ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक चीन के पास भारत की भूमि की बात है तो यह सर्वविदित है कि उसने 1965 की लड़ाई में भारतीय भूभाग पर कब्जा किया था। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पाकिस्तान ने पीओके का कुछ इलाका भी चीन को दिया है जिसे हमें वापस लाना ही होगा।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से कहा कि भारत सरकार के कई मंत्रियों ने कहा कि पीओके वापस लाएंगे, अब आरएसएस के एक नेता ने कहा है कि सीओके भी वापस आना चाहिए। हमने जानना चाहा कि चीन के पास आखिर भारत की कितनी भूमि है और क्या चीन से अपनी भूमि वापस ले पाना संभव है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि पीओके तो हमारा ही है बस वहां अपना तिरंगा लहराना है। उन्होंने कहा कि जिस तरह पीओके की जनता भारत के समर्थन में नारे लगा रही है उसको देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब वहां के लोग खुद ही पाकिस्तान पर दबाव बनाएंगे कि वह उन्हें भारत के साथ जाने दे। उन्होंने कहा कि पीओके के लोगों ने देखा है कि भारत में जम्मू-कश्मीर का किस तेजी से विकास हुआ है जबकि दूसरी ओर पीओके के संसाधनों को लूटने वाली पाकिस्तान सरकार ने उस क्षेत्र के साथ लगातार भेदभाव बरता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक चीन के पास भारत की भूमि की बात है तो यह सर्वविदित है कि उसने 1965 की लड़ाई में भारतीय भूभाग पर कब्जा किया था। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पाकिस्तान ने पीओके का कुछ इलाका भी चीन को दिया है जिसे हमें वापस लाना ही होगा। उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि भारत और चीन के बीच कोई सीमा रेखा निर्धारित नहीं है इसलिए अक्सर तनाव की खबरें आती रहती हैं। उन्होंने कहा कि चीन लद्दाख के कुछ क्षेत्र पर जिस तरह खुलेआम दावा करता है तो हमें भी उसके कब्जे वाले तिब्बत पर इसी प्रकार का दावा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकारों के दौरान चीन के मुकाबले सैन्य ढांचे को विकसित करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया इसीलिए हम पिछड़े रहे लेकिन अब हालात तेजी से बदले हैं और हम मजबूत हुए हैं। उन्होंने कहा कि चाहे डोकलाम हो, चाहे गलवान हो या फिर तवांग, सभी जगह हमने चीन को आगे बढ़ने से रोका है जिससे ड्रैगन को यह समझ आ गया है कि भारतीय सेना इतनी मजबूत है कि हमें आगे तो कतई नहीं बढ़ने देगी। उन्होंने कहा कि जहां तक 1965 में चीन के कब्जे में गयी भारतीय भूमि को वापस छुड़ाने की बात है तो उसके लिए हमें दो मोर्चों पर लगातार काम करना होगा। उन्होंने कहा कि एक तो हमें लगातार अपने सैन्य बलों को मजबूत और सीमा पर बुनियादी ढांचे को विकसित करना होगा साथ ही राजनयिक माध्यम से भी वार्ता जारी रखनी होगी। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने कहा था कि जिसकी सेना बलशाली होती है उस देश की राजनयिक वार्ताएं भी सफल होती हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह स्पष्ट है कि यह युद्ध का युग नहीं है लेकिन यह भी पूरी तरह स्पष्ट है कि भारतीय सेना हमेशा युद्ध की स्थिति के लिए अपने को पूरी तरह से तैयार रखती है। यही नहीं हम एक साथ दो मोर्चों पर भी लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। उन्होंने कहा कि हमें यह भी समझने की जरूरत है कि चीन ने 1965 के बाद से कोई युद्ध नहीं लड़ा है जबकि भारत ने कई युद्ध लड़े और जीते हैं। उन्होंने कहा कि देशवासियों को इस बात के लिए आश्वस्त रहना चाहिए कि अखंड भारत का सपना एक दिन अवश्य पूरा होगा। स्थितियां भले तुरंत अनुकूल नहीं दिख रही हों लेकिन जल्द ही हालात ऐसे होंगे कि पीओके, सीओके हमारे साथ होंगे।
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