Prajatantra: 131 सीट और हिंदुत्व कार्ड, दक्षिण में BJP का प्लान जमीन पर उतारने में जुटे PM मोदी

2024 चुनाव की घोषणा में बस कुछ दिनों का वक्त बचा हुआ है। हालांकि भाजपा जहां कमजोर है वहां अपनी पकड़ को मजबूत करने की कोशिश में जुटी हुई है। पूरी दुनिया की नजर इस वक्त 22 जनवरी को अयोध्या पर है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण भारत में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी हैं। मोदी का दक्षिण भारत राज्यों का दौरा जबरदस्त तरीके से हो रहा है। इसे भाजपा के मिशन दक्षिण से जोड़ा जा रहा है। भाजपा 2024 के चुनाव में 400 पार्क का नारा पहले ही दे चुकी है। हालांकि यह बात में सच है कि तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में अभी भी भाजपा को अपनी उपस्थिति मजबूत करने की कवायत करनी पड़ रही है। यही कारण है कि दक्षिणी राज्यों पर फोकस करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद वहां की कमान संभाल चुके हैं। 

पीएम मोदी की मेहनत

हिंदी पट्टी पर अपनी पकड़ दोहराने और अयोध्या में राम मंदिर की प्रतिष्ठा के करीब आने पर उत्साह बढ़ाने के बाद, पीएम मोदी ने दक्षिणी राज्यों की लगातार यात्राएं कर रहे हैं जिसमें पारंपरिक स्थानीय पोशाक में मंदिर के दौरे, रोड शो, परियोजनाओं की घोषणा और यहां तक ​​​​कि लक्षद्वीप में स्नोर्केलिंग भी शामिल है। मोदी मंदिर दर्शन के जरिए दक्षिण में हिन्दुत्व को भी धार देने की कोशिश में हैं। संसद में सेंगोल से लेकर काशी तमिल संगम और कई अन्य कार्यक्रमों तक, दक्षिणी संस्कृतियों को लेकर भाजपा का प्लान 2024 में वोटों में तब्दील करना है। यह सिर्फ सीट को लेकर ही नहीं है बल्कि दक्षिण में भाजपा की पकड़ को मजबूत करने पर भी इसका जोर है। उत्तर भाजपा की तुलना में हिंदुत्व को दक्षिणी राज्यों में पैर जमाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है, जहां क्षेत्रीय दलों और हिंदी थोपे जाने के विरोध से पैदा हुई मजबूत भाषाई पहचानों का वर्चस्व है। यहां तक ​​कि कर्नाटक में भी, जो एकमात्र दक्षिणी राज्य है जहां भाजपा सत्ता में रह चुकी है, पार्टी क्षेत्रीय भाषा और पहचान पर कायम रही है। 

दक्षिण पर फोकस

दक्षिणी क्षेत्र – आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और लक्षद्वीप – की 131 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 2019 में 29 सीटें जीतीं। जबकि यह कांग्रेस द्वारा जीती गई 28 सीटों से एक सीट अधिक है। इससी के पता चलता है कि भाजपा के लिए दक्षिण कितना महत्वपूर्ण है। भाजपा की 28 में से 25 सीटें कर्नाटक से और चार तेलंगाना से आईं। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की 65 सीटों पर पार्टी की उपस्थिति शून्य थी और वह पूरी तरह से एक क्षेत्रीय सहयोगी पर निर्भर थी। केरल की 20 सीटों में उसे एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन केवल त्रिशूर, पथानामथिट्टा और तिरुवनंतपुरम सीटों पर उसे 28, 27 और 30 प्रतिशत का अच्छा-खासा वोट शेयर मिला। हाल में देखे तो कांग्रेस को कर्नाटक और तेलंगाना चुनावों में निर्णायक जीत मिली है, जबकि भाजपा हिंदी पट्टी में निर्णायक रूप से जीत हासिल करने में कामयाब रहीं। हालांकि, इसने भाजपा के लिए दक्षिण संकट को और बढ़ा दिया है।

तमिलनाडु बड़ी चुनौती

मोदी के दौरे से यह साफ संदेश जा रहा है कि भाजपा दक्षिण में लड़ाई नहीं छोड़ेगी, यहां तक ​​कि तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी पार्टी खुद को मजबूत कर रही है जहां उसे पैर जमाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। यहां सहयोगी दल के रूप में अन्नाद्रमुक को खोने के बावजूद, भाजपा राज्य भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई के नेतृत्व पर अड़ी हुई है। अन्नाद्रमुक ने स्पष्ट रूप से अन्नामलाई के कार्यों और द्रविड़ विचारधारा और आंदोलन के प्रतीकों को चुनौती देने वाले बयानों को विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया था। तथ्य यह है कि भाजपा ने राज्य में कभी भी महत्वपूर्ण वोट शेयर नहीं जीते हैं। यही कारण है कि पार्टी अपने स्थानीय नेता के पीछे खड़े रहने और अपनी वैचारिक पहचान और नेतृत्व को बढ़ाने पर अड़ी रही। ऐसी अटकलें हैं कि पीएम तमिलनाडु की रामनाथपुरम सीट से चुनाव लड़ सकते हैं, यह दूसरी सीट मंदिर शहर रामेश्वरम होगी। प्रधानमंत्री वहां दौरे पर भी जाने वाले हैं। 

केरल, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश 

केरल में त्रिशूर, पथानामथिट्टा और तिरुवनंतपुरम जैसी सीटों पर कब्जा करने पर है, जहां पार्टी ने 2019 में अच्छा वोट शेयर हासिल किया था। यहां भाजपा वाम और कांग्रेस के खिलाफ मैदान में उतरना चाहती है। यहां भी ऐसी अटकलें हैं कि भाजपा स्थिति को मजबूत करने के लिए अपने शीर्ष कैबिनेट मंत्रियों में से एक को मैदान में उतार सकती है। इन सीटों पर हिंदू वोट एक आधारशिला है, लेकिन पार्टी पीएम की यात्राओं के दौरान महिला मतदाताओं तक पहुंच रही है। 2019 में तेलंगाना की 19 सीटों में से चार सीटें जीतने और 2023 में अब तक की सबसे अधिक आठ विधानसभा सीटें जीतने के बाद, भाजपा ने राज्य पर ध्यान केंद्रित किया है। आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों पर, जहां एक साथ विधानसभा चुनाव होंगे, वहां सहयोगी की तलाश खुली दिख रही है।

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