नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मान्यता देने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) ने बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस तरह के रिश्तों के लिए केंद्रीय कानून के अभाव में राज्य सरकारें समलैंगिक विवाह को मान्यता देने और नियंत्रित करने के लिए अपने कानून बनाने के लिए स्वतंत्र हैं. खास बात यह है कि ये बात संवैधानिक पीठ के बहुमत और अल्पमत दोनों ही फैसलों में कही गई है.
दरअसल, समलैंगिक विवाह वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चूंकि संविधान विवाह संबंधी कानून बनाने का अधिकार संसद और राज्य विधानसभा दोनों को देता है, लिहाजा केंद्रीय कानून के अभाव में राज्य सरकारें भी अपने राज्यों के लिए इस पर फैसला ले सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने अल्पमत वाले फैसले में कहा कि चूंकि विवाह का मामला संविधान की सातवीं अनुसूची का मामला है, लिहाजा राज्य विधानसभा और संसद दोनों को इस पर कानून बनाने का अधिकार है.
वहीं, समलैंगिक विवाह पर बहुमत के फैसले में जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने भी कहा कि राज्य विधानसभाएं समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में फैसला ले सकती हैं. ये राज्य सरकारों के अधिकार में है कि वो विवाह और परिवार संबंधी सभी कानूनों को लिंग तठस्थ (Gender neutral) बनाये या समलैंगिक लोगों के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट की तरह कोई अलग कानून बनाये.

जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बड़े परिणाम देखने को मिल सकते हैं. अब तक समलैंगिक अधिकारों की बात करने वाले केंद्रीय कानून की वकालत करते थे. लेकिन अब वो राज्य सरकारों से भी मांग कर सकेंगे, ताकि एक को देखकर दूसरी राज्य सरकार और केंद्र पर दबाव बना सके. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया. इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर शादी का ‘कोई असीमित अधिकार’ नहीं.
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Tags: Same Sex Marriage, Supreme Court
FIRST PUBLISHED : October 18, 2023, 05:34 IST