Prajatantra: मोदी को टक्कर देना मुश्किल! सीट शेयरिंग से ज्यादा INDI गठबंधन के लिए ये है बड़ी चुनौती

इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत लगातार जारी है। हालांकि, यह निर्णायक रूप से आकार कब लेगा और इसका खुलासा कब किया जाएगा, इसको लेकर अभी भी संशय की स्थिति बरकरार है। सभी राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी मांग है और अपने-अपने दावे हैं। सभी मिलकर चुनाव लड़ने की बात तो कहते हैं लेकिन कुर्बानी देने की बजाए एक दूसरे पर भी दबाव बनाते दिखाई दे जाते हैं। पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा ऐसे राज्य है जहां इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारा एक टेढ़ी खीर है। इंडिया गठबंधन के लिए सिर्फ सीट बंटवारा ही मुश्किलों वाला नहीं है। इसके बाद भी कई चुनौतियां हैं जिस पर इंडिया गठबंधन के लिए राह कठिन दिखाई दे रहा है। 

मोदी का मुकाबला कैसे

इंडिया गठबंधन की ओर से साफ तौर पर बार-बार दावा किया जा रहा है कि हम देश में लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं को बचाने के लिए एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, मोदी से मुकाबला करने के लिए उनके पास क्या ठोस मुद्दे रहेंगे, इस सवाल का जवाब अब भी नहीं मिल पाया है। अगर देखा जाए तो विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ व्यापक रूप से कई चुनाव में नोटबंदी, जीएसटी, कृषि कानून, कोविड लहर के दौरान सरकार की नाकामयाबी, राफेल और अडानी मुद्दा को जबरदस्त तरीके से उठाया गया है। बावजूद इसके विपक्ष को कामयाबी नहीं मिल सकी है। 2019 के चुनाव में राहुल गांधी ने राफेल को जोर-जोर से उठाया लेकिन कांग्रेस की स्थिति खराब की खराब ही रही। नोटबंदी के ठीक बाद उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में चुनाव हुए थे जहां भाजपा को जबरदस्त तरीके से सफलता मिली थी। कृषि कानून को लेकर देश भर के कई हिस्सों में प्रदर्शन जरूर हुआ लेकिन चुनाव में इसका असर सरकार के खिलाफ नहीं दिखा। ऐसे में विपक्ष के सामने यह सवाल बना हुआ है कि मोदी को हराने के लिए आखिर वह मुद्दा कौन सा उठाएंगे?

पहले से ले सकते हैं सबक

पहले के चुनाव में देखें तो कुछ मुद्दे ऐसे रहे हैं जिससे सरकार और पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है। 1967 में देखे तो कांग्रेस जबरदस्त तरीके से मजबूत रही। हालांकि भारत कई मोर्चों पर संकटों से जूझ रहा था और यही कारण था कि कांग्रेस पार्टी को पहली बार 300 से कम सीटें मिली थी। हालांकि, विपक्ष के पास कोई प्रतिद्वंदी या विकल्प नहीं था। इसके अलावा विपक्ष ने बोफोर्स घोटाले को इतना बड़ा मुद्दा बना दिया कि राजीव गांधी के लिए कई चुनौतियां खड़ी हो गई थी। हालांकि, इस घोटाले से संबंधित ऐसे कई सवाल है जो आज भी अनसुलझे हैं। इतना ही नहीं, मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भाजपा ने जिस तरीके से कोयला घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला और 2G घोटाले को मुद्दा बनाया, इससे पार्टी ने 2014 के चुनाव में जबरदस्त कामयाबी हासिल की। हालांकि, इन घोटालों को लेकर जांच कहा तक पहुंची, इस पर सवाल बना हुआ है। वर्तमान में देखें तो मोदी सरकार के खिलाफ किसी एक मुद्दे को विपक्ष को भुनाने की आवश्यकता होगी और विपक्ष के लिए इस मुद्दे को तलाश पाना भी मुश्किल सा दिखाई दे रहा है। हालांकि, यह अभियान लंबा होता है और अब तक इसकी रूपरेखा तैयार हो जानी चाहिए थी। विपक्ष जिन मुद्दे को उठा रहा है उनमें लोकतंत्र, संविधान और संघीय ढांचे की दुहाई जमकर दी जा रही है।

न्याय यात्रा से बदलेगा माहौल

राहुल गांधी मणिपुर से लेकर मुंबई तक न्याय यात्रा निकालने जा रहे हैं। यह भारत जोड़ो यात्रा की अगली कड़ी है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस यात्रा के जरिए भाजपा के खिलाफ कांग्रेस जमीनी स्तर पर मजबूत लड़ाई लड़ती हुई दिखाई देगी। हालांकि, भारत जोड़ो यात्रा का कांग्रेस को कितना फायदा हुआ इस पर पार्टी ने आकलन जरूर किया होगा। दावे किए जाते हैं कि कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस को जो जीत मिली है उसमें भारत जोड़ो यात्रा की अहम भूमिका रही है। लेकिन भारत छोड़ो यात्रा के बाद से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों को कांग्रेस ने खोया भी है। ऐसे में कांग्रेस के लिए मोदी और भाजपा के खिलाफ रणनीति तैयार करना बेहद जरूरी है। 

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