं में से एक है उभरा हुआ…
बजट महाराज आयो रे (व्यंग्य)
बजटजी आकर्षक महाराज होते हैं जिनके आने से पहले आम जनता रंगीन ख़्वाब देखती हैं और…