Prajatantra: गिरता ग्राफ, नेताओं का छुटता साथ, गठबंधन से दूरी… भवीष्य को लेकर क्या है मायावती की रणनीति

उत्तर प्रदेश की राजनीति बेहद दिलचस्प रही है। उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के लिहाज से बेहद अहम ही रहता है। देश में सबसे ज्यादा सीटे उत्तर प्रदेश में ही है। उत्तर प्रदेश की राजनीति दिल्ली को भी प्रभावित करती है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश पर हर किसी की नजर होती है। देश जब लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है तो ऐसे में उत्तर प्रदेश की चर्चा दिलचस्प तरीके से हो रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन और कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की इंडिया गठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला होना है। हालांकि, एक समय उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ी ताकत रही बहुजन समाज पार्टी भी कुछ बड़ा खेल कर सकती हैं। लेकिन इसकी संभावनाएं भी लगातार घटती जा रही है। आज के प्रजातंत्र कार्यक्रम में हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि लोकसभा चुनाव को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती की रणनीति क्या है और राज्य में पार्टी की वर्तमान स्थिति पर भी नजर डालेंगे। 

मिल रहा झटके पर झटका

उत्तर प्रदेश में देखा जाए तो बहुजन समाजवादी पार्टी की हालत बहुत अच्छी नहीं दिखाई दे रही है। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया था। बसपा ने उस समय 10 लोकसभा की सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन वर्तमान में देखें तो उसके एक-एक सांसद पार्टी से दूरी बनाते दिखाई दे रहे हैं। हाल में ही बहुजन समाज पार्टी को बड़ा झटका देते हुए अंबेडकर नगर से सांसद रितेश पांडे भाजपा में शामिल हो गए। अमरोहा से सांसद कुंवर दानिश अली पहले ही पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते निकल जा चुके हैं। उनके कांग्रेस में जाने की संभावनाएं हैं। गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी को सपा ने 2024 के लिए अपना उम्मीदवार बना दिया है। जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव को लेकर कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा है। एक अन्य सांसद मलूक नागर जो मीडिया में खूब रहते हैं, उनकी नजदीकिया आरएलडी से बढ़ रही है। लालगंज लोकसभा सीट से सांसद संगीता आजाद को लेकर भी चर्चाओं का दौर जारी है कि वह भाजपा में शामिल हो सकती हैं।

बसपा की स्थिति

उत्तर प्रदेश में बसपा की स्थिति लगातार कमजोर होती दिखाई दे रही है। जिस दलित वोट के दम पर मायावती ने उत्तर प्रदेश में जबरदस्त राजनीति की थी, आज वही दलित भाजपा और सपा के पक्ष में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसी वजह से मायावती को लगातार चुनाव में नुकसान हो रहा है। 2007 में जिस बसपा ने अकेले अपने दम पर विधानसभा का चुनाव जीता था, आज वही सिर्फ एक सीट पर सिमट चुकी है। इसका बड़ा कारण यह है कि मायावती के करीबी नेता लगातार पार्टी छोड़ते दिखाई दे रहे हैं। पार्टी का प्रदर्शन लगातार कमजोर हो रहा है। नेताओं को अपने भविष्य की चिंता है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 19.57 फ़ीसदी वोट हासिल करने वाली बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव में 12 फ़ीसदी वोट ही हासिल कर पाई। 

गठबंधन से दूरी

मायावती लगातार गठबंधन से दूरी बनती हुई दिखाई दे रही है। वह ना तो भाजपा के साथ गठबंधन के पक्ष में दिखाई दे रही हैं और ना ही समाजवादी पार्टी के गठबंधन में वह शामिल होना चाहती हैं। लेकिन मायावती के साथ दिक्कत यह है कि वह जमीन से कटी हुई नजर आ रही हैं। जमीन पर पहले जैसी पकड़ नहीं होने के बावजूद भी मायावती अपनी शर्तों पर किसी के साथ गठबंधन करना चाहती है। उनके करीबी नेताओं की ओर से यह भी कहा जाता है कि मायावती को विपक्ष गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री घोषित कर दिया जाए फिर बसपा इंडिया गठबंधन में शामिल होगी। उनके साथ एक वर्ग का वोट अभी भी है, बावजूद इसके वह जमीन पर संघर्ष करती हुई दिखाई नहीं देती हैं। ऐसे में अगर मायावती अकेले लोकसभा चुनाव में उतरती हैं तो उन्हें इस बार भी कुछ खास फायदा होता दिखाई नहीं दे रहा है। यही कारण है कि बसपा के सारे सांसद नए ठिकाने की तलाश कर रहे हैं। उन्हें यह भी लगता है कि शायद ही उन्हें दोबारा टिकट दिया जाए। 

मायावती के मन में क्या

वर्तमान में देखें तो मायावती की पार्टी बसपा का हाल उत्तर प्रदेश में ठीक वैसा ही है, जैसा कांग्रेस का है। हालांकि कांग्रेस के बड़े नेता जमीन पर संघर्ष करते हुए दिखाई दे जाते हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती के नुकसान से सीधा फायदा बीजेपी को हो रहा है। मायावती की ओर से कुछ ताकत भी नहीं लगाई जाती जिसकी वजह से उन पर भाजपा के साथ पर्दे के पीछे सांठगांठ का आरोप भी लग जाता है। मायावती ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर भतीजे आकाश आनंद को बढ़ाने की शुरुआत कर दी है। यह मायावती के करीबी नेताओं को बर्दाश्त भी नहीं हो रहा है। आकाश आनंद की भूमिका  कि उस समय कड़ी परीक्षा दिखाई दे रही थी, जब सांसद पार्टी का साथ छोड़ रहे थे, आकाश आनंद ने उन्हें रोकने के लिए कोई ठोस कदम भी नहीं उठाया। यही कारण है 2024 चुनाव के बाद मायावती की राजनीति का आगे क्या होगा, इससे भी पर्दा उठ सकता है। 

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