शिखा श्रेया
रांचीः रांची में स्थित टैगोर हिल जो कि समुद्र तल से 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. रांची का मनोरम दृश्य देखने लोग अक्सर यहां आया करते हैं. टैगोर हिल का नाम रवींद्रनाथ टैगोर और उनके भाई ज्योतिंद्रनाथ टैगोर के नाम पर पड़. ज्योतिंद्रनाथ ने इस पहाड़ी को स्थानीय जमींदार हरिहर सिंह से 1908 में खरीदा था. गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के भाई ज्योतिरींद्रनाथ टैगोर की यादगार विरासत टैगोर हिल रांची की एक धरोहर बन गया है. पहाड़ी के शीर्ष पर मुख्य मंडप यानि ब्रह्मा स्थल है. ब्रह्म स्थल की नींव 14 जुलाई 1910 में रखी गयी थी.
वैरागी होने के बाद यहां आए थे ज्योतिरिंद्रनाथ
ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर 1884 में अपनी पत्नी द्वारा आत्महत्या करने के बाद वैरागी हो गए थे और मोरहाबादी आकर उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया और यहीं रहने लगे. यहां का शांत वातावरण व खुली हवा उन्हें भा गई. इसके बाद उनके भाई रविंद्रनाथ टैगोर भी यहां आये और काफी लंबे समय तक यहां एकांत में जीवन बिताया.
ज्योतिंद्रनाथ टैगोर ने यहीं पर मराठी गीता का बांग्ला में अनुवाद किया
ज्योतिंद्रनाथ टैगोर ने यहीं पर 1924 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा मराठी में लिखित मराठी गीता रहस्य नामक पुस्तक का बांग्ला में अनुवाद भी किया था. चार मार्च 1925 को उन्होंने यहीं पर अंतिम सांस ली थी. आज भी छात्र यहां के शांत माहौल में पढ़ने आते हैं.
एकांत में समय बिताने आते हैं लोग
इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों को एक पल का चैन नहीं होता. लोग सुकून पाने के लिए यहां के मुख्य मंदिर यानी ब्रह्म स्थान पर आकर बैठते हैं और कुछ समय व्यतीत करते हैं. जिससे शांति और आनंद की प्राप्ति होती है. केयरटेकर विशाल कहते हैं यह हर दिन करीब 500 लोग आते-जाते रहते हैं. कुछ लोग खास तौर पर फोटोग्राफी के लिए भी करते हैं.
शानदार है यहां का नजारा
घूमने आये राहुल कुमार का कहना है की यहां आके बहुत अच्छा महसूस होता है. इतना भाग दौड़ में कुछ पल अगर खुद के साथ बितानी हो तो इससे बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती. नजारा भी यहा का बेहद शानदार हैं.
वहीं, मुंबई से आए हुए सौरभ ने कहा कि वह आईएसएम रांची में ट्रेनिंग चल रही है. शनिवार को छुट्टी रहती है. किसी ने टैगोर हिल घूमने की सलाह दी. यहां शांति का माहौल है. आबोहवा अच्छी है. प्रदुषण नहीं है. ध्यान लगाने के लिए यह एक अच्छी जगह है.
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FIRST PUBLISHED : December 07, 2022, 13:42 IST