Success Story: दिव्यांग पिता का बेटा बना अफ़सर,फोन से पढ़कर पास की परीक्षा

विकाश पाण्डेय/सतना. आजकल समाज में संसाधनों के अभाववश सरकारी नौकरियों में चयन से वंचित रह जाने की कहानियां खूब सुनी और सुनाई जाती हैं. इन कहानियों को सुनकर मेहनतकश युवा भी हतोत्साहित होते रहते हैं कि बिना शहर में रहे और बिना किसी कोचिंग के वो अफसर नहीं बन सकते, लेकिन इसी माहौल में सामने आती हैं कुछ ऐसी कहानियां जिसमें कुछ लोग बिना संसाधनों के ही अपने हौसले की उड़ान से मंजिल तक का सफ़र तय कर देते हैं.

ग्रामीण परिवेश में पले बढ़े दिव्यांग पिता के बेटे सत्यम ने ना सिर्फ बचपन से अपने 9 सदस्यों के बड़े परिवार की जिम्मेदारी उठाई, बल्कि मोबाइल से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर अफसर बन गए. इतना ही नहीं अब वह अपने क्षेत्र के हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं. सत्यम के पिता हमेशा चिंतित रहते थे कि उनका बेटा परिवार की ज़िम्मेदारियों और संसाधनों के अभाव में उलझकर न रह जाये इसलिये वो बेटे का हौसला बढ़ाते रहते थे. गांव की गलियों से अफ़सर बनकर निकले बेटे ने अपने पिता को सबसे बड़ी प्रेरणा माना है.

ऐसी रही सत्यप्रकाश की प्रारंभिक शिक्षा
सतना जिले के तिहाई (बम्हौरी) गांव के निवासी सत्यप्रकाश के पिता ज्वाला प्रसाद शुक्ला दिव्यांग हैं. इसी कारण सत्यप्रकाश की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई है. 10वीं की पढ़ाई पूरी करने और पारिवारिक कर्त्तव्यों का बोध होने के कारण सत्यम ने सिविल इंजीनियरिंग में इंदौर से डिप्लोमा किया, जिसके बाद एम.ई एनवायरनमेंट से पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद वह 2021 में आयोजित एमपीपीएससी के टेक्निकल ग्रुप की प्रतियोगी परीक्षा का हिस्सा बने और एस.डी.ओ पद के लिए चयनित हुए. जिसके बाद अब जल संसाधन विभाग में अपनी सेवाएं देंगे.

माता -पिता का सपना हुआ पूरा
सत्यम के पिता ज्वाला प्रसाद शुक्ला दिव्यांग हैं और माता श्यामा देवी गृहणी हैं, वह दोनों चाहते थे कि उनका बेटा अधिकारी बने, इसलिए आज जब संघर्षों के बाद बेटा अपने कदमों में खड़ा हुआ हैं तो दोनों काफ़ी खुश हैं. पिता ने बेटे की उपलब्धि पर हर्ष व्यक्त करते हुए अपनी जीवन की साधना को सफल बताया, तो माता बेटे की उपलब्ध पर खुशी के आंसुओं में बेटे के संघर्ष को याद करने लगीं और अब वह दोनों खुश हैं कि उनका बेटा समाज और देश की सेवा में अपना योगदान देगा.

सत्यप्रकाश के कंधे में 6 बहनों की जिम्मेदारियां हैं. ऐसे में बहनों की खुशी का ठिकाना ही नहीं हैं वह काफ़ी खुश हैं. सत्यप्रकाश की बहनों ने कहा कि हमारे पापा तो ख़ुद लाठी और वैसाखी के सहारे चलते थे, लेकिन हमारा भाई अब समाज का सहारा बनेगा.

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