Shaurya Path: Israel-Hamas, Russia-Ukraine, Pakistan, Milan Naval Exercise, Alexei Navalny मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह आप भारत में चल रहे मिलन नौसैन्य अभ्यास, इजइराल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध, रूसी राष्ट्रपति पुतिन और पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक उठापटक से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार- 

प्रश्न-1. भारत ने मिलन नौसैन्य अभ्यास की मेजबानी की जिसमें 50 देश भाग ले रहे हैं। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- यह अभ्यास काफी महत्वपूर्ण है। भारत ने विशाखापत्तनम में लगभग 50 नौसेनाओं की भागीदारी के साथ नौ दिवसीय वृहद नौसैन्य अभ्यास शुरू किया है जोकि लाल सागर में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति पर बढ़ती वैश्विक चिंताओं सहित अस्थिर भू-राजनीतिक माहौल के बीच हो रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, इंडोनेशिया और मलेशिया सहित अन्य देशों की नौसेनाएं ‘मिलन’ अभ्यास के 12वें संस्करण में भाग ले रही हैं, जिसका लक्ष्य समान सोच वाले देशों के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि यह अभ्यास मित्र देशों से 15 युद्धपोतों और एक समुद्री गश्ती विमान के आगमन के साथ शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि भारतीय नौसेना से विमानवाहक पोत विक्रांत और विक्रमादित्य सहित लगभग 20 जहाज और मिग 29के, हल्के लड़ाकू विमान तेजस और पी-8आई लंबी दूरी के समुद्री टोही तथा पनडुब्बी रोधी लड़ाकू विमान सहित लगभग 50 विमान अभ्यास में भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि मिलन एक द्विवार्षिक बहुराष्ट्रीय नौसैनिक अभ्यास है जो भारत की ‘लुक ईस्ट’ नीति के अनुरूप इंडोनेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड की भागीदारी के साथ 1995 में शुरू हुआ था। उन्होंने कहा कि मिलन 2024 का लक्ष्य क्षेत्रीय सहयोग और समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना, भाग लेने वाली नौसेनाओं के बीच अंतर-संचालन और समझ को बढ़ावा देना और सर्वोत्तम परंपराओं एवं विशेषज्ञता को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करना है।

प्रश्न-2. इजराइल और हमास के बीच चल रहा संघर्ष अब किस दिशा में आगे बढ़ रहा है?

उत्तर- संघर्षविराम के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं क्योंकि इजराइली सेना लगातार आगे बढ़ती चली जा रही हैं। उन्होंने कहा कि इस समय स्थिति यह है कि इजरायली बमबारी और जमीनी हमलों के कारण लगभग 1.5 मिलियन फिलिस्तीनी नागरिक वर्तमान में दक्षिणी गाजा शहर राफा में फंसे हुए हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइल ने ताजा हमले में परिवारों और आवासीय परिसरों को निशाना बनाया, जिससे गाजा में कम से कम 103 लोग मारे गए। इसके साथ ही गाजा में मरने वालों की संख्या 29,600 हो गई है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो पिछले साल 7 अक्टूबर को शुरू हुए संघर्ष के बाद से अब तक लगभग 70,000 लोग घायल हो चुके हैं और संपत्ति के नुकसान का तो कोई सही आकलन ही नहीं है क्योंकि चारों ओर मलबे के ढेर ही ढेर नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार इजराइल ने 10 हमलों में परिवारों को निशाना बनाया है जिनमें लोकप्रिय फिलिस्तीनी हास्य अभिनेता महमूद ज़तार का आवास भी शामिल था। बताया जा रहा है कि इन हमलों में कम से कम 160 लोग घायल हुए हैं जिनमें कई गंभीर थे। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि इज़रायली सैन्य हेलीकॉप्टर ने मध्य गाजा के दीर अल-बलाह क्षेत्र में घरों की ओर गोलीबारी की।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गाजा पट्टी में लगातार हमलों से भोजन और पानी की आपूर्ति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की मानवीय एजेंसी ने अपने बयान में कहा है कि पर्याप्त भोजन और पानी की आपूर्ति, साथ ही स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं के बिना, गाजा में अकाल का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि सबसे बुरे हालात महिलाओं और बच्चों के हैं और यह क्षेत्र एक बड़े मानवीय संकट की ओर बढ़ रहा है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा इजराइल जिस तरह वेस्ट बैंक में बस्तियां बसा रहा है वह गलत है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने भी कहा है कि वेस्ट बैंक में नयी इजराइली बस्तियां अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने साफ कहा है कि हमें लगता है कि इससे इजराइल की सुरक्षा मजबूत नहीं बल्कि कमजोर होगी। उन्होंने कहा कि ब्लिंकन का यह बयान तब आया है जब इजराइल के धुर दक्षिणपंथी वित्त मंत्री बेलालेल स्मोटरिच ने बस्तियों में तीन हजार से अधिक मकान बनाने का संकेत दिया था। उन्होंने कहा कि जहां तक इस युद्ध के भविष्य की बात है तो एक चीज साफ है कि गाजा पर इजराइल का दोबारा कब्जा नहीं होना चाहिए। गाजा का आकार कम नहीं किया जाना चाहिए और जो भी योजना सामने आए वह निर्धारित सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वर्तमान में 15 लाख फिलस्तीनी नागरिक दक्षिणी गाजा के शहर रफह में फंसे हुए हैं। इस शहर की मूल आबादी 2,50,000 थी लेकिन यहां अब गाजा की पूरी आबादी के आधे से अधिक लोग हैं। उन्होंने कहा कि अब इस बात की आशंका बढ़ गई है कि रफह पर इजराइल के संभावित जमीनी हमले से नागरिक सीमा पार करके मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप में प्रवेश कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मूल रूप से सुरक्षित क्षेत्र माने जाने वाला रफह को अब इजराइली हवाई हमलों द्वारा भी निशाना बनाया जा रहा है। हिंसा से भाग रहे लोगों के पास जाने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो इजराइल के अलावा मिस्र एकमात्र देश है जिसकी सीमा गाजा से लगती है। हालांकि मिस्र ने इजराइल द्वारा विस्थापित फिलस्तीनी शरणार्थियों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मिस्र के लिए एक और प्रमुख चिंता उसकी सुरक्षा है। यदि फिलस्तीनियों को सिनाई में फिर से बसाया गया, तो यह मिस्र के इस क्षेत्र में प्रतिरोध अभियान शुरू करने के लिए एक नया आधार बना सकता है। यह मिस्र को इजराइल के साथ सैन्य संघर्ष में घसीट सकता है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, मिस्र के राष्ट्रपति हाल के वर्षों में केवल उत्तरी सिनाई में इस्लामी विद्रोहियों पर नकेल कसने में कामयाब रहे हैं और संभवतः इसको लेकर चिंतित हैं कि शरणार्थियों की आमद अस्थिर कर सकती है। मिस्र के राष्ट्रपति का यह भी मानना है कि हमास उनके शासन का विरोध कर सकता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 में एक सैन्य तख्तापलट में राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को अपदस्थ करने के बाद, सिसी शासन ने मुस्लिम ब्रदरहुड पर कार्रवाई की और सभी तरह के असंतोष को दबा दिया था। उन्होंने कहा कि हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वर्ष 2014 और 2016 के बीच, मिस्र की सेना ने गाजा को मिस्र से जोड़ने वाली सुरंगों पर बमबारी की और उसमें पानी भर दिया, साथ ही हमास पर मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ सरकार के खिलाफ मिलीभगत करने का आरोप लगाया था।

प्रश्न-3. रूस-यूक्रेन युद्ध अब किस पड़ाव पर है? अभी और कितना खिंच सकता है यह युद्ध?

उत्तर- यह युद्ध अभी और खिंचने का अंदेशा है क्योंकि कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि लेकिन एक चीज साफ नजर आ रही है कि यूक्रेन अब तेजी के साथ अपने क्षेत्रों को खोता जा रहा है और जिस तरह रूस की सेना का मुकाबला कर पाने की इच्छा भी अब यूक्रेन की सेना नहीं दिखा रही है उससे पश्चिमी देश खासे नाराज हैं इसलिए अब वह मदद में भी आनाकानी करने लगे हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इस युद्ध से जुड़े ताजा अपडेट की बात है तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कहना है कि रूस की 95% परमाणु सेनाओं का आधुनिकीकरण हो चुका है और उनकी वायु सेना ने हाल ही में चार नए सुपरसोनिक परमाणु-सक्षम बमवर्षकों की डिलीवरी ली है। उन्होंने कहा कि पुतिन ने आधुनिक टीयू-160एम परमाणु-सक्षम बमवर्षक पर उड़ान भरने के एक दिन बाद रूस के वार्षिक फादरलैंड डे के अवसर पर जारी एक बयान में यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि रूसी सेना का जोश हाई है और लड़ाकू विमान में यात्रा कर पुतिन ने भी संदेश दे दिया है कि वह अब भी सामने से और पूरे जोश के साथ लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा व्हाइट हाउस ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन में युद्ध और एलेक्सी नवलनी की मौत के लिए रूस के खिलाफ 500 से अधिक प्रतिबंधों की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि हालांकि यह प्रतिबंध शायद ही ज्यादा असर दिखा पाएं क्योंकि अब तक अमेरिका समेत तमाम देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाये हैं लेकिन रूस का काम ठीकठाक चल रहा है और उसकी सेहत पर ज्यादा विपरीत असर नहीं पड़ा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा यूक्रेन का कहना है कि रूस उसके ‘हॉटस्पॉट’ मारिंका पर हमलों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के सशस्त्र बलों ने कहा है कि रूस ने मारिंका शहर पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूर्वी डोनेट्स्क क्षेत्र में हमले तेज कर दिए हैं। यूक्रेनी सेना के प्रवक्ता दिमित्रो लिखोवी ने कहा कि अवदीवका के पतन के बाद मारिंका का क्षेत्र “एक और हॉटस्पॉट” बन गया है। उन्होंने कहा कि मारिंका के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित दो गांवों में रूसी सेना ने 31 बार हमारे सैनिकों की सुरक्षा में सेंध लगाने की कोशिश की। इस बीच, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदमीर जेलेंस्की ने सैन्य सहायता की पश्चिमी आपूर्ति में देरी के कारण मोर्चे पर स्थिति को “बेहद कठिन” बताया है जोकि दर्शा रहा है कि यूक्रेनी खेमे में निराशा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अब, जबकि यूक्रेन रूस की आक्रामकता के खिलाफ खुद को बचाने के तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहा है तो ऐसा लग रहा है कि वह पूरी तरह थक चुका है और टूट चुका है। उन्होंने कहा कि दो साल के भीषण युद्ध में भारी जनहानि हुई है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यूक्रेन की पहले से ही संघर्षरत अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं बल्कि युद्ध की लागत आश्चर्यजनक दर से बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो यूरोपीय संघ द्वारा यूक्रेन को समर्थन के रूप में उपलब्ध कराई गई कुल राशि से यूक्रेन की ज़रूरतें 12 महीनों में डेढ़ गुना बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि यदि यह युद्ध जारी रहता है तो एक चीज साफ दिख रही है कि पश्चिमी देशों का समर्थन भी यूक्रेन को हारने से नहीं रोक पायेगा। उन्होंने कहा कि लगता है कि पुतिन ने टकर कार्लसन के साथ अपने हालिया साक्षात्कार में जिस तरह सभी पश्चिमी और यूरोपीय देशों की हार की भविष्यवाणी की थी वह हकीकत बन सकती है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन की हार पश्चिम के लिए एक बड़ा अपमान होगी। उन्होंने कहा कि रूसी जीत वर्तमान अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भी बड़ा बदलाव लाएगी। उन्होंने कहा कि यूक्रेन को चाहिए कि वह युद्धविराम पर गंभीरता से विचार करे। लड़ाई ख़त्म होने से यूक्रेन को घरेलू स्तर पर रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने का समय मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि एक चीज और है कि पश्चिम की ओर से कीव के लिए सैन्य समर्थन को दोगुना करने के विकल्प का भी परिणाम यूक्रेन की हार के रूप में ही सामने आयेगा। उन्होंने कहा कि फिलहाल जो रिपोर्टें हैं वह दर्शा रही हैं कि रूसी राष्ट्रपति का अब जो वार होने वाला है वह बहुत घातक होने वाला है और उसे झेलने के लिए यूक्रेन बिल्कुल भी तैयार नहीं है। 

प्रश्न-4. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने प्रमुख विरोधी की मौत के बाद दुनियाभर के निशाने पर हैं। अब यह भी कहा जा रहा है कि नेवेलनी की पत्नी पर भी वह कार्रवाई कर सकते हैं क्योंकि वह रूस में लोकतंत्र के लिए आवाज उठा रही हैं?

उत्तर- रूसी राष्ट्रपति को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया उनके लिए क्या कह रही है या क्या सोचती है। उन्होंने कहा कि पुतिन को बस इस बात की चिंता रहती है कि देश पर उनकी सत्ता कायम रहे क्योंकि जब तक सत्ता उनके पास रहेगी तब तक दुनिया में कोई भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उन्होंने कहा कि लेकिन जहां तक लोकतंत्र के प्रति पुतिन की सोच की बात है तो यह दुनियाभर में जगजाहिर हो चुकी है। रूस में चुनाव होते हैं लेकिन उसमें कोई सशक्त विपक्ष ही नहीं होता जोकि दर्शाता है कि वहां कैसे शासन चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन के घोर आलोचक अलेक्सी नवलनी की जिन परिस्थितियों में मौत हुई वह मानवता के लिहाज से भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि नवलनी की मौत हो गयी लेकिन उनका शव अब तक उनके परिजनों को नहीं सौंपा गया है जिसको लेकर उनके परिवार ने गहरी नाराजगी जताई है लेकिन रूस के सत्ताधारियों को देखें तो ऐसा लगता है कि किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि उनकी पत्नी यूलिया नवलनाया के प्रति समर्थन बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि जिस तरह यूलिया अपने पति की लोकतंत्र के समर्थन में लड़ाई को आगे ले जाने की बात कर रही हैं उससे आने वाले दिनों में उनकी मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि यूलिया को सिर्फ रूस में ही नहीं बल्कि विदेशों से भी समर्थन मिल रहा है लेकिन एक बात साफ दिखती है कि जब तक पुतिन की सत्ता पर पकड़ मजबूत है तब तक उनका चुनावी राजनीति में आ पाना मुश्किल होगा।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए लगातार कांटा बने नवलनी की 16 फरवरी 2024 को जेल में जिन परिस्थितियों में मृत्यु हुई शायद ही उसका पूरा सच कभी सामने आ पाये। उन्होंने कहा कि नवनली एक दशक से अधिक समय तक पुतिनवाद विरोध का सबसे सशक्त चेहरा थे और उन्होंने सड़कों पर रूसी अधिनायकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहा कि नवलनी नाम का व्यक्ति मर चुका है, लेकिन जिस आंदोलन को उसने जगाया वह अभी भी बना हुआ है। उन्होंने कहा कि नवलनी 2011 में एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरे थे जब उन्होंने पुतिन की यूनाइटेड रशिया को “बदमाशों और चोरों की पार्टी” करार देकर 2012 के संसदीय चुनाव से पहले एक बड़े राष्ट्रीय विरोध आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने नारे को दर्शाने के लिए मीम बनाने की प्रतियोगिताएं आयोजित कीं और उन मतदाताओं को एकजुट किया जो पुतिन की पार्टी का समर्थन नहीं करते थे लेकिन पुतिन ने वह चुनाव जीत लिया था। लेकिन फिर भी नवलनी के प्रयासों का मतलब था कि एक नया विपक्ष मौजूद था और चुनावी धोखाधड़ी से लड़ने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए तैयार था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि साल 2013 में धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तारी और दोषी ठहराए जाने के बावजूद नवलनी ने उस वर्ष मॉस्को के मेयर पद का चुनाव लड़ा। उस समय नवलनी ने लगभग 30% वोट हासिल किए जोकि उम्मीद से दोगुना थे। उन्होंने कहा कि नवलनी की एक खास बात यह थी कि वह रूसी राजनीति से अलग-थलग पड़े रूसियों को एक साथ लाए और उन्हें सशक्त बनाया। उन्होंने स्थानीय संगठन बनाए, जिन्होंने समर्थन हासिल किया और क्रेमलिन द्वारा उनके रास्ते में रखी गई अंतहीन बाधाओं के बावजूद साइबेरियाई शहरों टॉम्स्क और नोवोसिबिर्स्क में कुछ सफलता पाई।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पुतिन को यह बर्दाश्त नहीं था कि नवलनी मतदाताओं को जागरूक करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नवलनी ने 2018 में एक प्रणाली विकसित की थी जिसे स्मार्ट वोटिंग कहा जाता है। एक ऑनलाइन टूल के माध्यम से नवलनी की टीम रूसियों को चुनाव में किसी भी सुधारवादी उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित करती थी और विशेष रूप से मतदाताओं को पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी को हराने वाले उम्मीदवार को वोट देने के लिए कहती थी। उन्होंने कहा कि विभिन्न शोधों ने दर्शाया है कि इस उपकरण का मतदाताओं पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा और चुनावों में मतदान, विपक्षी वोटों और इससे जुड़े अन्य पहलुओं में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि नवलनी के प्रयासों ने रूसी शासन को परेशान कर दिया और हो सकता है कि 2020 में रूस की घरेलू सुरक्षा एजेंसी, जिसे एफएसबी के नाम से जाना जाता है, ने उनके खिलाफ हत्या के प्रयास का षड़यंत्र रचा हो। उन्होंने कहा कि रिपोर्टों के मुताबिक नवलनी नोविचोक के जहर से केवल इसलिए बच गए थे क्योंकि अंतरराष्ट्रीय दबाव ने शासन को उन्हें इलाज के लिए जर्मनी ले जाने की अनुमति देने के लिए मजबूर किया था। उन्होंने कहा कि अपने ठीक होने के दौरान, नवलनी ने अपनी राजनीतिक सक्रियता को आगे बढ़ाने और शासन की बढ़ती क्रूरता को व्यक्त करने के लिए अपने ऊपर हुए हमले का इस्तेमाल किया। उन्होंने इस पूरे अभियान का पर्दाफाश करने के लिए अपने हमलावर का साक्षात्कार लिया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि फरवरी 2021 में गिरफ्तारी की धमकी के बीच नवलनी की रूस वापसी के बाद सोवियत संघ के पतन के बाद से विपक्षी नेता के समर्थन में सबसे बड़ा सड़क विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों ने कार्यकर्ताओं की एक नई पीढ़ी को प्रेरित किया। उन्होंने सड़कों पर और उसके बाद के वर्षों में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की क्रूरता के नए स्तर को भी चिह्नित किया। उन्होंने कहा कि कई लोगों ने फरवरी के अंत और मार्च 2022 की शुरुआत में युद्ध-विरोधी विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। नवलनी की वापसी से उत्साहित लोगों के अंदर नागरिक जागरूकता उभरने लगी। लोगों ने रैलियों में जाना शुरू कर दिया और राजनीति के बारे में बहुत अधिक रुचि लेने लगे जोकि शायद पुतिन को पसंद नहीं आया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अपनी मृत्यु से पहले नवलनी ने अपने समर्थक कार्यकर्ताओं से कहा था- “सुनो, मुझे आपसे कुछ स्पष्ट बात कहनी है। आपको हार मानने की अनुमति नहीं है। अगर वे मुझे मारने का फैसला करते हैं, तो इसका मतलब है कि हम अविश्वसनीय रूप से मजबूत हैं।” उन्होंने कहा कि यह विचार रूसियों के मन-मस्तिष्क में कौंधते रहेंगे भले इसका आज असर नहीं दिखे लेकिन आने वाले समय में इसका असर जरूर दिखेगा। उन्होंने कहा कि नवलनी की मौत यह भी दर्शाती है कि एलेक्सी नवलनी ने एक लोकतांत्रिक रूस का जो सपना देखा था उसने पुतिन को भीतर तक डरा दिया था। उन्होंने कहा कि एलेक्सी नवलनी रूसी राजनीति में एक बड़ी शख्सियत थे क्योंकि किसी अन्य व्यक्ति ने पुतिन शासन के लिए उनकी तरह का खतरा कभी पैदा नहीं किया।

प्रश्न-5. पाकिस्तान में जो दिखावटी लोकतंत्र था क्या वह भी अब खत्म होने की कगार पर है? क्योंकि सेना के अनुरोधों और चेतावनियों के बावजूद वहां के राजनीतिक दल सरकार गठन के लिए बीच का रास्ता नहीं निकाल पा रहे हैं?

उत्तर- इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान की जनता ने सेना के साथ ही नवाज शरीफ को भी सबक सिखाया है। उन्होंने कहा कि नवाज शरीफ ने अपने तीनों कार्यकाल में सिर्फ अपने परिवार के लिए दौलत कमाने के अलावा कुछ नहीं किया इसीलिए भले सेना ने उन्हें माफ कर दिया हो लेकिन जनता उन्हें माफ नहीं कर पाई है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जिस तरह नवाज शरीफ ने लंदन में बैठे-बैठे अपने भाई शहबाज शरीफ के जरिये जिस तरह पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार को गिरा कर इमरान खान को सेना की मदद से सलाखों के पीछे पहुँचाया उससे जनता बहुत नाराज है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार है जब सेना के उद्देश्यों पर वहां की जनता ने पानी फेर दिया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अब पाकिस्तान में जिस तरह के हालात हैं उसके मुताबिक शहबाज शरीफ का नाम आगे कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि लेकिन यह नवाज शरीफ के राजनीतिक कॅरियर का अंत नहीं है क्योंकि वह अब रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाएंगे। उन्होंने कहा कि यदि सब कुछ योजना के अनुसार हुआ, तो अगले महीने की शुरुआत में छह-दलीय गठबंधन सरकार के सत्ता संभालने की संभावना है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) समेत तीनों दलों में से किसी को भी आठ फरवरी को हुए आम चुनावों में नेशनल असेंबली में बहुमत हासिल करने के लिए आवश्यक सीटें नहीं मिली हैं। इसलिए इनमें से कोई भी दल अकेले सरकार बनाने में सक्षम नहीं है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान में राजनीतिक दलों के बीच इमरान खान को सत्ता से दूर रखने के लिए जो डील हुई है उसके मुताबिक पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) केंद्र में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाने पर सहमत हो गयी है लेकिन उसने अपने शीर्ष नेता आसिफ अली जरदारी के लिए राष्ट्रपति पद मांग लिया है। उन्होंने कहा कि अगर स्थिति में कोई बदलाव नहीं होता है तो देश में पीएमएल-एन पार्टी का प्रधानमंत्री और पीपीपी का राष्ट्रपति देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि पीपीपी अध्यक्ष जरदारी 2008 से 2013 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति डॉ. आरिफ अल्वी इस महीने के अंत तक अपना पद छोड़ने वाले हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चुनावों के साथ ही पाकिस्तान की सेना को वहां की शीर्ष अदालत से भी बड़ा झटका लगा है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने शक्तिशाली सेना की कारोबारी गतिविधियों के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार से यह सुनिश्चित करने का आश्वासन मांगा है कि सशस्त्र बल कारोबार के बजाय केवल रक्षा संबंधी मामलों पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया है कि देश के सभी संस्थानों को अपनी संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मामला पूर्व सीजेपी गुलजार अहमद द्वारा 2021 में शुरू किया गया था जब अदालत का ध्यान कराची में छावनी बोर्ड की भूमि के अवैध उपयोग की ओर आकर्षित किया गया था। उन्होंने कहा कि इस भूमि का अधिग्रहण रणनीतिक उद्देश्यों के लिए किया गया था, लेकिन इसका उपयोग वाणिज्यिक लाभ के लिए किया गया था। उन्होंने कहा कि सेना ने सैन्य भूमि पर ‘मैरिज हॉल’ स्थापित किए हैं जोकि आश्चर्यजनक है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि लेकिन पाकिस्तान में पिक्चर अभी बाकी है क्योंकि वहां की सेना को लगता है कि 1970 जैसे हालात दोबारा पैदा हो सकते हैं जब मुजीबर रहमान को सताया जा रहा था तो जनता उनके साथ खड़ी हो गयी थी और पाकिस्तान का विभाजन हो गया था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सेना को लगता है कि यदि जनता ने विद्रोह किया और इमरान खान का साथ दिया तो कहीं देश का फिर से टुकड़ा ना हो जाये। उन्होंने कहा कि वैसे भी बलूचिस्तान समेत विभिन्न इलाकों में पहले से ही अशांति है और वहां के कई गुट सही मौके की ताक में हैं।

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