Prajatantra: कैसे खालिस्तानियों का गढ़ बन गया Canada, भारत से बिगड़े रिश्ते तो क्या होगा?

भारत और कनाडा के बिगड़ते रिश्तों का असर सबसे ज्यादा व्यापार पर पड़ेगा। 2021-22 की बात करें तो दोनों मुल्कों के बीच सात अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। वही 2022-23 के शुरुआती 6 महीना में ही दोनों देशों के बीच 8.16 का व्यापार हो चुका है।

भारत और कनाडा के बीच रिश्ते लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। मामले की शुरुआत तब हुई जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की तरफ से खालिस्तान अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय हाथ होने का आरोप लगाया गया। इसके बाद कनाडा की ओर से एक भारतीय राजनयीक को निष्कासित किया गया। भारत ने भी इसका करारा जवाब दिया और कनाडा के एक राजनीतिक को 5 दिनों के भीतर देश छोड़ने को कह दिया। साथ ही साथ भारत में ट्रूडो की टिप्पणियों को बेतुका और प्रेरित कहकर खारिज कर दिया। हाल में जब जस्टिन ट्रूडो भारत दौरे पर आए थे तब भी उनके समक्ष उनके देश में जो खालिस्तान समर्थकों को पनाह दी जा रही है, उसका मुद्दा उठाया गया था। 

कनाडा में कैसे मजबूत हुआ खालिस्तान

कनाडा समाज में देखें तो भारतीयों की आबादी बहुत ज्यादा है। खासकर वहां सिखों की आबादी ज्यादा है। सिखों की आबादी की बात करें तो देश की कुल जनसंख्या के दो प्रतिशत है। जब भारत में 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन चरम पर था तो सिखों ने राजनीतिक उत्पीड़न का हवाला देते हुए कनाडा में शरणार्थी का दर्जा देने की मांग की थी। भारत में खालिस्तानियों के सफाए के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया। यह ऑपरेशन तो सफल रहा। लेकिन इसके परिणाम स्वरूप 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। इसके बाद भारत में सिख दंगे भड़क गए थे। खालिस्तान समर्थकों पर देश में कार्रवाई जारी थी। इसके बाद कई खालिस्तानी समर्थक कनाडा में शरण लेने लगे। वे लगातार भारत विरोधी अभियान को चलाने की कोशिश करते रहे। इसमें उन्हें वित्तीय संसाधनों, समर्थन और रणनीति की भी जरूरत पड़ी। उनकी मदद के रूप में पाकिस्तान का आईएसआई सामने आया। कनाडा खालिस्तान नेताओं के लिए पाकिस्तान की यात्रा करने और पाकिस्तान के इसी के अपने आकाश से मिलने और ट्रेडिंग लेने के लिए एक सुविधाजनक स्थान के रूप में साबित हुआ। भारत में 1990 के दशक में खालिस्तान आंदोलन पूरी तरीके से खत्म हो गया। लेकिन कनाडा में कुछ कट्टरपंथियों की तरफ से फलता फूलता रहा। कनाडा में सिख समुदाय की संख्या ज्यादा है। इसलिए पाकिस्तान की ओर से अलगाववादी नेताओं को कनाडा शिफ्ट किया जाने लगा ताकि उन्हें वित्तीय मदद मिल सके। तभी से यह अलगाववादी कनाडा में भारत का विरोधी साजिश रचते रहते हैं।

हाल की घटनाए

बीते कुछ समय से खालिस्तानी दोबारा एक्टिव होते जा रहे हैं। कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों ने अपनी आवाज को बुलंद किया है। मार्च महीने में ब्रिस्बेन में श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर पर हमला सबसे हालिया घटना थी। कनाडा में कई हिंदू धार्मिक स्थलों को बर्बरता और भारत विरोधी नारों के साथ निशाना बनाया गया है। इसके अलावा, पिछले साल न्यूयॉर्क में एक हिंदू मंदिर के बाहर महात्मा गांधी की मूर्ति को तोड़ दिया गया था। इसके अलावा, पिछले साल से, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में एक स्वतंत्र खालिस्तान राज्य की वकालत करने वाले जनमत संग्रह आयोजित किए गए हैं। भारत द्वारा इस तरह के जनमत संग्रह के संभावित परिणामों के बारे में चिंता व्यक्त करने के बावजूद, इन देशों की सरकारों ने इसे अपने नागरिकों द्वारा लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रयोग के रूप में उद्धृत करते हुए अनुमति देने का फैसला किया।

पन्नू की धमकी

दिलचस्प बात यह भी है कि जिस दिन कनाडा के प्रधानमंत्री की मोदी से मुलाकात चल रही थी, उस दौरान ट्रूडो के देश में भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिश की जा रही थी। अलगाववादी समूह सिख फॉर जस्टिस ने रविवार को कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में एक गुरुद्वारे में खालिस्तान जनमत संग्रह का आयोजन तक कर डाला। इस दौरान सिख फॉर जस्टिस का नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू भी वहां मौजूद रहा। उसने प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और विदेश मंत्री तक को धमकी दे दी और साफ तौर पर कहा कि 1 दिन वह दिल्ली को खालिस्तान में बदल कर ही दम लेगा। दिलचस्प बात यह भी है कि पन्नू को कनाडा के सुरक्षा गार्डों की एक टीम से सुरक्षा मिली हुई है। 

किस पर होगा असर

भारत और कनाडा के बिगड़ते रिश्तों का असर सबसे ज्यादा व्यापार पर पड़ेगा। 2021-22 की बात करें तो दोनों मुल्कों के बीच सात अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। वही 2022-23 के शुरुआती 6 महीना में ही दोनों देशों के बीच 8.16 का व्यापार हो चुका है। तनाव की वजह से भारत और कनाडा के बीच मुफ्त व्यापार समझौते पर चल रही बातचीत भी रुक गई है। इसके बाद सबसे ज्यादा असर कनाडा में पंजाबी किसानों पर भी पड़ेगा। कनाडा के एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर और डेयरी फार्मिंग सेक्टर में पंजाबियों का पूरी तरीके से दबदबा है। उनके खेतों और बागवानी से जुड़े उत्पादों को भारत में सप्लाई किया जाता है। इसका सीधा फायदा वहां रहने वाले किसानों को मिलता है। दोनों देशों के बीच रिश्ते बिगड़ते हैं तो सबसे ज्यादा असर उन्हीं पर पड़ेगा। साथ ही साथ पंजाब के तकरीबन 1.60 लाख स्टूडेंट कनाडा में पढ़ाई करते हैं। उन पर भी इसका असर पड़ेगा। अगर भारत के छात्र कनाडा नहीं जाते हैं तो इसका असर वहां की अर्थव्यवस्था पर आएगा। इसके अलावा कनाडा में बढ़ते खालिस्तान के प्रभाव की वजह से पंजाब की कानून व्यवस्था पर भी असर पड़ सकता है। 

दुनिया के अन्य हिस्सों में आतंकवाद निर्यात करने का पाकिस्तान का इतिहास अब उसके भीतर ही आंतरिक अस्थिरता पैदा कर रहा है। कनाडा और अन्य देशों के लिए इस प्रवृत्ति को समझना आवश्यक है। जो अलगाववादी ताकतें वर्तमान में भारत का विरोध कर रही हैं वही भविष्य में अन्य देशों के लिए भी खतरा पैदा कर सकती हैं। भारत इस बात को समझता है और आतंक को जड़ से खत्म करने के लिए कदम भी उठा रहा। 

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