सरकार ने उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ होने के बारे में संसद की एक समिति की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है किंतु यह भी ध्यान दिलाया है कि शीर्ष अदालत इस विचार को निरंतर खारिज करती रही है और यह मामला अदालत में विचाराधीन है।
कानून एवं कार्मिक मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने पूर्व में ‘‘न्यायिक प्रक्रिया एवं उसमें सुधार’’ शीर्षक से एक रिपोर्ट दी थी। समिति ने इसकी सिफारिशों की क्रियान्वयन रिपोर्ट में कहा है कि उसकी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है।
यह कार्रवाई रिपोर्ट बुधवार को संसद में पेश की गयी।
समिति ने पूर्व में इस बात का संज्ञान लिया था कि उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की मांग ‘‘न्याय तक पहुंच के लिए’’ है, जो संविधान के तहत मौलिक अधिकार है।
लंबे समय से यह मांग रही है कि सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ हो ताकि न्याय तक लोगों की पहुंच हो सके।
समिति ने कहा कि इस कदम से एक सकारात्मक बात यह होगी कि न्यायपालिका पर मुकदमों का दबाव कम होगा तथा आम आदमी के लिए, मुकदमे पर होने वाला खर्च कम होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति अपने इस मत पर अभी तक कायम है कि उच्चतम न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 130 का प्रयोग कर देश में पांच या छह स्थानों पर पीठ बना सकती है।
सरकार ने कहा कि इस मामले को दो बार अटार्नी जनरल.. जी ई वाहनवती एवं मुकुल रोहतगी के पास भेजा गया। दोनों ने ही इस प्रस्ताव के विरूद्ध सुझाव दिया।
इस मामले को उच्चतम न्यायालय द्वारा 2016 में संविधान पीठ के पास भेजा था। यह मामला वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है।
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