Shaurya Path: India-Canada, Russia-Ukraine, IPACC, UAE-Israel, China-Syria संबंधी मुद्दों पर Brigadier Tripathi से बातचीत

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह भारत-कनाडा संबंधों, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सेना प्रमुखों के सम्मेलन, सऊदी अरब और इजराइल के गहराते संबंधों और सीरिया के राष्ट्रपति की चीन यात्रा से संबंधित मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. भारत-कनाडा संबंधों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आप कैसे देखते हैं?

उत्तर- कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने जो कुछ किया है उससे उन्होंने अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार ली है। उन्होंने कहा कि शायद कनाडा के प्रधानमंत्री को पता नहीं कि भारत आज कितनी बड़ी ताकत बन चुका है। उन्होंने कहा कि हमारा कनाडा के साथ मात्र 8.4 बिलियन डॉलर का व्यापार है जोकि कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। इसके प्रभावित होने से भारत को कोई फर्क नहीं पड़ेगा बल्कि कनाडा को ही फर्क पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत से आईटी और बैंकिंग पेशेवर कनाडा में बड़ी संख्या में जाते हैं जिन्होंने उस देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में योगदान दिया है यदि वह नहीं जायेंगे तो कनाडा को ही नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा लगभग साढ़े तीन लाख भारतीय छात्र वहां पढ़ते हैं और अनुमानतः प्रति व्यक्ति छात्र लगभग 12 लाख रुपए सालाना खर्च वहां आता है। यदि वह छात्र वहां से हट जायें तो कनाडा को काफी नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि बहुत से लोगों ने भारतीयों के रहने के लिए जो किराये के घर बनाये हुए हैं वह यदि खाली हो गये तो कनाडा के प्रधानमंत्री के खिलाफ वहां की जनता ही प्रदर्शन पर उतर आयेगी। उन्होंने कहा कि 2015 में खशोगी प्रकरण में कनाडा ने सऊदी अरब के साथ संबंध बिगाड़े थे और राजनयिक संबंध खत्म कर लिये थे। उस समय सऊदी अरब के 15 हजार जो छात्र वहां पढ़ते थे उन्होंने देश को छोड़ दिया था जिससे कनाडा को बड़ा नुकसान हुआ था। उन्होंने कहा कि भारतीयों की संख्या तो काफी है। वहां जितने विदेशी छात्र पढ़ रहे हैं उसमें 40 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय हैं। उन्होंने कहा कि यही नहीं, अब जब जस्टिन ट्रूडो को होश आया तो उन्होंने सऊदी अरब के साथ राजनयिक संबंध दोबारा बहाल कर लिये हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा हमें यह भी देखना चाहिए कि जस्टिन ट्रूडो के पिता भी इसी विचारधारा के थे और उनके कार्यकाल में ही खालिस्तानी गतिविधियां वहां पनपीं। उन्होंने कहा कि कनिष्क विमान घटना के दोषी को बचाने का काम वहां हुआ था, पीड़ितों को न्याय दिलाने की राह में बाधाएं पैदा की गयी थीं, यही नहीं जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कनाडा गयी थीं तो उन्हें कह दिया गया था कि विमान बमकांड के आरोपियों को हम इसलिए नहीं सौंप सकते क्योंकि हमारी उन्हीं देशों के साथ प्रत्यपर्ण संधि है जो ब्रिटिश महारानी को अपना सर्वेसर्वा मानते हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि लेकिन जस्टिन ट्रूडो को एक बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि जब अमेरिका अपने यहां वांछित आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए पाकिस्तान में घुस सकता है तो यह आज का नया भारत भी अपने यहां वांछित अपराधियों या भारत विरोधी गतिविधियों को चलाने वालों को मारने के लिए कहीं भी घुस सकता है। उन्होंने कहा कि हालांकि मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि जो घटनाएं बताई जा रही हैं उसमें भारत का हाथ है लेकिन भारत की ताकत सबको स्पष्ट होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की ओर से तमाम सबूतों को पेश करने के बावजूद कनाडाई प्राधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की और खालिस्तानी गतिविधियों को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बढ़ने दिया साथ ही हरदीप सिंह निज्जर मामले में भारत के साथ कोई सबूत साझा नहीं किया। उन्होंने कहा कि यह सब दर्शाता है कि कनाडा गलत दिशा में जा रहा है इसीलिए फाइव आइज कहे जाने वाले देशों ने भी जस्टिन ट्रूडो का साथ नहीं दिया। उन्होंने कहा कि जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता जिस तरह गिरी है और जिस तरह उनके देश का ही मीडिया और सत्तारुढ़ गठबंधन के सांसदों के अलावा विपक्षी सांसदों की ओर से प्रधानमंत्री को घेरा जा रहा है उससे उन्हें समय पर ही चेत जाना चाहिए।

प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं?

उत्तर- युद्ध स्थिर अवस्था में ही है क्योंकि सैन्य और आर्थिक मदद मांगने के लिए यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की विभिन्न देशों के दौरे पर हैं तो दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उत्तर कोरिया, चीन और अन्य देशों से हथियार जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह युद्ध ऐसी स्थिति में पहुँच गया है जहां दोनों देशों को दूसरे देशों के आगे हाथ फैलाने की मजबूरी आ गयी है लेकिन फिर भी दोनों नहीं मान रहे हैं। उन्होंने कहा कि वैसे भी यह युद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव होने तक थमने के आसार नहीं हैं क्योंकि बाइडन रूस के खिलाफ माहौल को चुनावों में भुनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन अब अमेरिकी कांग्रेस सदस्यों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया है कि हम क्यों यूक्रेन को सहायता जारी रखे हुए हैं जबकि हमें अपने रक्षा बजट में कटौती करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि पोलैंड ने तो अब यूक्रेन को और मदद देने से साफ इंकार ही कर दिया है। माना जा रहा है कि आगामी दिनों में और भी यूरोपीय देश यूक्रेन को आगे मदद देने से इंकार करेंगे क्योंकि सबका खर्च बढ़ गया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने व्हाइट हाउस में यूक्रेन के अपने समकक्ष वोलोदिमीर जेलेंस्की की मेजबानी करते हुए युद्धग्रस्त देश को नयी सैन्य सहायता के रूप में 32.5 करोड़ डॉलर देने की घोषणा की तथा रूसी आक्रमण से उसकी रक्षा करने का संकल्प जताया है, लेकिन आगे उनके लिए भी यूक्रेन को और मदद देना मुश्किल होने वाला है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी रक्षा विभाग में इस बात को लेकर भी चिंता जताई जाने लगी है कि यूक्रेन की सेना को प्रशिक्षण दिये जाने के बावजूद वह रूस के खिलाफ खुल कर आक्रामक नहीं हो पा रही है। पेंटागन के अधिकारी इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि जिस तरह नाटो के हथियारों को रूस विफल कर दे रहा है उससे अंतरराष्ट्रीय हथियार बाजार में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है क्योंकि जब अन्य देश देखेंगे कि इनके हथियारों की काट मौजूद है तो उनसे कौन अस्त्र-शस्त्र खरीदेगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जिस तरह रूस उत्तर कोरिया और ईरान से हथियार लेकर उनके हथियार बाजार को खड़ा कर रहा है वह आने वाले वक्त में बड़ी चुनौती बन सकता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि बाइडन ने जेलेंस्की को काफी समर्थन दिया है। यह इसी बात से प्रदर्शित होता है कि उन्होंने इस साल व्हाइट हाउस में यूक्रेनी राष्ट्रपति का तीसरी बार स्वागत किया। उन्होंने बताया कि बाइडन ने यूक्रेन को 32.5 करोड़ डॉलर की और अमेरिकी सुरक्षा सहायता देने की घोषणा की जिसमें और तोपें, गोला बारुद और टैंक रोधी हथियार शामिल हैं। इसके अलावा अगले सप्ताह अमेरिका के पहले अब्राम्स टैंक यूक्रेन को दिए जाएंगे। इसके अलावा अमेरिका और यूक्रेन ने रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए एक नया समझौता भी किया जिसके तहत वाशिंगटन अपने लोगों की रक्षा करने के लिए सर्दियों के दौरान कीव को उसकी वायु रक्षा (एयर डिफेन्स) में सुधार करने में मदद करेगा। उन्होंने बताया कि यह समझौता ऐसे समय पर हुआ है जब रूस ने यूक्रेन में पांच शहरों के खिलाफ हवाई हमलों का एक बड़ा अभियान शुरू किया है। इन हमलों से यूक्रेन के अहम असैन्य ढांचों को काफी नुकसान पहुंचा है और देश के कई हिस्सों में बिजली गुल हो गयी है जिससे जनता प्रभावित हुई है।

प्रश्न-3. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सेना प्रमुखों का सम्मेलन क्यों आयोजित किया जा रहा है?

उत्तर- भारतीय सेना हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के सेना प्रमुखों के दो दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी करेगी। यह सम्मेलन हिंद-प्रशांत में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों को लेकर उपजी वैश्विक चिंताओं के मद्देनजर क्षेत्र में शांति, समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक साझा रणनीति विकसित करने के मकसद से आयोजित किया जा रहा है। दिल्ली में 26-27 सितंबर को प्रस्तावित इस सम्मेलन में 22 देशों के 15 सेना प्रमुख और प्रतिनिधिमंडल हिस्सा लेंगे। अमेरिकी सेना इस सम्मेलन की सह-मेजबानी कर रही है। इंडो-पैसिफिक आर्मी चीफ्स कॉन्क्लेव (आईपीएसीसी) में विभिन्न संकटों से निपटने में सैन्य कूटनीति की भूमिका, क्षेत्र के सशस्त्र बलों के बीच सहयोग में इजाफा करने के तरीकों और अंतर-संचालन को बढ़ावा देने के उपायों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। इस सम्मेलन के इतर भारत के स्वदेशी रूप से विकसित हथियारों, सैन्य प्रणालियों और मंचों की एक प्रदर्शनी भी आयोजित की जाएगी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारतीय सेना आईपीएसीसी के 13वें संस्करण के साथ 47वें इंडो-पैसिफिक आर्मीज मैनेजमेंट सेमिनार (आईपीएएमएस) और सीनियर एनलिस्टेड लीडर्स फोरम (एसईएलएफ) की भी मेजबानी करेगी। यह सम्मेलन साझा दृष्टिकोण के प्रति समान दृष्टिकोण विकसित करने का अनूठा अवसर प्रदान करेगा और यह मजबूत ‘सैन्य बंधन’ के माध्यम से दोस्ती को गहरा करने में मदद करेगा। आईपीएसीसी 1999 में शुरू किया गया एक द्विवार्षिक सम्मेलन है, जिसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के सेना प्रमुख साझा हितों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के लिए इकट्ठे होते हैं। इस सम्मेलन का मौजूदा संस्करण बहुत खास है, क्योंकि इसमें 22 देशों के सेना प्रमुखों से लेकर गैर-कमीशन अधिकारियों तक विभिन्न स्तर के अधिकारियों की भागीदारी देखी जाएगी। उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन का विषय ‘शांति के लिए एक साथ: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखना’ है। उन्होंने बताया कि सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे इस सम्मेलन के इतर द्विपक्षीय बैठकें करेंगे।

प्रश्न-4. सऊदी अरब और इजराइल के गहराते संबंध क्या दर्शा रहे हैं? अमेरिकी राष्ट्रपति ने इन संबंधों को मजबूत बनवाने में क्यों दिलचस्पी दिखाई?

उत्तर- सऊदी अरब और इजराइल के संबंधों को सुधारने में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का बहुत बड़ा हाथ है क्योंकि वह अरब जगत में अपनी और अपने मित्र देशों की अच्छी उपस्थिति चाहते हैं। साथ ही व्यापार एक ऐसी चीज है जोकि दुश्मनों को भी दोस्त बना देती है। उन्होंने कहा कि खासकर मुस्लिम देशों ने जिस तरह इजराइल का बहिष्कार किया हुआ था उसको दूर करवाने में अमेरिका बहुत हद तक कामयाब रहा है। उन्होंने कहा कि इजराइल और अमेरिका की दोस्ती बहुत गहरी है और दोनों देश आगे बढ़कर एक दूसरे की मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे अरब को इजराइली तकनीकों की जरूरत है उसी तरह इजराइल को भी मुस्लिम देशों के बाजार की जरूरत है। 

प्रश्न-5. सीरिया के राष्ट्रपति की चीन यात्रा का क्या आशय है?

उत्तर- दरअसल गृह युद्ध में फँसे सीरिया की अर्थव्यवस्था पूरी तरह तबाह हो चुकी है, ऐसे में राष्ट्रपति बशर अल असद को सैन्य तथा बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए आर्थिक मदद चाहिए जो उन्हें इस समय चीन ही दे सकता है क्योंकि सीरिया का सबसे बड़ा मददगार रूस इस समय मदद करने की स्थिति में नहीं है साथ ही ईरान भी सहायता नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि एक तरफ कुर्दिशों को अमेरिका, ब्रिटेन और इजराइल से सहायता मिल रही है तो दूसरी ओर असद के लिए त्राहिमाम की स्थिति है। उन्होंने कहा कि सीरिया के बड़े इलाकों पर अब भी लड़ाकों का कब्जा है, आईएसआईएस वहां सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है, 12 साल से चल रहे गृहयुद्ध में पांच लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, 50 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, 60 लाख से ज्यादा लोगों को पलायन करना पड़ गया है, कई इलाकों को तुर्की ने कब्जा लिया है, ऐसे में वहां हालात बेहद ही खराब हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सीरिया के खिलाफ प्रतिबंध या प्रतिबंधात्मक कदमों के जो भी प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में लाये गये उनको चीन ने 8 बार वीटो लगाकर लागू होने से रोका, ऐसे में सीरिया जानता है कि चीन ही उसकी आगे भी मदद कर सकता है। उन्होंने कहा कि एशियन गेम्स के बहाने सीरिया के राष्ट्रपति चीन गये हैं जोकि अपने आप में इसलिए भी महत्व रखता है क्योंकि इससे पहले 2004 में सीरियाई राष्ट्रपति का चीन दौरा हुआ था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के साथ मुलाकात के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जिस रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की है उससे पश्चिमी देशों को चेत जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक और चीज साफ हो रही है कि रूस पहले जहां-जहां प्रभावी भूमिका में था, वह वहां से अब पीछे हट रहा है और उसकी जगह चीन लेता जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा सीरिया चीनी राष्ट्रपति की महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई का भी हिस्सा बन चुका है। उन्होंने कहा कि चीनी राष्ट्रपति भी अरब देशों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने का यह अच्छा मौका देख रहे हैं इसलिए वह सीरिया के करीब गये हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन-सीरिया रणनीतिक साझेदारी की स्थापना की जो घोषणा संयुक्त रूप से की गयी है, वह दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन जायेगी। उन्होंने कहा कि सीरियाई राष्ट्रपति की चीन यात्रा से पहले जैसा लग रहा था वैसा ही हुआ क्योंकि बशर अल-असद ने चीन पहुँचते ही अपने देश के पुनर्निर्माण के लिए वित्तीय सहायता मांगी। उन्होंने कहा कि असद की चीन यात्रा तब हो रही है जब चीन मध्य पूर्व में अपने लिए एक शक्तिशाली भूमिका की तलाश में है और उन देशों की मदद करना चाहता है जिन्हें अमेरिका और पश्चिमी देशों ने तिरस्कृत किया हुआ है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि बशर अल-असद की यात्रा लगभग दो दशकों में उनकी चीन की पहली यात्रा है और यह तब हो रही है जब उन्होंने सीरिया की वैश्विक छवि को नये सिरे से स्थापित करने का संकल्प लिया है। उन्होंने कहा कि सीरिया में हालात बिगड़ने के बावजूद चीन ने सीरिया के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखे थे जबकि अन्य देशों ने 2011 में अरब स्प्रिंग विद्रोह के खिलाफ बशर अल-असद की ओर से की गयी क्रूर कार्रवाई के कारण उनको अलग-थलग कर दिया था। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों का मानना है कि असद ने अपने देश को गृह युद्ध में झोंका। पश्चिमी देशों ने असद की सरकार पर अपने ही लोगों के खिलाफ रासायनिक हथियारों का उपयोग करने, गुप्त जेलों में हजारों विरोधियों को यातना देने तथा कस्बों और शहरों में कत्लेआम करने के आरोप लगाये।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अब असद अपने देश के पुनर्निर्माण में मदद के लिए निवेश की तलाश में हैं। उन्होंने कहा कि सीरिया पर पश्चिमी देशों की ओर से लगाये गये प्रतिबंधों के कारण युद्धग्रस्त देश सीरिया का पुनर्निर्माण रुका हुआ है। उन्होंने कहा कि एक तो सीरिया पर पश्चिमी और कई यूरोपीय देशों ने प्रतिबंध लगाया हुआ है साथ ही संयुक्त राष्ट्र में भी प्रस्ताव पारित हुआ है कि सीरिया में बिना राजनीतिक समाधान के किसी भी पुनर्निर्माण के लिए धन नहीं दिया जायेगा, इसलिए अब असद ने चीन की शरण ली है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन की ओर से सीरिया को जो मदद दी जायेगी उसमें कोई राजनीतिक शर्तें नहीं रखी गयी हैं। उन्होंने कहा कि चीन देख रहा है कि असद अपने देश में धीरे-धीरे फिर से प्रभावी हो रहे हैं क्योंकि उन्होंने रूस और ईरान के समर्थन से देश के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण वापस पा लिया है। लेकिन असद के पास इस समय टूटा और बिखरा हुआ तथा गरीब देश है जो आर्थिक संकट और भुखमरी का सामना कर रहा है। समस्याओं को लेकर वहां विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। हाल में आये भूकंप से वह भी तबाह हो गया जोकि अब तक बचा हुआ था, ऐसे में उन्हें मदद की सख्त जरूरत है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन से मदद पाने के लिए ही सीरियाई राष्ट्रपति ने 2022 में घोषणा की थी कि वह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होंगे। चीन के करीब जाने के लिए उन्होंने मार्च में ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंध बहाल करने के लिए समझौता कराने में चीन की भूमिका की भी सराहना की थी। उन्होंने कहा कि असद की ताकत में तब और इजाफा हुआ था जब मई महीने में सीरिया को अरब लीग में फिर से शामिल कर लिया गया था हालाँकि कुछ देशों के साथ अभी सीरिया के पूर्ण राजनयिक संबंध नहीं स्थापित हो पाए हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह भी उम्मीद है कि चीन देश पर असद सरकार का नियंत्रण बहाल करने के लिए सीरिया, तुर्की, ईरान और रूस के बीच मध्यस्थता करने के लिए एक बार फिर से एक सूत्रधार के रूप में भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो यह भी प्रतीत हो रहा है कि चीन भूमध्य सागर में पैर जमाने की अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सीरिया के लताकिया में बंदरगाह पर नजर जमाये हुए है क्योंकि वह उसको रणनीतिक महत्व के स्थान के रूप में देखता है। उन्होंने कहा कि हालांकि अब तक के घटनाक्रम को देखा जाये तो चीन सीरिया में अपने निवेश को सीमित रखते हुए अब तक सतर्क रहा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि असद की चीन यात्रा जिनपिंग के लिए अपनी कूटनीतिक ताकत प्रदर्शित करने का अवसर भी है क्योंकि चीन मध्य पूर्व क्षेत्र में अपने भूराजनीतिक प्रभाव के लिए अमेरिका के साथ प्रतिद्वंद्विता का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने जून में बीजिंग का दौरा किया था तो चीन ने इजरायलियों और फिलिस्तीनियों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की थी। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि सीरिया के राष्ट्रपति के दौरे के बाद भी जिनपिंग और कोई बड़ी कूटनीतिक पहल कर सकते हैं।

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