Russia Threat To NATO Countries: फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के एक बयान ने पूरे यूरोप में हलचल मचा दी है. मैक्रों ने कहा है कि यूक्रेन की मदद के लिए यूरोपीय सैनिकों को भेजने पर ‘खुलकर बात हुई’ है. मैक्रों और 21 अन्य यूरोपीय नेताओं ने सोमवार को यूक्रेन के समर्थन में बैठक की थी. मंगलवार को, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, पोलैंड, स्पेन और इटली समेत कई देशों ने ऐसी किसी योजना से इनकार किया. जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज ने कहा, ‘शुरू से ही आपस में और एक-दूसरे के साथ जो सहमति बनी थी, वह भविष्य पर भी लागू होती है, मतलब जमीन पर कोई सेना नहीं उतरेगी. यूरोपीय देशों या NATO देशों की ओर से यूक्रेनी धरती पर कोई सैनिक नहीं भेजा जाएगा.’ यूरोप में हर हफ्ते, कहीं न कहीं से रूस के हमले की आशंका से जुड़ी चेतावनी आ जाती है. NATO देशों को यह डर सता रहा है कि अगर यूक्रेन युद्ध हार गया तो अगला नंबर उनका है.
जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने जनवरी में कहा था, ‘हमें यह ध्यान में रखना होगा कि व्लादिमीर पुतिन एक दिन किसी नाटो देश पर भी हमला कर सकते हैं.’ स्वीडन के कमांडर-इन-चीफ जनरल माइकेल बायडेन ने भी ‘युद्ध के लिए तैयार’ रहने को कहा है. NATO देशों पर रूसी हमले के डर को और हवा डोनाल्ड ट्रंप के बयानों से मिली. दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल ट्रंप ने कहा था कि वह रूस को किसी यूरोपीय NATO देश के साथ ‘जो चाहे वो करने देंगे.’
मैक्रों के बयान पर रूस की चेतावनी
यूरोपियन यूनियन ने यूक्रेन को 150 बिलियन डॉलर से ज्यादा की मदद का भरोसा दे रखा है. हालांकि, सैनिक भेजना बेहद खतरनाक कदम साबित हो सकता है. रूस ने मैक्रों के हालिया बयान पर प्रतिक्रिया में युद्ध की चेतावनी दी है. क्रेमलिन ने कहा कि अगर NATO के सैनिक यूक्रेन में उतरे तो रूस और NATO के बीच टकराव ‘तय’ है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा, ‘यह बिल्कुल इन देशों के हित में नहीं है, उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए.’
French President Emmanuel Macron said he could not rule out sending troops to Ukraine to ensure Russia does not win the war, although he cautioned that there was no consensus at this stage https://t.co/a5QdAVgNZH pic.twitter.com/FyONP4246d
— Reuters (@Reuters) February 27, 2024
मैक्रों के बयान से जिस तरह से यूरोपीय नेताओं ने दूरी बनाई, उसे देखते हुए यूक्रेन में NATO सैनिकों को भेजे जाने की संभावना न के बराबर है. जर्मनी से इतर इटली की सरकार ने भी कहा है कि यूक्रेन को समर्थन में सैनिक भेजना शामिल नहीं था. वहां के विदेश मंत्री एंटोनियो ताजानी ने कहा, ‘जब हम सेना भेजने की बात करते हैं, तो हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए क्योंकि हमें लोगों को यह सोचने नहीं चाहिए कि हम रूस के साथ युद्ध में हैं.’
NATO के एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर France24 को बताया कि NATO के अभूतपूर्व सैन्य सहयोग के बावजूद, यूक्रेन में NATO सैनिक उतारने की कोई योजना नहीं है.
एक और जंग के लिए कितनी देर में तैयार हो पाएगा रूस?
NATO देशों के इस डर के पीछे वे तमाम अनुमान हैं जो बताते हैं कि कितनी जल्दी रूस अपनी सेना और साजो-सामान के नुकसान की भरपाई कर सकता है, ताकि किसी NATO देश पर हमला कर सके. जर्मनी के रक्षा मंत्री पिस्टोरियस को लगता है कि इसमें ‘पांच से आठ साल’ लग सकते हैं. एस्टोनिया की मिलिट्री इंटेलिजेंस के चीफ का अनुमान है कि रूस चार साल के भीतर फिर से युद्ध के लिए तैयार हो जाएगा. डेनमार्क के रक्षा मंत्री का बयान था कि ‘तीन से पांच साल के भीतर रूस आर्टिकल 5 और NATO की एकजुटता को चुनौती देगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता.’ पोलैंड की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी को भी लगता है कि रूस तीन साल के भीतर NATO पर हमला बोल सकता है.
रूस का जाल! NATO को सता रहा डर
अगर तमाम आशंकाएं सच होती हैं तो NATO के लिए पहली प्राथमिकता रूस से सटे बाल्टिक देशों- एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया को बचाना होगी. NATO के युद्ध रणनीतिकारों ने अलग-अलग परिस्थितियों के हिसाब से योजनाएं बना रखी हैं. इन सभी योजनाओं में यह मानकर चला गया है कि मॉस्को सिर्फ NATO की एकजुटता का टेस्ट करना चाहता है. उसके लिए रूस एक या अधिक बॉल्टिक देशों पर जल्दी से कब्जा करेगा और फिर कहेगा कि जो हो चुका उसे बदला नहीं जा सकता. उसके बाद परमाणु हमले की धमकी से NATO को पीछे हटने पर मजबूर कर देगा. अगर NATO इस समझौते पर राजी होता है तो उसकी विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी. NATO की यह भी प्लानिंग है कि हर सदस्य देश अपने हिसाब से रूसी खतरे का आकलन करे.