Ram Mandir Ayodhya: हमारी विरासत को संजोता श्रीराम मंदिर

राम मंदिर से देश की राष्ट्रीय, सांस्कृतिक एकता और अखंडता सुदृढ़ होगी एवं समस्त विश्व में भारत विश्व बन्धुत्व का संदेश देगा और भारतीय जनमानस का आत्मबल बढ़ेगा।

राम मंदिर का निर्माण भारतीय संस्कृति के उत्थान में प्रमुख स्थान रखता है। हमारा देश सदियों से गुलामी की जंजीरों में न केवल जकड़ा रहा बल्कि विदेशी आक्रांताओं ने केवल भारत को लूटा अपितु उसकी संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने की भी कोशिश की। प्राचीन काल में मंदिरों केवल पूजा स्थल ही नहीं थे बल्कि गुरूकुल जैसा वातावरण रहता था। इन गुरुकुलों में शिष्य मंदिर की भूमि पर न केवल खेती करते बल्कि वहीं सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक सभी आयामों के कला कौशल का ज्ञान प्राप्त करते थे। 

श्रीराम मंदिर नए भारत का प्रतीक होगा जो भारत को एक बार फिर विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता देगी। श्रीराम चंद्र की नगरी अयोध्या बाकी दुनिया के लिए प्रेरणा स्रोत होगी। श्रीराम मंदिर हिंदुओं की आस्था से जुड़ा मामला है। हम हिन्दुओं के श्रद्धेय भगवान श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम थे, आज विश्व में शांति की स्थापना के लिये उसी मर्यादा की जरूरत है।

 राम का चरित्र अनुकरणीय है और उनका जीवन ही विश्व का उत्थान कर सकता है। विश्व प्रसिद्ध तकनीक एवं अद्वितीय शैली से बने मंदिर को देखने के लिए देश विदेश से करोड़ों पर्यटक आएंगे। पर्यटकों के आने से शहर के धर्मशाला, होटल, रेस्टारेन्ट, परिवहन और कलाकृति प्रत्येक क्षेत्र का विकास होगा। यही नहीं आने वाले पर्यटक भी अयोध्या से लौट कर भी हमारी परम्परा व  संस्कृति का गुणगान करेंगे।

प्रभु श्रीराम का जन्म अयोध्या में होना एक प्रतीक मात्र है। वह तो इस पूरी सृष्टि के आधार हैं। वह आदर्श पुरुष ही नहीं बल्कि मर्यादाओं को स्थापित करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हैं। वह एक आदर्श पुत्र और राजा भी हैं। इसलिए श्रीराम के रामराज्य को सभी लोग हर युग में आदर्श मानकर उसे स्थापित करने का प्रयास करते हैं। रामराज्य का अर्थ एक व्यक्ति का शासन नहीं बल्कि एक आदर्श शासन की स्थापना है, जिसमें राजा और प्रजा दोनों एक दूसरे के पूरक हों। राजा एक पिता की तरह अपनी प्रजा का पालन करें तो समस्त प्रजा सुख की अनुभूति करते हुए अपने पिता तुल्य राजा के प्रति समर्पित एवं विश्वास से परिपूर्ण हो।

श्री राम सारे विश्व के लिए हितकारी, कल्याणकारी और लाभदायक है। भगवान वाल्मीकि ने श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण में भगवान रामचंद्र के अनेक गुणों का वर्णन करते हुए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम से सुशोभित किया है क्योंकि वह सहनशीलता, धैर्य, सहयोग, प्यार, क्षमा, वीरता के गुणों से संपन्न थे। 

राम पूरी मानव जाति को प्रेरणा देने वाले आदर्श हैं और वह सृष्टि के प्राण हैं। सभी मापदंडों में आदर्श स्थापित करने के कारण ही अर्थव्यवस्था एवं राजनीति में राम राज्य की परिकल्पना की जाती है। भगवान राम भारतवर्ष की आत्मा हैं। उन्हें भारत से अलग नहीं रखा जा सकता। अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बनना भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए भी आवश्यक है। मंदिर निर्माण हो रहा है तो धर्म की विजय पताका भी जोरों से फैल रही है। मंदिर निर्माण का उद्देश्य भविष्य में आने वाली पीढि़यों को भगवान राम के आदर्शों से परिचित कराना भी है।

अयोध्या में बना भगवान श्रीराम का मंदिर सदियों तक पूरी मानव जाति को धर्म का आचरण करने को प्रेरित करता रहेगा। मानव जीवन के हर क्षेत्र में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम प्रेरणा स्त्रोत एवं आदर्श हैं। प्रभु श्रीराम लोगों के जीवन रूपी नइया को पाप रूपी अंधकार से धर्म रूपी उजाले की ओर ले जाते हैं। भगवान राम का जीवन हर युग में आदर्श एवं प्रासंगिक रहा है। उनके आदर्शों की प्रासंगिकता आज और भी अधिक बढ़ जाती है। उनके आदर्श हमारे जीवन पथ को प्रशस्त करते हैं। संसार का कोई भी प्रश्न ऐसा नहीं है जिसका व्यवहारिक आदर्श उत्तर राम ने अपने आचरण से नहीं दिया हो। उनके जीवन में संपूर्ण संसार समाया हुआ है। वह ऐसे अवतार हैं जिन्होंने अपनी वाणी से नहीं बल्कि आचरण से जीवन दर्शन को प्रस्तुत किया। असाधारण होकर भी अपने साधारण जीवन से पूरे संसार का नेतृत्व किया। भगवान राम भारतीय संस्कृति के ऐसे नायक है जिन्होंने समाज के सुख-दुख और उसकी रचना को बहुत नजदीक से देखा और समझा है। अयोध्या के राजकुमार और राजा से भी अधिक बड़ी भूमिका इस जननायक में दिखाई देती है। भगवान राम ने राष्ट्र के सोए हुए भाग्य को जगाने का काम किया।

श्री राम चंद्र जी ने  अपने शासनकाल में लोगों को हर तरह की सुविधा मुहैया करने के लिए एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की, जिसे सदियों से राम राज्य कहा गया है, जहां किसी भी तरह का भेदभाव और शोषण नहीं होता था। इसलिए समस्त भारत में बरसों से लोग राम लीलाएं बड़ी खुशी और श्रद्धा से करते आए हैं। प्रभु श्रीराम का आज्ञाकारी पुत्र के रूप में होना, भाइयों का आपसी प्यार, पत्नी का पति के प्रति पूर्ण समर्पण तथा स्वस्थ एवं स्वच्छ समाज के निर्माण का संदेश वर्तमान युग के लिए बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

‘राम’ एक आदर्श पुरुष रूप में जन-जन में समाए हुए हैं। यही नहीं प्रभु श्रीराम हमारी सोच में बसे हुए हैं। भगवान राम ने अपने जीवन में किसी भी चीज का मोह नहीं रखा और त्याग को सर्वोपरि माना। भगवान राम ने राजपाट का ही नहीं, अपनी पत्नी प्रिय सीता का ‘लोक-संग्रह’ के लिए त्याग कर दिया। राम मंदिर भारतीय संस्कृति की समृद्ध परम्परा का प्रतीक है। राम की सुंदर छवि के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती है।

– प्रज्ञा पाण्डेय

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