ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने सोमवार को औपचारिक रूप से भारतीय जनता पार्टी के साथ अपनी साझेदारी तोड़ दी। चेन्नई में अन्नाद्रमुक मुख्यालय में घटी नाटकीय घटनाओं के लिए मुख्य रूप से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई को जिम्मेदार ठहराया गया। सोमवार को, अन्नाद्रमुक ने भाजपा के राज्य नेतृत्व द्वारा की गई प्रतिकूल टिप्पणियों का हवाला देते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ने का प्रस्ताव पारित किया। पार्टी ने कहा, “भाजपा का राज्य नेतृत्व पिछले एक साल से हमारे पूर्व नेताओं, हमारे महासचिव ईके पलानीस्वामी और हमारे कार्यकर्ताओं पर लगातार अनावश्यक टिप्पणियां कर रहा है।” भविष्य की बातचीत और सुलह की संभावना के लिए अपनी स्थिति को मजबूत करने के इरादे से 2024 के लोकसभा चुनाव पहले एआईएडीएमके नेतृत्व ने सोमवार को अपनी ताकत और संकल्प का प्रदर्शन किया है। अन्नाद्रमुक ने इस बारे में भी चुप्पी साध रखी है कि क्या वह भविष्य में भाजपा के साथ संभवत: अन्नाद्रमुक की शर्तों पर फिर से गठबंधन करने पर विचार करेगी।
गठबंधन की कहानी
अन्नाद्रमुक और भाजपा पहले 1998 और 1999 के बीच और 2004 के लोकसभा चुनावों के लिए केंद्र में गठबंधन भागीदार थे। हालाँकि, जब हिंदुत्व पार्टी 2014 में केंद्र में सत्ता में लौटी तो अन्नाद्रमुक भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में दोबारा शामिल नहीं हुई। 2016 के अंत में एआईएडीएमके सुप्रीमो जे जयललिता की मृत्यु के बाद, पार्टी जो उस समय तमिलनाडु में सत्ता मे थी में गुटबाजी शुरू हो गया। पार्टी एनडीए में शामिल हुए बिना संसद में भाजपा को नीति-आधारित समर्थन दिया। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले औपचारिक रूप से गठबंधन किया, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। उनका गठबंधन तमिलनाडु और पुडुचेरी की 40 लोकसभा सीटों में से 39 हार गया। 2021 के तमिलनाडु चुनावों में भी, अन्नाद्रमुक ने राज्य की 234 सीटों में से सिर्फ 66 सीटें जीतीं। बीजेपी ने चार सीटें जीतीं।
ऐसे पड़ी दरार
गठबंधन काफी समय से अस्थिर चल रहा था। मार्च में, भाजपा की राज्य इकाई कई वरिष्ठ पदाधिकारियों को अपने पाले में करने को लेकर अन्नाद्रमुक से नाराज थी। दूसरी ओर, अन्नामलाई द्वारा अपनाई गई आक्रामक राजनीति ने बार-बार अन्नाद्रमुक को नाराज किया। जून में, अन्नाद्रमुक ने जयललिता के बारे में उनकी एक और टिप्पणी के लिए अन्नामलाई की आलोचना करते हुए एक प्रस्ताव भी अपनाया था। इन तनावपूर्ण संबंधों को अन्नाद्रमुक की इस चिंता से भी आकार मिला था कि राज्य की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने की भाजपा की इच्छा के लिए यह उसकी कीमत होगी। ऐतिहासिक रूप से, भाजपा की राज्य में बहुत अधिक उपस्थिति नहीं रही है। 2021 के विधानसभा चुनाव नतीजों से पता चला कि गठबंधन से अन्नाद्रमुक को कोई मदद नहीं मिली। इसके बजाय, इसने भाजपा को तमिलनाडु में पैर जमाने में सक्षम बनाया। 2022 में, भाजपा ने अकेले तमिलनाडु का नागरिक चुनाव लड़ा। तब से भाजपा ने खुद को राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में पेश किया है। जून 2022 में, भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष वीपी दुरईसामी ने दावा किया कि अन्नाद्रमुक विपक्ष के रूप में अपने काम में विफल रही है और भाजपा के चार विधानसभा सदस्य “बेहतर काम कर रहे हैं”।
मतभेद
भाजपा के साथ गठबंधन ने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के इच्छुक छात्रों के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा जैसे भावनात्मक मुद्दों पर अन्नाद्रमुक को मुश्किल परिस्थितियों में डाल दिया। प्रतिद्वंद्वी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने तमिलनाडु के लिए NEET से छूट की मांग की है। एआईएडीएमके को इसी तरह की आलोचना का सामना करना पड़ा था जब उसने 2019 के अंत में संसद में भाजपा सरकार के विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन किया था। दबाव में, एआईएडीएमके ने 2021 के राज्य चुनावों से पहले अपना रुख बदल दिया। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों सहयोगियों में बुनियादी वैचारिक मतभेद थे। जबकि एआईएडीएमके द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की तरह एक द्रविड़ पार्टी है, भाजपा एक हिंदुत्व पार्टी है जो द्रविड़ विचारधारा का विरोध करती है। अन्नामलाई से एआईएडीएमके के संबंध एक साल से ज़्यादा वक़्त से ख़राब चल रहे हैं। यह एमके स्टालिन की डीएमके के लिए अच्छी ख़बर है। ऐसे में एंटी- डीएमके वोट एआईएडीएमके और बीजेपी में बँट जाएगा।
विपक्ष का वार
कपिल सिब्बल ने एआईएडीएमके के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से बाहर निकलने के बाद भाजपा पर निशाना साधा और कहा कि एक और सहयोगी ने उन्हें छोड़ दिया है और जो अब भी उनके साथ हैं, वे ‘‘अवसरवादी गठबंधन हैं जिनका वैचारिक रूप से कोई जुड़ाव नहीं है।’’ तमिलनाडु के मंत्री और डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन ने एनडीए गठबंधन से बाहर निकलने के फैसले के बाद एआईएडीएमके और बीजेपी पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियाँ फिर से चुनाव लड़ने के लिए एक साथ आ सकती हैं क्योंकि एक डाकू है और दूसरा चोर है। शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा है कि एनडीए गठबंधन की असली ताकत शिवसेना और अकाली दल थी। राउत ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले और भी पार्टियां भाजपा से नाता तोड़ लेंगी। उन्होंने कहा कि अगले साल आम चुनाव से पहले बीजेपी हार जाएगी। उन्होंने कहा कि जब हमने इंडिया गठबंधन बनाया तब उन्हें एनडीए की याद आई… तब तक यह था ‘मोदी अकेले काफी है’। चल रहा था।
तमिलनाडु में एआईएडीएमके और भाजपा गठबंधन को वैसी सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद दोनों ओर से की जा रही थी। इसके बाद भाजपा वहां लगातार के अन्नामलाई के नेतृत्व में अपने लिए जमीन को मजबूत करने में जुटी हुई है। यह कहीं ना कहीं एआईएडीएमके को भी कमजोर कर रहा था। फिलहाल भविष्य की रणनीति को लेकर एआईएडीएम के एनडीए से अलग तो हो गई है लेकिन जनता का कितना समर्थन उसे आगे मिल पाएगा, इस पर सभी की नजर होगी। यही तो प्रजातंत्र है।