Prabhasakshi NewsRoom: संसद से बाहर हुईं Mahua Moitra अब सड़क पर BJP को अपनी राजनीतिक ताकत दिखाएंगी

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले में सदन की सदस्यता से निष्कासित करने का फैसला सराहनीय है। हालांकि इस फैसले को लेने की प्रक्रिया में खामियां निकाली जा रही हैं और आरोपी का पक्ष नहीं सुने जाने जैसे आरोप लगाये जा रहे हैं लेकिन फिर भी प्रथम दृष्टया यह कदाचार का मामला लगता है। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चल रहा है, जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ जनादेश दे रही है, ऐसे में यदि कोई वित्तीय कदाचार में शामिल हो और संसद के नियमों की जानबूझकर अवहेलना करे तो कड़ी कार्रवाई की ही जानी चाहिए थी। देखा जाये तो इस विवाद का असर संसद सत्र की कार्यवाही पर पड़ना निश्चित है। देखना होगा कि क्या संसद का शीतकालीन सत्र अब शांतिपूर्वक चल पाता है या नहीं?

दूसरी ओर, जहां तक महुआ मोइत्रा के व्यक्तिगत जीवन की बात है तो आपको बता दें कि असम के कछार जिले में 1974 में जन्मीं महुआ मोइत्रा की शुरुआती शिक्षा कोलकाता में हुई और फिर वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गयीं। न्यूयॉर्क और लंदन में जेपी मॉर्गन चेज़ में निवेश बैंकर रहीं महुआ मोइत्रा ने राहुल गांधी की ‘‘आम आदमी का सिपाही’’ पहल से प्रेरित हो कर राजनीति का रुख किया। उन्होंने 2009 में कांग्रेस की युवा इकाई में शामिल होने के लिए लंदन में अपना हाई-प्रोफाइल बैंकिंग कॅरियर त्याग दिया। कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई में तैनात की गयीं महुआ मोइत्रा ने पार्टी के नेता सुब्रत मुखर्जी के साथ निकटता से काम किया। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार के खिलाफ बदलाव की बयार के बीच महुआ मोइत्रा और सुब्रत मुखर्जी 2010 के कोलकाता नगर निगम चुनाव से महज कुछ दिन पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए जिसमें ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी ने जीत हासिल की।

2011 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी से टिकट न मिलने के बावजूद महुआ मोइत्रा ने धैर्यपूर्वक इंतजार किया और 2016 के विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने पर करीमपुर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की। उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया लेकिन उनके ओजस्वी भाषण और वाद-विवाद कौशल ने उन्हें राष्ट्रीय मीडिया में पार्टी की प्रमुख प्रवक्ता बना दिया। महुआ मोइत्रा को 2019 में कृष्णानगर लोकसभा सीट से टिकट मिला और वह विजयी हुईं। ज्यादा अनुभव न होने के बावजूद संसद में महुआ मोइत्रा के जोशीले भाषणों ने उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया और वह टेलीविजन पर होने वाली बहसों में टीएमसी की तरफ से सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता बन गयीं।

अपने मन की बात कहने के लिए पहचानी जाने वाली महुआ मोइत्रा को अकसर संगठन के मामलों में पार्टी से मतभेदों का सामना करना पड़ा और ममता बनर्जी ने उन्हें सार्वजनिक रूप से फटकार भी लगायी। पिछले दो साल में विवाद महुआ मोइत्रा का पर्याय बन गए जिसमें पत्रकारों को ‘‘दो कौड़ी’’ का बताने वाली टिप्पणी भी शामिल हैं जिसके कारण स्थानीय बांग्ला मीडिया ने लंबे समय तक उनका बहिष्कार किया था। उन्होंने पिछले साल एक सम्मेलन में देवी काली को मांस खाने वाली और शराब पीने वाली कह कर देशभर में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था। राजद्रोह कानून की मुखर विरोधी महुआ मोइत्रा कानूनी लड़ाइयों में भी सक्रियता से शामिल रही हैं। उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की हुई है।

‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले के बीच महुआ मोइत्रा ने कहा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी की सरकार को चुनौती देने की वजह से परेशान किया गया। उन्होंने भारी जनादेश के साथ संसद में लौटने का संकल्प जताया। भले ही इस विवाद से सांसद के रूप में उनका पहला कार्यकाल अचानक समाप्त हो गया लेकिन टीएमसी के शीर्ष नेतृत्व के अटूट समर्थन के साथ पार्टी के भीतर उनका कद निश्चित रूप से बढ़ा है। विपक्ष भी महुआ मोइत्रा के साथ है। भाजपा के खिलाफ हमले बोलने के दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का उनके साथ खड़े रहना, भारतीय राजनीति के जटिल क्षेत्र में मोइत्रा के प्रभाव को दर्शाता है।

बहरहाल, ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले में संसद से निष्कासित की गईं तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा को 14 साल के राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा। वैसे कुछ समय के लिए संसदीय कॅरियर पर अचानक लगे विराम के बावजूद विपक्ष के अटूट समर्थन ने एक अलग तस्वीर पेश करते हुए वर्तमान भारतीय राजनीति में महुआ मोइत्रा का गहरा प्रभाव दिखाया है। अपने निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए महुआ मोइत्रा ने इस फैसले की तुलना ‘कंगारू अदालत’ द्वारा सजा दिए जाने से करते हुए आरोप लगाया कि सरकार लोकसभा की आचार समिति को, विपक्ष को झुकने के लिए मजबूर करने का हथियार बना रही है। महुआ ने जो तेवर दिखाये हैं उससे यही प्रदर्शित हो रहा है कि संसद से भले वह बाहर हो गयीं हों लेकिन सड़क पर उनका संघर्ष जारी रहेगा।

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