बैखौफ, निडर, साइबीरियन बाघ को पुचकारने वाला, समुद्र की गहराईयों में गोता लगाने वाला, जूडो में ब्लैक बेल्ट चैंपियन जिसके जोश के आगे नौजवान भी फेल हैं। जो महाशक्तियों को आंखें दिखाता है। जिसके फैसले दुनिया को हैरान कर देते हैं। पिछले 24 साल से रूस की सत्ता पर काबिज व्लादिमीर पुतिन जो दुनियाभर के ताकतवर नेताओं में से एक हैं। जिनका खौफ खुद अमेरिका भी खाता है। रूस में दो दशक से भी ज्यादा वक्त से व्लादिमीर पुतिन का राज बरकरार है। लेकिन सवाल ये है कि क्या एक बार क्या पुतिन रूस के राष्ट्रपति चुन लिए जाएंगे। राष्ट्रपति चुनाव के लिए रूस में वोटिंग 15 से 17 मार्च तक जारी है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब रूस में एक दिन की जगह तीन दिन तक चुनाव हो रहे हैं। खासबात ये है कि इसमें रूस के कब्जे वाले यूक्रेन के उन हिस्सों में भी चुनाव कराए जा रहे हैं। चुनाव के नतीजे मॉस्को की समय के मुताबिक 17 मार्च की देर रात तक जारी हो सकते हैं। वैसे तो ये चुनाव का साल है। भारत के अलावा और भी कई ऐसे देश हैं जहां चुनाव होने हैं। ऐसे में आज हम बात करेंगे उस देश की जहां कहने को तो इलेक्शन हो रहा है। मगर उसका विजेता कौन है इसके बारे में हम सभी जानते हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं जिससे वो एक बार फिर से जीतकर राष्ट्रपति बन सके। पुतिन के बारे में कहा जाता है कि उनकी किस्मत में हार नहीं लिखी। उन्हें जिनसे खतरा होता है वो या तो जेल में है या फिर उनकी मौत हो चुकी है। ऐसे में सवाल उठते हैं कि सालों से रूस में यही होता आ रहा है तो फिर वहां चुनाव का क्या मतलब है। रूस का राजनीतिक सिस्टम क्या है, पॉवर किसके पास होती है। चुनाव होता क्यों है, पुतिन ही राष्ट्रपति क्यों बनते हैं। सवालों की फेहरिस्त थोड़ी लंबी है। लेकिन सभी के जवाब कमोबेश हमारे पास मौजूद हैं, जिसके बारे में आपको तफ्सील से बताते हैं।
रूस का राजनीतिक सिस्टम क्या है
रूस का राजनीतिक सिस्टम भी लगभग हमारे भारत जैसा ही है। जैसे हमारे यहां संसद है यहां फेडरल असेंबली है। जैसे हमारे यहां राज्यसभा-लोकसभा है। वहां काउंसिल ऑफ फेडरेशन और स्टेट डूमा है। लेकिन एक बड़ा अंतर ये है कि हमारे यहां संसद से बहुत कुछ तय होता है। अकेले प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के हाथ में कुछ नहीं होता है। हर संसद का अपना महत्व होता है। संविधान या कानून में बदलाव करना हो तो दोनों सदन का अपना रोल होता है। लेकिन रूस में असेंबली पावर राष्ट्रपति के पास होती है। जिसके बाद प्रधानमंत्री का नंबर आता है। फिर फेडरल काउंसिल यानी ऊपरी सदन के अध्यक्ष का नंबर आता है। मान लीजिए कि एक ही समय में रूस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को कुछ हो जाए तो फेडरल काउंसिल का चेयरमैन कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर काम करेगा।
संसद का क्या काम है
पेपर पर फेडरल काउंसिल यानी ऊपरी सदन सबसे ताकतवर होती है। सारे कानून यहीं बनते हैं। जैसे राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्णय, देश के बाहर जंग लड़नी हो, रूस के ऊपरी अदालतों के जजों की नियुक्ति, देश के अहम पदों पर कौन बैठेगा यानी वो सारी बातें जिससे देश चलता है। सारे फैसलों पर मुहर यहीं लगती है। स्टेट डूमा के हिस्से प्रधानमंत्री की नियुक्ति के फैसले को मंजूरी देना आता है। फेडरल काउंसिल के पास जो कानून भेजे जाते हैं उन्हें पहले स्टेट डूमा में ही भेजा जाता है। यहां बहुमत से पास होने के बाद ही इसे फेडरल काउंसिल में भेजा जाता है। आप कह रहे होंगे की सबकुछ इतना क्लियर है तो फिर परेशानी क्या है? दरअसल, ये सबकुछ पेपर पर है। होता वही है जो पुतिन चाहते हैं।
पुतिन को हराने के लिए उतरे 3 उम्मीदवार
पुतिन कम्युनिस्ट निकोलाई खारितोनोव, राष्ट्रवादी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता लियोनिद स्लटस्की और न्यू पीपल पार्टी के व्लादिस्लाव दावानकोव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। युद्ध-विरोधी उम्मीदवार बोरिस नादेज़दीन को येकातेरिना डंटसोवा की तरह रेस में शामिल होने से रोक दिया गया था। केजीबी के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल 71 वर्षीय पुतिन को 1999 के आखिरी दिन बोरिस येल्तसिन द्वारा कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया था। उन्होंने 2000 का राष्ट्रपति चुनाव 53.0 प्रतिशत वोट के साथ और 2004 का चुनाव 71.3 प्रतिशत वोट के साथ जीता था।
रूस में कोई राष्ट्रपति कितने समय तक शासन कर सकता है?
जोसेफ स्टालिन के बाद से पुतिन किसी भी अन्य रूसी शासक की तुलना में अधिक समय तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने का तमगा हासिल कर चुके हैं। यहां तक कि उन्होंने सोवियत नेता लियोनिद ब्रेझनेव के 18 साल के कार्यकाल को भी पीछे छोड़ दिया है। फ्रांस के 1958 के संविधान पर आधारित 1993 का रूसी संविधान को पश्चिम में कुछ लोगों ने एक ऐसे विकास के रूप में देखा जो सोवियत-बाद के रूस में लोकतंत्र को बढ़ावा देगा। मूल रूप से यह निर्दिष्ट किया गया था कि एक राष्ट्रपति चार साल के केवल दो कार्यकाल ही पूरा कर सकता है यदि वे एक के बाद एक हों। लेकिन 2008 में संशोधनों ने राष्ट्रपति पद के कार्यकाल को छह साल तक बढ़ा दिया, जबकि 2020 में संशोधनों ने औपचारिक रूप से पुतिन के अपने राष्ट्रपति पद के कार्यकाल को 2024 से शून्य कर दिया, जिससे संभावित रूप से उन्हें 2036 तक सत्ता में बने रहने की अनुमति मिल गई। परिवर्तनों ने किसी भी क्षेत्र को सौंपने पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
क्या हम निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद कर सकते हैं?
पश्चिमी देश पुतिन को युद्ध अपराधी, हत्यारा और तानाशाह मानता है, लेकिन घरेलू जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि उनकी अनुमोदन रेटिंग 85 प्रतिशत है जो यूक्रेन पर आक्रमण से पहले की तुलना में अधिक है। क्रेमलिन का कहना है कि पुतिन को रूसी लोगों का भारी समर्थन प्राप्त है, रूस नहीं चाहता कि पश्चिम उसे लोकतंत्र के बारे में उपदेश दे। रूसी अधिकारियों का कहना है कि पश्चिम चुनाव की वैधता पर संदेह पैदा करके रूस को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। समर्थकों का कहना है कि पुतिन ने गिरावट के चक्र को रोक दिया जो 1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ चरम पर था और सोवियत संघ पर शासन करने वाले महासचिवों के कम से कम कुछ प्रभाव को बहाल किया, जबकि क्रेमलिन ने पश्चिम के नेतृत्व में गिरावट के रूप में जो कहा था, उसके प्रति खड़े रहे।