Sheikh Hasina जैसे-तैसे करके Bangladesh Elections तो जीत गईं, मगर उनकी चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने लगातार चौथी बार आम चुनाव में बड़ी जीत हासिल की है। हालांकि वहां का विपक्ष चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है और जिस तरह 40 प्रतिशत से भी कम मतदान हुआ उससे यह प्रदर्शित होता है कि ज्यादातर लोगों की चुनावों में रुचि नहीं थी। इसके अलावा मुख्य विपक्षी दल समेत कई प्रमुख पार्टियों ने चूंकि चुनाव का बहिष्कार किया था इसलिए शेख हसीना लगातार चौथी जीत हासिल करने में सफल रहीं। विपक्ष ने चुनाव परिणामों को खारिज करते हुए मांग की है कि देश में नये सिरे से स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव कराये जाने चाहिए। विपक्ष ने साथ ही प्रधानमंत्री पद से शेख हसीना के इस्तीफे की मांग भी की है लेकिन सत्तारुढ़ पार्टी ने विपक्ष की सभी मांगों को खारिज कर दिया है। वैसे भारत की दृष्टि से देखें तो शेख हसीना का सत्ता में लौटना अच्छा है क्योंकि वह भारत समर्थक हैं जबकि उनकी विपक्षी खालिदा जिया ने अपने कार्यकाल में चीन के साथ करीबी बढ़ा ली थी और उनकी नीतियों के चलते बांग्लादेश में कट्टरपंथी भी हावी हो गये थे। बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने चुनाव परिणामों के बाद ढाका में प्रधानमंत्री शेख हसीना से मुलाकात कर देश की ओर से शुभकामनाएं भी दीं। देखा जाये तो शेख हसीना ने सत्ता में लौटकर नया इतिहास तो रच दिया है लेकिन अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने और लोगों को महंगाई से राहत दिलाने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी।

जहां तक बांग्लादेश के चुनावी परिदृश्य की बात है तो हम आपको बता दें कि छिटपुट हिंसा और मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) तथा उसके सहयोगियों की ओर से चुनाव के बहिष्कार करने के कारण शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के लिए जीत का रास्ता आसान हो गया। शेख हसीना की पार्टी ने 300 सीट वाली संसद में 223 सीट हासिल कीं। एक उम्मीदवार के निधन के कारण 299 सीट पर चुनाव हुये थे। इस सीट पर मतदान बाद में होगा। संसद में मुख्य विपक्षी दल जातीय पार्टी को 11, बांग्लादेश कल्याण पार्टी को एक और स्वतंत्र उम्मीदवारों ने 62 सीट पर जीत दर्ज की है। जातीय समाजतांत्रिक दल और ‘वर्कर्स पार्टी ऑफ बांग्लादेश’ ने एक-एक सीट जीती।

हम आपको बता दें कि बांग्लादेश में जो 27 राजनीतिक दल चुनाव लड़ रहे थे, उनमें विपक्षी जातीय पार्टी भी शामिल है। बाकी सत्तारुढ़ अवामी लीग की अगुवाई वाले गठबंधन के सदस्य हैं जिसे विशेषज्ञों ने ‘‘चुनावी गुट’’ का घटक दल बताया है। देश के निर्वाचन आयोग के अनुसार 42,000 से अधिक मतदान केंद्रों पर मतदान हुआ। चुनाव में 27 राजनीतिक दलों के 1,500 से अधिक उम्मीदवार मैदान में थे और उनके अलावा 436 निर्दलीय उम्मीदवार भी थे। निर्वाचन आयोग के एक प्रवक्ता ने बताया था कि हिंसा की कुछ छिटपुट घटनाओं के अलावा, 300 में से 299 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा। भारत के तीन पर्यवेक्षकों समेत 100 से अधिक विदेशी पर्यवेक्षकों ने 12वें आम चुनाव की निगरानी की। ऐसी ही एक विदेशी पर्यवेक्षक शरमीन मुर्शीद ने बांग्लादेश चुनावों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने पहली बार किसी पार्टी को अपने ही उम्मीदवारों के खिलाफ खड़ा होते देखा है। उन्होंने कहा कि पहली बार विरोधियों को सीटें दी गईं ताकि वे “सच्चा विपक्ष” बन जाएं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ। उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने वालों के लिए 20, 30 या 40 प्रतिशत मतदान कोई मायने नहीं रखता।

वैसे इस जीत से अपने देश की राजनीति में शेख हसीना का कद काफी बढ़ गया है। उन्होंने अपनी पार्टी को तो बड़ी जीत दिलाई ही साथ ही अपनी सीट पर भी बड़े अंतर से चुनाव जीता है। 76 वर्षीय अवामी लीग पार्टी की प्रमुख शेख हसीना ने गोपालगंज-तृतीय सीट पर भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की। संसद सदस्य के रूप में यह उनका आठवां कार्यकाल है। शेख हसीना 2009 से सत्ता पर काबिज हैं और एकतरफा चुनाव में लगातार चौथी बार जीत हासिल की है। अहम बात यह है कि 1991 में लोकतंत्र की बहाली के बाद से ऐसा दूसरी बार है जब सबसे कम मतदान हुआ। फरवरी 1996 के विवादास्पद चुनावों में 26.5 प्रतिशत मतदान हुआ था जो कि बांग्लादेश के इतिहास में सबसे कम है। रविवार के चुनाव में दोपहर तीन बजे तक 27.15 प्रतिशत मतदान हुआ था और शाम चार बजे मतदान प्रक्रिया समाप्त हो गई। निर्वाचन आयोग ने एक घंटे में 13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ कुल मिलाकर लगभग 40 प्रतिशत मतदान का अनुमान जताया था।

इस जीत के साथ, शेख हसीना आजादी के बाद बांग्लादेश में सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाली प्रधानमंत्री बनने की ओर बढ़ रही हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मतदान शुरू होने के तुरंत बाद ढाका सिटी कॉलेज मतदान केंद्र पर अपना वोट डाला था। इस दौरान उनकी बेटी साइमा वाजिद भी उनके साथ थीं। उन्होंने आरोप लगाया था कि विपक्षी बीएनपी-जमात-ए-इस्लामी गठबंधन लोकतंत्र में यकीन नहीं रखता है।” हसीना ने एक सवाल के जवाब में पत्रकारों से कहा कि भारत, बांग्लादेश का ‘‘भरोसेमंद मित्र’’ है। उन्होंने कहा, ‘‘हम बहुत सौभाग्यशाली हैं…भारत हमारा भरोसेमंद मित्र है। मुक्ति संग्राम (1971) के दौरान, 1975 के बाद उन्होंने न केवल हमारा समर्थन किया, जब हमने अपना पूरा परिवार- पिता, मां, भाई, हर कोई (सैन्य तख्तापलट में) खो दिया था और केवल हम दो (हसीना और उनकी छोटी बहन रिहाना) बचे थे…उन्होंने हमें शरण भी दी। इसलिए हम भारत के लोगों को शुभकामनाएं देते हैं।’’ 

हम आपको याद दिला दें कि सैन्य अधिकारियों ने अगस्त 1975 में शेख मुजीबुर रहमान, उनकी पत्नी और उनके तीन बेटों की उनके घर में ही हत्या कर दी थी। उनकी बेटियां हसीना और रिहाना उस हमले में बच गयी थीं, क्योंकि वे विदेश में थीं। यह पूछने पर कि बीएनपी के बहिष्कार के कारण यह चुनाव कितना स्वीकार्य है, इस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी जिम्मेदारी लोगों के प्रति है। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए महत्वपूर्ण यह है कि लोग इस चुनाव को स्वीकार करते हैं या नहीं। इसलिए मैं उनकी (विदेशी मीडिया) स्वीकार्यता की परवाह नहीं करती हूं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आतंकवादी दल क्या कहता है या क्या नहीं कहता है।’’ हसीना ने विपक्ष पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों को भड़काने का आरोप लगाया है, जिसने अक्टूबर के अंत से ढाका को हिलाकर रख दिया है। विरोध प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई है। गत शुक्रवार को एक यात्री ट्रेन में आग लगने से चार लोगों की मौत हो गई थी। मतदान से कुछ दिन पहले कई मतदान केंद्रों, स्कूलों और एक बौद्ध मठ को भी आग लगा दी गई थी। 

हम आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली पार्टी ‘बीएनपी’ ने चुनाव का बहिष्कार किया था और चुनाव के दिन हड़ताल पर चली गयी थी। पार्टी ने मंगलवार से शांतिपूर्ण सार्वजनिक भागीदारी कार्यक्रम के माध्यम से अपने सरकार विरोधी आंदोलन को तेज करने की योजना बनाई है और चुनावों को ‘‘फर्जी’’ करार दिया है। बीएनपी ने मतदाताओं से चुनाव से दूर रहने का आह्वान किया था ताकि इसे “फासीवादी सरकार” के अंत की शुरुआत के रूप में चिह्नित किया जा सके। उल्लेखनीय है कि बीएनपी के गठबंधन ने 2018 के चुनाव में सात सीटें जीती थीं। उसने सत्तारुढ़ दल पर चुनाव को विश्वसनीय बनाने की कोशिश करने के लिए ‘डमी’ स्वतंत्र उम्मीदवारों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है हालांकि अवामी लीग ने इस दावे का खंडन किया है। आलोचकों ने हसीना पर सत्तावाद, मानवाधिकारों के उल्लंघन, स्वतंत्र भाषण पर रोक और असहमति को दबाने का आरोप भी लगाया है।

बहरहाल, जहां तक बांग्लादेश के वर्तमान हालात की बात है तो आपको बता दें कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से ईंधन और खाद्य आयात की कीमतें बढ़ने के बाद से अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो गई है, जिससे बांग्लादेश को पिछले साल 4.7 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर रुख करना पड़ा था।

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