Success Story: एक बहुत पुरानी कहावत है ‘पूत कपूत तो का धन संचय, पूत सपूत तो का धन संचय’. यह कहावत सटीक बैठती है यश कटारिया पर. महज 29 वर्ष की उम्र में यश 400 करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनी संभाल रहे हैं. कभी मध्यप्रदेश के रतलाम जैसी छोटी जगह से शुरू होने वाली इस कंपनी को यश ने देश ही नहीं दुनिया के कई देशों तक पहुंचाया है. कटारिया ग्रुप की स्थापना उनके दादाजी ने की थी, लेकिन यश ने अपनी पढ़ाई लिखाई के बाद यह तय किया कि वह अपने पुरखों के कारोबार को आगे ले जाएंगे और वह इस काम में बखूबी जुट गए. आज उनकी अलग-अलग सेक्टर में कई कंपनियां हैं. टेक्नोलॉजी से लेकर रियल एस्टेट, एजुकेशन समेत कई सेक्टर में कटारिया ग्रुप काम कर रहा है.
यश ने रतलाम से की पढ़ाई
यश का जन्म मध्य प्रदेश के रतलाम में ही हुआ. उनकी शुरूआती पढ़ाई लिखाई यहीं हुई. आमतौर पर यह धारणा रहती है कि बिजनेस परिवार में जन्म लेने पर पढ़ाई को तवज्जो नहीं दिया जाता, लेकिन उनके परिवार में पढ़ाई लिखाई को लेकर काफी जागरूकता थी, लिहाजा वह भी मन लगाकर पढ़ाई करते थे. यश बताते हैं कि शुरूआती पढ़ाई के बाद वह ग्रेजुएशन के लिए सिंगापुर चले गए. जहां उन्होंने बैचलर ऑफ अकाउंटिंग व फाइनेंस का कोर्स किया. यश कहते हैं कि उनके मन में यह कभी नहीं आया कि वह बिजनेस क्लास फैमिली है, तो पढ़ लिखकर क्या होगा, बल्कि उन्होंने आगे बढ़कर पढ़ने की सोची. लिहाजा ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद वह मास्टर का कोर्स करने के लिए लंदन चले गए, जहां उन्होंने मार्केटिंग मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री किया.
यश ने चुना ये विकल्प
यश बताते हैं कि उनके पास दो विकल्प थे, या तो वह कोर्स करने के बाद किसी बड़ी कंपनी में नौकरी करते या फिर अपने पुस्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाते, लिहाजा उन्होंने दूसरा वाला विकल्प चुना. अपने घरेलू कारोबार को आगे बढ़ाने का प्लान किया. जब वह कटारिया ग्रुप के काम को देखने आए तो उस समय ग्रुप का उतना विस्तार नहीं हुआ था. यश ने अपनी प्लानिंग और नए आइडियाज के बदौलत रियल एस्टेट से लेकर ज्वैलरी टेक्नोलॉजी के कारोबार को नई ऊंचाई दी. यश कहते हैं कि कोई सोच नहीं सकता था कि परंपरागत कारोबार करने वाली कोई कंपनी ज्वैलरी और टेक्नोलॉजी में भी अच्छा काम कर पाएगी, हालांकि इसके लिए उन्हें काफी मेहनत भी करनी पड़ी.
कैसे हुई पढ़ाई लिखाई
यश कहते हैं कि जब वह भारत से सिंगापुर पढ़ाई करने गए, तो काफी परेशानी हुई, क्योंकि घर छोड़ने के बाद विदेश जाकर पढ़ना उतना आसान नहीं होता. विदेश जाकर पढ़ाई करने वालों को यश सलाह देते हैं कि उन्हें इंग्लिश स्पीकिंग पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इंडिया से बाहर जाने के बाद सबसे अधिक इसी की जरूरत होती है. कोर्स के दौरान चीजों को समझने के लिए आप उन बच्चों या टीचर्स के संपर्क में रहे जो आपको पढ़ाते हैं.
कैसे हुई शुरूआत
यश बताते हैं कि वर्ष 1971 में उनके दादाजी ने मध्यप्रदेश के रतलाम से स्टील वायर के प्रोडक्शन की कंपनी शुरू की. जिसके बाद कटारिया परिवार इसी कारोबार में लग गया. स्टील वायर के बनाने से लेकर इसकी मार्केटिंग करने तक का पूरा काम कटारिया परिवार के लोग ही करते थे. धीरे धीरे यह कंपनी स्टील वायर के साथ साथ केबल्स कंडक्टर, एलआरपीसी स्टेंडस आदि बनाने के कारोबार में भी उतर गई. इसके बाद कंपनी एल्युमिनियम कंडक्टर, रियल एस्टे,ट गोल्ड ज्वैलरी, हवा से बिजली तैयार करने आदि के कारोबार में भी आ गई. इस समूह ने देश में कई फ्लाईओवर,मेट्रो आदि के प्रोजेक्ट भी बनाए.
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FIRST PUBLISHED : March 6, 2024, 12:28 IST