राजनीति और चुनावों में रुचि रखने वाले अधिकांश लोगों के दिमाग में एक सवाल है: 2024 में क्या होगा? लोकसभा में बीजेपी को कितनी सीटें मिलेंगी? क्या दक्षिण भारत का राजनीतिक परिदृश्य उत्तर भारत जैसा ही होगा? राजनीति में कहावत भी है कि सफल नेता वही है जो ज़मीनी स्तर पर अपनी ताकत और कमजोरियों को समझता है। यही कारण है कि भाजपा अपने दक्षिण के अभियान को धार देने की कोशिश कर रही है। अगर भाजपा को आगामी चुनाव में 400 पार जाना है तो उसके लिए दक्षिण को साधना बेहद की जरूरी है।
भाजपा की दक्षिण की संभावनाएं
शुरुआत कर्नाटक से, जहां भाजपा पहले भी कई बार सत्ता में रह चुकी है; वर्तमान में, कांग्रेस कर्नाटक में शासन कर रही है, लेकिन हाल के महीनों में, भाजपा विशेष रूप से राज्य पर ध्यान केंद्रित कर रही है। उन्होंने बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को बागडोर सौंपी है। असंतुष्ट नेताओं को पार्टी में वापस लाने की कोशिशें चल रही हैं। इस बार हर सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है। पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. के नेतृत्व में जनता दल (सेक्युलर) देवेगौड़ा भी एनडीए के जहाज पर सवार हो गए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में जद(एस) का प्रभाव कम होता दिख रहा था। इसी तरह, तेलंगाना में कांग्रेस के रेवंत रेड्डी बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालाँकि, हाल के वर्षों में बीजेपी जिस तरह से तेलंगाना में काम कर रही है, उससे पता चलता है कि पार्टी टीआरएस को पीछे छोड़कर राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने की राह पर है। आंध्र प्रदेश में बीजेपी की मौजूदगी फिलहाल बहुत कम है। हाल के वर्षों में राज्य की राजनीति में जगनमोहन रेड्डी का कद काफी बढ़ा है। लेकिन टीडीपी के साथ गठबंधन को लेकर बातचीत जारी है। तमिलनाडु में सियासी घमासान के बीच बीजेपी संभावनाओं के दरवाजे खोलती नजर आ रही है। के अन्नामलाई के जरिए पार्टी वहां पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में बीजेपी एआईएडीएमके के असंतुष्ट नेताओं को वापस लाकर गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है। केरल में आरएसएस के स्वयंसेवक लंबे समय से काम कर रहे हैं. माना जा रहा है कि केरल के प्रभावशाली नायर समुदाय का झुकाव बीजेपी की ओर है। समय-समय पर राज्य की वामपंथी सरकार के प्रति जनता में असंतोष देखने को मिलता रहा है। ऐसे में बीजेपी को दो या तीन लोकसभा सीटों पर कड़ी चुनौती मिल सकती है।
दक्षिण पर फोकस
दक्षिणी क्षेत्र – आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और लक्षद्वीप – की 131 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 2019 में 29 सीटें जीतीं। जबकि यह कांग्रेस द्वारा जीती गई 28 सीटों से एक सीट अधिक है। इससी के पता चलता है कि भाजपा के लिए दक्षिण कितना महत्वपूर्ण है। भाजपा की 28 में से 25 सीटें कर्नाटक से और चार तेलंगाना से आईं। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की 65 सीटों पर पार्टी की उपस्थिति शून्य थी और वह पूरी तरह से एक क्षेत्रीय सहयोगी पर निर्भर थी। केरल की 20 सीटों में उसे एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन केवल त्रिशूर, पथानामथिट्टा और तिरुवनंतपुरम सीटों पर उसे 28, 27 और 30 प्रतिशत का अच्छा-खासा वोट शेयर मिला। हाल में देखे तो कांग्रेस को कर्नाटक और तेलंगाना चुनावों में निर्णायक जीत मिली है, जबकि भाजपा हिंदी पट्टी में निर्णायक रूप से जीत हासिल करने में कामयाब रहीं। हालांकि, इसने भाजपा के लिए दक्षिण संकट को और बढ़ा दिया है।
भाजपा का लक्ष्य
भाजपा के मुताबिक उसका लक्ष्य लोकसभा चुनाव में पांच दक्षिणी राज्यों से कम से कम 40-50 सीटें हासिल करना है। भाजपा नेता ने दावा किया कि हम कर्नाटक में अपनी सीटें (25) बरकरार रखेंगे क्योंकि लोगों ने सिद्धारमैया सरकार पर से जल्द ही विश्वास खो दिया है और हार के बावजूद हमने विधानसभा चुनावों में वोट शेयर नहीं खोया है। भाजपा तेलंगाना में 2019 से भी बेहतर प्रदर्शन करेगी जब हमने चार लोकसभा सीटें जीती थीं। हमें केरल और तमिलनाडु के साथ-साथ आंध्र प्रदेश में भी कुछ सीटें जीतने की उम्मीद है। उन्होंने दावा किया कि चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे शीर्ष नेताओं की रैलियों में मजबूत ‘दक्षिण फोकस’ होगा और मोदी के नाम पर वोट मांगा जाएगा।
क्या कर रही भाजपा
भाजपा हर हाल में चुनावी साल में सिर्फ और सिर्फ हिंदी बेल्ट की पार्टी वाली इमेज से बाहर निकालने की कोशिश में है। यही कारण है कि पार्टी ने विपक्ष का दक्षिणी दुर्ग भेदने के लिए अपने सबसे बड़े चेहरे पीएम मोदी को सीधे मैदान में उतार दिया है। दक्षिण में खुद को स्थापित करने के लिए भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस और केंद्र सरकार की विकास योजनाओं को प्रचार में शामिल करते दिखाई दे रही है। तमिलनाडु की राजनीति को ध्यान में रखते हुए ही पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी को केंद्र बनाकर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बुनियाद तैयार की गई है और काशी तमिल संगमम का आयोजन हुआ। भाषा को लेकर जो विवाद चल रहा है वह बीजेपी की राह में बाधा ना बने, इसको लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तमिलनाडु की भाषा की तारीफ कर रहे हैं। इसी कड़ी में भाजपा लोकप्रिय चहरों को भी अपने साथ दक्षिण में जोड़ रही है जिसमें पीटी ऊषा, इलैयाराजा, वीरेंद्र हेगड़े और वी विजयेंद्र प्रसाद शामिल है। इसके अलावा हाल में ही मोदी सरकार ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री और आर्थिक सुधारों के जनक पीवी नरसिम्हा राव तथा मशहूर कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है। ये दोनों दक्षिण से ही आते हैं। ऐसे में भाजपा फायदे की उम्मीद कर रही है।
राजनीति और समय दोनों अपनी गति से आगे बढ़ते रहते हैं। राजनेता और आम आदमी समान रूप से इस प्रवाह के भीतर अपने लिए बेहतर अवसर तलाशते रहते हैं। बुद्धिजीवी और राजनीतिक पंडित लगातार नतीजों के आधार पर स्थिति का विश्लेषण करने में लगे हुए हैं। 2024 की गतिशीलता को समझने में दो घटनाओं का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है।