इतना ही नहीं, अगस्त महीने में जब बाजार कमजोर रहा, उस समय भी मिडकैप, स्मॉल कैप अब तक के हाई पर रहे। बड़ी संख्या में रिटेल निवेशक फिलहाल मिड-कैप और स्मॉल-कैप सेगमेंट में निवेश सीधे स्टॉक मार्केट के बजाय म्यूचुअल फंड के जरिए कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि यह रेकॉर्ड तेजी क्यों है और कब तक जारी रहेगी। निवेशक विजय केडिया कहते हैं, ‘बुल रन के दौरान अंडरवैल्यू मिड और स्मॉलकैप कंपनियों में इसी तरह का ट्रेंड दिखाई देता है। इनमें P/E (प्राइस टू अर्निंग रेश्यो) की रीरेटिंग होती है। जैसे कि 8-10 वाले P/E 20-25 तक पहुंच जाते हैं, क्योंकि इकॉनमी के ग्रोथ करने पर इनमें ज्यादा ग्रोथ होती है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
CNI रिसर्च के CEO किशोर. पी. ओस्तवाल कहते हैं, ‘ऑपरेटर्स मिड और स्मॉलकैप कंपनियों में एक्टिव हैं। बुल रन में ऐसी ही कंपनियां चल रहीं है जो अंडरवैल्यू हैं, जिनका मैनेजमेंट अच्छा है और क्वॉलिटी स्टॉक है। सरकार जिस तरह से कैपिटल खर्च (कैपेक्स) कर रही है, उस ट्रेंड को भी देखना होगा। इसलिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, BHEL, रेलटेल, आरवीएनएल आदि में तेजी से संभावनाएं बन रहीं हैं।’ केडिया फिनकॉर्प के CEO नितिन केडिया के अनुसार इस सेग्मेंट में इंस्टि्टयूशनल फंड बहुत आ रहा हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यह कहने के बाद कि सरकारी कंपनियों में निवेश करिए और कैपेक्स भी काफी हो रहा है। ऐसे में आने वाली दो तिमाही में इनके अच्छा करने का अनुमान है।
क्या है रिस्क
SME मार्केट के जाने-माने एक्सपर्ट ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि निवेशकों को वैल्यू फॉर मनी मिड और स्मॉलकैप कंपनियों में दिखाई दे रही है। छोटी अवधि में स्मॉल-कैप स्टॉक बहुत अस्थिर हो सकते हैं। फिसडम के रिसर्च हेड नीरव करकेरा कहते हैं, ‘चूंकि इनमें कई कंपनियों का बैलेंस शीट मजबूत नहीं है, इसलिए जब भी आर्थिक माहौल प्रतिकूल होता है तो वे सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं।’ FYERS के रिसर्च हेड गोपाल कवालीरेड्डी कहते हैं, ‘कंपनी के कॉरपोरेट गवर्नेंस मानकों, उसके वित्तीय आंकड़ों की विश्वसनीयता आदि की अपर्याप्त जानकारी के कारण स्टॉक चयन में गलतियां संभव हैं।’ निवेशकों को इस अस्थिर श्रेणी में ओवरएक्सपोजर से बचना चाहिए।