प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि इजरायल ने हमास का नामोनिशान मिटाने की कसम खा ली है लेकिन इससे गाजा में बड़ा संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में गाजा का भविष्य क्या नजर आता है और गाजा की अर्थव्यवस्था आखिर चलती कैसे है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि देखा जाये तो पूरा गाजा लगभग फिलाडेल्फिया के आकार का है और उसे अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने और विकसित करने के लिए विभिन्न व्यवसायों और देशों के साथ व्यापार की आवश्यकता है। लेकिन गाजा काफी हद तक विदेशी सहायता पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि यह आंशिक रूप से हमास के राजनीतिक सत्ता में आने के एक साल बाद, 2007 में इज़राइल द्वारा गाजा के आसपास स्थायी हवाई, भूमि और समुद्री नाकाबंदी स्थापित करने का परिणाम है। उन्होंने कहा कि मिस्र, जिसकी दक्षिणी सीमा गाजा से लगती है, वह भी एक चौकी की निगरानी करता है जो विशेष रूप से लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाती है। इज़राइल ने लगभग 17,000 गाजा निवासियों को इज़राइल में प्रवेश करने और काम करने की अनुमति दी है, गाजा में लोग जिस भोजन, ईंधन और चिकित्सा आपूर्ति का उपयोग करते हैं वह पहले इज़राइल से होकर जाती है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इज़राइल गाजा के साथ दो चौकियों को नियंत्रित करता है, जो लोगों और ट्रकों के प्रवेश और निकास दोनों की निगरानी करते हैं। इज़राइल गाजा में आने वाली सामग्रियों के प्रकार और मात्रा को सीमित करता है। इसके अलावा नाकेबंदी आम तौर पर उन गाज़ावासियों की इज़राइल में आवाजाही को प्रतिबंधित करती है जिनके पास कार्य परमिट या विशेष मंजूरी नहीं होती है- उदाहरण के लिए चिकित्सा उद्देश्यों से प्रवेश करने वालों को। 7 अक्टूबर को 20 इजरायली कस्बों और कई सैन्य ठिकानों पर हमास के अचानक हमले के बाद से नाकाबंदी के माध्यम से इजरायल के प्रतिबंध तेज हो गए, जिसके बाद इजरायल ने गाजा में व्यापक नाकाबंदी की घोषणा करते हुए सभी खाद्य, ईंधन और चिकित्सा आपूर्ति को क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वेस्ट बैंक और गाजा के फलस्तीनी परिक्षेत्र- दोनों की छोटी अर्थव्यवस्थाएं हैं जो हर साल 6.6 अरब अमेरिकी डॉलर के बड़े घाटे में चलती हैं, क्योंकि वह जितना सामान आयात करते हैं, उसका मूल्य उन वस्तुओं से कहीं अधिक होता है, जिसका वह उत्पादन करते हैं और अन्यत्र बेचते हैं। 2020 में 53 प्रतिशत से अधिक गाजा निवासियों को गरीबी रेखा से नीचे माना गया था और लगभग 77 प्रतिशत गाजा परिवारों को संयुक्त राष्ट्र और अन्य समूहों से किसी न किसी रूप में सहायता मिलती है, जिसमें ज्यादातर नकदी या भोजन के रूप में थी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गाजा की कमजोर अर्थव्यवस्था के कई जटिल कारण है, लेकिन सबसे बड़ा कारण नाकाबंदी और इससे पैदा होने वाला आर्थिक और व्यापारिक अलगाव है। देखा जाये तो औसत गाजावासी के लिए, नाकाबंदी के कई व्यावहारिक प्रभाव हैं, जिनमें लोगों की भोजन प्राप्त करने की क्षमता भी शामिल है। गाजा में लगभग 64 प्रतिशत लोगों को खाद्य असुरक्षित माना जाता है, जिसका अर्थ है कि उनके पास पर्याप्त मात्रा में भोजन तक पहुंच नहीं है। गाजा के लिए अपनी सीमाओं के भीतर भोजन का उत्पादन करना कठिन है। इसका एक कारण यह है कि 2008 में और फिर 2018 में इजरायली हवाई हमलों ने गाजा के एकमात्र बिजली उत्पादन संयंत्र और मुख्य सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र को नुकसान पहुंचाया था। इन हमलों के परिणामस्वरूप जमीन और पानी में सीवेज का कचरा फैल गया, खेत और खाद्य फसलें नष्ट हो गईं और समुद्र में मछलियों के जीवन को भी खतरा पैदा हो गया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गाजा की कमजोर अर्थव्यवस्था और नाकाबंदी के कारण अलगाव का मतलब है कि यह निवासियों को बुनियादी सेवाएं प्रदान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। गाजा में इन सहायता समूहों में सबसे बड़ा फलस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी है- जिसे यूएनआरडब्ल्यूए के रूप में भी जाना जाता है। आज, यूएनआरडब्ल्यूए हमास के बाद गाजा में दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है। यह जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, वेस्ट बैंक और अन्य स्थानों में रहने वाले फलस्तीनी शरणार्थियों के रूप में पंजीकृत 30 लाख अन्य लोगों के अलावा, गाजा में लोगों के लिए शिक्षा, भोजन सहायता और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का बड़ा हिस्सा प्रदान करता है। यूएनआरडब्ल्यूए अकेले गाजा में 284 स्कूलों का नेटवर्क चलाता है और उन्हें धन देता है, जिसमें 9,000 से अधिक स्थानीय लोगों को स्टाफ के रूप में नियुक्त किया जाता है और हर साल 294,000 से अधिक बच्चों को शिक्षित किया जाता है। यूएनआरडब्ल्यूए गाजा में 22 अस्पताल चलाता है जिसमें लगभग 1,000 स्वास्थ्य कर्मचारी कार्यरत हैं और प्रति वर्ष 33 लाख मरीज आते हैं। वर्तमान युद्ध जैसे संकट के समय में इसके स्कूलों को मानवीय आश्रय स्थलों में बदल दिया जाता है। लोग साफ पानी, भोजन, गद्दे और कंबल, शॉवर और अन्य सामान के लिए वहां जा सकते हैं। गाजा में अपने घरों से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या पिछले कुछ दिनों में तेजी से बढ़ी है। इनमें से दो-तिहाई से अधिक लोग यूएनआरडब्ल्यूए स्कूलों में रह रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका ऐतिहासिक रूप से यूएनआरडब्ल्यूए का सबसे बड़ा वित्तपोषक रहा है। अमेरिका ने अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक फ़लस्तीनियों को 50 करोड़ अमरीकी डालर से अधिक दिया, जिसमें यूएनआरडब्ल्यूए को दिए गए 41 करोड़ 70 लाख अमरीकी डालर से अधिक शामिल हैं। विभिन्न सरकारों के समय में यूएनआरडब्ल्यूए को अमेरिकी समर्थन में उतार-चढ़ाव आया है। वेस्ट बैंक और गाजा को कुल अमेरिकी सहायता 2009 में एक अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई थी जब इज़राइल ने क्षेत्र को सील कर दिया था। 2013 में फिर से वार्षिक योगदान एक अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था जब पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने इज़राइल और हमास के बीच शांति वार्ता को फिर से शुरू करने में मदद की। 2018 में, ट्रम्प प्रशासन ने यूएनआरडब्ल्यूए को आमतौर पर अमेरिका द्वारा दी जाने वाली लगभग सारी धनराशि में कटौती कर दी थी जो संगठन के कुल बजट का लगभग 30 प्रतिशत था। इसके बाद बाइडेन प्रशासन ने 2021 में यूएनआरडब्ल्यूए और फलस्तीनियों की मदद करने वाले अन्य संगठनों को आर्थिक सहायता बहाल कर दी थी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस समय गाजा का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है क्योंकि इजराइल ने उत्तरी क्षेत्र को खाली करने के लिए स्थानीय जनता को आदेश दिया है। इससे एक बड़ा विस्थापन संकट खड़ा होने वाला है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहायता समूह चेतावनी दे रहे हैं कि वे गाजा पट्टी में लोगों को भोजन और अन्य बुनियादी सेवाएं नहीं दे पा रहे हैं जिससे “गंभीर” मानवीय संकट बदतर होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सहायता समूह भी अब गाजा में उसी समस्या का सामना कर रहे हैं जिसका स्थानीय निवासियों को लगभग 16 वर्षों से करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि 16 बरसों से लागू यह नाकाबंदी उस भोजन और ईंधन पर लागू नहीं होती थी जो अंतरराष्ट्रीय सहायता समूह गाजा में लाते थे लेकिन अब, यह उस पर भी लागू होती है जिससे संकट बढ़ गया है।