Science News: जल का दानव..! नीले ड्रैगन के आतंक से कांपता था समंदर, वैज्ञानिकों का बड़ा खुलासा

Blue Dragon Mosasaur: पृथ्वी का सटीक इतिहास किसी को नहीं पता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी लगभग 4.5 अरब साल पुरानी है. पृथ्वी पर इंसानों के अस्तित्व की बात करें तो यह दो से तीन लाख साल पुराना बताया जाता है. इंसानों से पहले पृथ्वी पर अलग दुनिया बसती थी. जिसमें आप डायनासोर की कहानियां हमेशा सुनते होंगे. वहीं, समंदर में भी एक अलग दुनिया बसती थी. समंदर में विशालकाय जीवों का दबदबा हुआ करता था. इनमें से ही एक था वाकायामा सरयू, जिसे जल का दानव कहा जाए तो गलत नहीं होगा.

720 लाख साल पुरान चौंकाने वाला इतिहास

जर्नल ऑफ सिस्टमैटिक पेलियोन्टोलॉजी में हाल ही में छपे एक रिसर्च में वाकायामा सरयू के बारे में चौंकाने वाला दावा किया गया है. इसमें कहा गया है कि 72 मिलियन साल (720 लाख साल) पहले प्रशांत महासागर एक विशाल नीले ड्रैगन मोसासौर का घर था. इस रिसर्च में शामिल वैज्ञानिकों ने ही इस जल के दानव का नाम वाकायामा सरयू रखा है. वाकायामा सरयू का मतलब ब्लू ड्रैगन है.

कैसे रखा गया नाम?

रिसर्च में कहा गया है कि मोसासौर लेट क्रेटेशियस काल का एक विलुप्त बड़ा समुद्री सरीसृप था. इसका नाम जापान के वाकायामा प्रान्त के नाम पर रखा गया है. यहीं, इसका जीवाश्म पाया गया था. सिनसिनाटी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर ताकुया कोनिशी ने अंतरराष्ट्रीय सह-लेखकों की एक टीम के साथ, पेलियोन्टोलॉजी जर्नल में अपनी रिसर्च को लेकर चौंकाने वाली डिटेल शेयर की है.

2006 में हुई थी खोज

कोनिशी ने सिनसिनाटी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर एक बयान में कहा कि चीन की लोक कथाओं में ड्रैगन उड़ते थे और जापानी पौराणिक कथाओं में वे समंदर में रहते थे. मोसासौर का लगभग पूरा जीवाश्म 2006 में अकिहिरो मिसाकी ने खोजा था. उस समय, मिसाकी अम्मोनियों नाम के अकशेरुकी जीवों के जीवाश्मों की खोज कर रहे थे और तभी उनकी नजर बालू वाले पत्थर में मोसासौर के जीवाश्म पर पड़ी. उन्होंने कहा कि जापान या उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में पाया गया वाकायामा सरयू का जीवाश्म अब तक पाए गए मोसासौर के कंकालों में से सबसे पूर्ण कंकाल है.

मोसासौर में चौंकाने वाली विशेषताएं

वैज्ञानिकों के मुताबिक मोसासौर में चौंकाने वाली विशेषताएं थीं. इसका सिर मगरमच्छ जैसा था और चप्पू के आकार के विशाल फ्लिपर्स थे. इसके पिछले फ्लिपर्स आगे वाले फ्लिपर्स से बड़े थे. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके सामने वाले बड़े पंख तेजी से पैंतरेबाजी करने में मदद करते होंगे और इसके पिछले बड़े पंख गोता लगाने और सतह पर उतरने के इस्तेमाल में आते होंगे. अन्य मोसासौर की तरह इन नीले ड्रैगन की पूंछ भी शक्तिशाली रही होगी.

15 सालों से मोसासौर पर रिसर्च

बता दें कि कोनिशी बीते 15 सालों से मोसासौर पर रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अभी तक के रिसर्च में यह कहा जा सकता है कि प्रशांत महासागर में रहने वाले इस नीले ड्रैगन की नजर भी दूरबीन की तरह रही होगी. इसकी दूर की नजर इशारा करती है कि यह खतरनाक शिकारी रहा होगा. उन्होंने कहा कि इस मोसासौर के पंख घातक सफेद शार्क की तरह नजर आते हैं और इस का कद पांच फीट से ज्यादा है.

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