Poorvottar Lok: Assam में BJP ने सीट समझौते को दिया अंतिम रूप, Manipur में अब तक 219 की मौत, Mizoram-Nagaland ने केंद्र के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव किया पारित

असम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले सीएए के विरोध में आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की जा रही है मगर राज्य पुलिस ने चेतावनी दी है कि किसी किस्म का बंद इत्यादि किया गया तो उससे होने वाले नुकसान की भरपाई बंद का आह्वान करने वालों से वसूली जायेगी। इसके अलावा असम में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सीट बंटवारे को लेकर भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बीच समझौता हो गया है। दूसरी ओर मणिपुर की राज्यपाल अनुसूइया उइके ने विधानसभा में बताया है कि राज्य में पिछले साल मई से जातीय हिंसा में 219 लोग मारे गए हैं। इसके अलावा, इस सप्ताह मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने बजट पेश किया। इसके अलावा मिजोरम और नगालैंड विधानसभा ने प्रस्ताव पारित किया जिसमें केंद्र के भारत-म्यांमा सीमा पर बाड़ लगाने और दोनों देशों के बीच मुक्त आवगमन व्यवस्था को रद्द करने के फैसलों का विरोध किया गया। इसके अलावा, अरुणाचल प्रदेश में चुनाव से पहले कांग्रेस और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के दो-दो विधायक सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो गए। इसके अलावा भी पूर्वोत्तर भारत से कई प्रमुख समाचार रहे। आइये सब पर डालते हैं एक नजर और सबसे पहले बात करते हैं असम की।

असम

असम से आये समाचारों की बात करें तो आपको बता दें कि ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और 30 अन्य समूहों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रदेश यात्रा के दौरान राज्य के सभी जिलों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ 12 घंटे की भूख हड़ताल सहित कई कार्यक्रमों की घोषणा की है। 30 स्थानीय संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद संवाददाताओं को संबोधित करते हुए आसू के अध्यक्ष उत्पल शर्मा ने कहा कि ऐसे समय में जब कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में कई मामले चल रहे हैं, नियम बनाने और सीएए लागू करने की घोषणा ‘‘लोगों के साथ गंभीर अन्याय’’ है। उन्होंने कहा, ‘‘असम की जनता ने कभी सीएए को स्वीकार नहीं किया है और वे इसे लागू करने के किसी भी कदम का विरोध करेंगे। हम कानूनी लड़ाई के साथ केंद्र के फैसले के विरुद्ध लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रखेंगे।’’ शर्मा ने कहा कि सीएए के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत चार मार्च को होगी और हर जिला मुख्यालय में मोटरसाइकिल रैली निकाली जाएंगी। उन्होंने कहा, ‘‘नियमों की घोषणा के एक दिन बाद हम इसके खिलाफ हर जिला मुख्यालय में मशाल जुलूस निकालेंगे।’’ शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री आठ मार्च को जब असम यात्रा पर आएंगे तो आसू और 30 अन्य संगठन उन पांच युवकों की तस्वीरों के समक्ष दीपक जलाएंगे जो 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की गोलीबारी में मारे गए थे। उन्होंने कहा, ‘‘नौ मार्च को जब प्रधानमंत्री असम में होंगे तो हम राज्य के सभी जिलों में 12 घंटे की भूख हड़ताल शुरू करेंगे।”

इसके अलावा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने बृहस्पतिवार को दावा किया कि इस समय नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ किसी प्रदर्शन की कोई प्रासंगिकता नहीं है और कानून के खिलाफ लोग उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकते हैं। शर्मा ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि संसद, जिसने कानून पारित किया था, ‘सर्वोच्च नहीं’ है क्योंकि शीर्ष अदालत इसके ऊपर है और वह किसी भी कानून को रद्द कर सकती है जैसा उसने चुनावी बांड के मामले में किया। उन्होंने कहा, ‘‘सीएए के खिलाफ प्रदर्शन की कोई प्रासंगिकता नहीं है क्योंकि आंदोलन संसद द्वारा पारित किसी कानून के संबंध में कारगर नहीं हो सकते। बदलाव केवल उच्चतम न्यायालय में हो सकता है जैसा कि उसने भाजपा द्वारा लागू चुनावी बांड के मामले में किया।’’ शर्मा ने कहा कि न्यायपालिका को किसी अधिनियम में बदलाव का अधिकार है और इसके अलावा संसद का सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित भी हो चुका है तथा अगले चार महीने तक कोई भी सीएए को निष्प्रभावी करने के लिए दोनों सदनों की बैठक नहीं बुला सकता। उन्होंने कहा, ‘‘सीएए वास्तविकता है और यह भारत में कानून की किताब में शामिल है। यह पिछले दो साल से भारत की विधि पुस्तिका में है। दिल से सीएए से नफरत करने वालों को उच्चतम न्यायालय जाना होगा। सीएए से राजनीतिक कॅरियर बनाना चाह रहे लोग आंदोलन कर सकते हैं। दोनों में अंतर है।’’ मुख्यमंत्री ने कहा कि हो सकता है कि किसी को सीएए पसंद नहीं हो लेकिन वह इस भावना का सम्मान करते हैं तो यही बात दूसरे पक्ष की ओर से भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘मैं किसी की भी आलोचना नहीं करना चाहता क्योंकि सीएए को पसंद या नापसंद करना उनका अधिकार है। लेकिन दोनों पक्षों का समाधान उच्चतम न्यायालय में निकलना चाहिए, ना कि असम की सड़कों पर। लोकसभा और राज्यसभा ने लोकतांत्रिक तरीके से सीएए को पारित किया था। अब आप इसके बारे में क्या कर सकते हैं? आप (प्रदर्शन करके) कुछ नहीं कर सकते।’’ शर्मा ने प्रदर्शन के उद्देश्य पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, ‘‘असम की जनता ने विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन किया था, लेकिन फिर भी यह पारित हुआ। हालांकि, लोकसभा और राज्यसभा सर्वोच्च निकाय नहीं हैं और उच्चतम न्यायालय उनके ऊपर है।’’ इस विवादास्पद कानून के खिलाफ नये सिरे से प्रदर्शनों से आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा पर असर पड़ने की संभावना के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कोई टिप्पणी नहीं की। लेकिन उन्होंने कहा, ‘‘मुझे वास्तव में लगता है कि सीएए के खिलाफ जो लोग हैं और जो इसके पक्ष में हैं, उन्हें उच्चतम न्यायालय जाना चाहिए।’’ नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदुओं, जैन, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को यहां पांच साल रहने के बाद भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। असम के विपक्षी दलों ने बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन सौंपकर कहा कि अगर सीएए को निरस्त नहीं किया गया तो वे राज्यभर में ‘लोकतांत्रित तरीके से जन आंदोलन’ करेंगे। सोलह दलों वाले संयुक्त विपक्षी मंच असम (यूओएफए) ने मुर्मू को संबोधित एक ज्ञापन राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया को सौंपा। यूओएफए में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आम आदमी पार्टी (आप), रायजोर दल, एजेपी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (एआईएफबी), शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे (शिवसेना-यूबीटी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-शरद चंद्र पवार(राकांपा-शरद पवार), समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियां शामिल हैं। यूओएफए ने बुधवार को घोषणा की थी कि इस विवादास्पद अधिनियम के लागू होने के अगले ही दिन राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया जाएगा, जिसके बाद जनता भवन (सचिवालय) का ‘घेराव’ किया जाएगा।

इसके अलावा, देश में आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर असम में सीट बंटवारे को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों के बीच समझौता हो गया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। इस समझौते के मुताबिक भाजपा असम में 11 सीट पर चुनाव लड़ेगी जबकि उसकी सहयोगी असम गण परिषद (अगप) दो और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) एक सीट पर चुनाव लड़ेगी। अगप बारपेटा और धुबरी से चुनाव लड़ेगी, जबकि यूपीपीएल कोकराझार में अपना उम्मीदवार उतारेगी। शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सहयोगी दल सभी 14 निर्वाचन क्षेत्रों में एक-दूसरे के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे। हिमंत विश्व शर्मा ने यहां भाजपा की प्रदेश इकाई के मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ”भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख भाबेश कलिता और मैंने हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और हमारे राष्ट्रीय महासचिव बी एल संतोष के साथ बैठक की, जिसके दौरान सीट-बंटवारे पर चर्चा हुई।” उन्होंने कहा कि यूपीपीएल ने कोकराझार सीट के लिए अनुरोध किया था, जिस पर भाजपा सहमत हो गई। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘अगप, जिसका पूरे राज्य में आधार है, अधिक सीट चाहती थी। लेकिन, मैंने उन्हें इस बार दो सीट से चुनाव लड़ने के हमारे केंद्रीय नेतृत्व के अनुरोध से अवगत कराया और उन्होंने हमारी इस बात को मान लिया। राज्य की कुल 14 सीट में से हम 11 सीट जीतने को लेकर आशान्वित हैं।’’ राज्य से निवर्तमान लोकसभा में भाजपा के नौ सांसद हैं, जबकि अगप और यूपीपीएल का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। कांग्रेस के पास तीन और एआईयूडीएफ के पास एक सीट है, जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के पास है।

इसके अलावा, असम के विपक्षी दलों द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम लागू होने पर राज्यव्यापी बंद की धमकी देने के एक दिन बाद पुलिस महानिदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बृहस्पतिवार को चेतावनी दी कि प्रतिदिन 1,643 करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान होने का अनुमान है, जिसकी वसूली आंदोलन के आयोजकों से की जा सकती है। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की तर्ज पर राज्य में गठित संयुक्त विपक्षी मंच असम (यूओएफए) ने बुधवार को घोषणा की कि विवादास्पद अधिनियम लागू होने के अगले ही दिन राज्यव्यापी बंद बुलाया जाएगा। सोशल मीडिया मंच पर ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में, सिंह ने 2019 में बंद पर सुनाए गए गौहाटी उच्च न्यायालय के आदेश के दो पेज साझा किए और जून 2022 के मुद्दे पर अपना बयान फिर से पोस्ट किया। उन्होंने कहा, “कहने की जरूरत नहीं है कि असम की जीएसडीपी 5,65,401 करोड़ रुपये आंकी गई है। एक दिन के बंद से लगभग 1,643 करोड़ रुपये का नुकसान होगा जो माननीय गौहाटी उच्च न्यायालय के उपरोक्त आदेश के पैरा 35(9) के अनुसार ऐसे बंद का आह्वान करने वालों से वसूला जाएगा।” डीजीपी की पोस्ट पर प्रतिक्रिया जताते हुए राइजोर दल के प्रमुख और विधायक अखिल गोगोई ने कहा कि यदि सीएए नहीं लागू किया जाता है तो कोई समस्या नहीं होगी। उन्होंने कहा, ”आप (केंद्र) एक दमनकारी कानून लाएंगे और अगर हम विरोध करते हैं तो हमें नुकसान के लिए दंडित किया जाएगा। इस नुकसान के लिए जिम्मेदार कौन होगा? भाजपा या हम ? वे 15-20 लाख बांग्लादेशियों को नागरिकता देने की योजना बना रहे हैं और हम विरोध तक नहीं कर सकते?’’ उन्होंने कहा, “यह डीजीपी कौन हैं? अगर वह राज्य को होने वाले वित्तीय नुकसान के बारे में इतने चिंतित हैं तो वह केंद्र से इस कानून को वापस लेने के लिए क्यों नहीं कहते?” गोगोई ने 2019 के हिंसक सीएए विरोधी आंदोलन में अपनी कथित भूमिका के लिए 567 दिन जेल में बिताए थे। बाद में एक विशेष एनआईए अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (सीएए) बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदुओं, जैन, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को यहां पांच साल रहने के बाद भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है। इस बीच, कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) और सत्र मुक्ति संग्राम समिति (एसएमएसएस) के कार्यकर्ताओं ने गुवाहाटी और तिनसुकिया जैसे अपर असम के जिलों सहित कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किया और अधिनियम को निरस्त करने की मांग की। केएमएसएस और एसएमएसएस राइजोर दल के सहयोगी संगठन हैं।

इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आठ मार्च से असम की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में जंगल सफारी पर जाएंगे। एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मोदी का आठ मार्च की शाम को काजीरंगा पहुंचने और रात में रुकने का कार्यक्रम है। उन्होंने बताया कि इसके अगले दिन की सुबह उद्यान के अंदर सफारी करेंगे और फिर कई कार्यक्रमों में भाग लेने के वास्ते वह जोरहाट के लिए रवाना होंगे। असम के वन एवं पर्यावरण मंत्री चंद्र मोहन पटोवारी ने मंगलवार को काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का दौरा किया और प्रधानमंत्री की यात्रा की व्यवस्था को अंतिम रूप देने के लिए मुख्य सचिव पवन बोरठाकुर और पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह सहित वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कई बैठकें कीं। अधिकारी ने कहा कि अधिकारियों ने उद्यान के अंदर जीप और हाथी सफारी दोनों की व्यवस्था की है। प्रधानमंत्री नौ मार्च को जोरहाट में विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होंगे।

इसके अलावा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने मंगलवार को विश्वास जताया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आगामी चुनावों में राज्य में 14 लोकसभा सीटों में से 11 पर जीत दर्ज करेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा राज्य में ‘‘12वीं सीट भी हासिल करने की कोशिश’’ करेगी। माजुली में एक कार्यक्रम के इतर पत्रकारों से बातचीत में शर्मा ने कहा कि लोकसभा का टिकट पाने के इच्छुक उम्मीदवार आज भाजपा पर्यवेक्षकों को अपने आवेदन भेजेंगे और संभावित उम्मीदवारों की सूची पर पहले चरण की चर्चा के लिए उसे दिल्ली भेजा जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘मैं उम्मीदवारों के नाम जानने का इच्छुक नहीं हूं। लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए वोट करेंगे।’’ यह पूछने पर कि लोकसभा चुनाव में राज्य में भाजपा कितनी सीट जीत सकती है, इस पर शर्मा ने कहा, ‘‘हम यकीनन 11 निर्वाचन क्षेत्रों में निर्णायक जीत हासिल करेंगे जबकि एक और सीट जीतने का पूरा प्रयास करेंगे।’’ शर्मा ने एक मोटरसाइकिल से धेमाजी में कारेंग चपोरी से माजुली तक 100 किलोमीटर लंबी मोटरसाइकिल रैली की अगुवाई की। उन्होंने इसके बाद कई कार्यक्रम में भाग लिया जिसमें जमीन दस्तावेज वितरण और विश्व के सबसे बड़े नदी द्वीप में विकास पहलों की शुरुआत शामिल रही। उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गयी योजना के तहत बनी सड़कों’’ पर मोटरसाइकिल यात्रा के दौरान उन्होंने लोगों के बीच ‘‘उत्साह देखा जिससे स्पष्ट हो गया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) इस बार 400 सीटों का आंकड़ा पार करेगा।’’ असम में भाजपा के नौ सांसद जबकि कांग्रेस के तीन और अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (एआईयूडीएफ) के एक सांसद हैं। राज्य में एक निर्दलीय सांसद भी हैं।

मणिपुर

मणिपुर से आये समाचारों की बात करें तो आपको बता दें कि राज्य पुलिस ने इंफाल वेस्ट जिले से प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन केसीपी-एन के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया है और उनके पास से हथियार तथा गोला-बारूद बरामद किए हैं। एक आधिकारिक बयान में शुक्रवार को यह जानकारी दी गई। बयान में कहा गया कि उनके पास से पांच मोबाइल फोन और चार लाख रुपये भी जब्त किए गए हैं। पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि इस बात का संदेह है कि उनके पास से जो हथियार और गोला-बारूद बरामद हुए हैं वे पूर्व में सुरक्षा बलों से लूटे गए थे। पुलिस नियंत्रण कक्ष की ओर से जारी बयान में कहा गया कि प्रतिबंधित संगठन केसीपी-एन के गिरफ्तार सदस्यों की पहचान एल एलिन, हेरिश माइबम और बेला ओइनम के रूप में की गई। उसने कहा कि मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई। पिछले साल मई में पहली बार दो समुदायों के बीच जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से मणिपुर में बार-बार हिंसा की घटनाएं हो रही हैं। हिंसा की घटनाओं में अब तक कुल मिलाकर 219 लोग जान गंवा चुके हैं।

इसके अलावा, केंद्र सरकार ने कुकी उग्रवादी संगठनों के साथ ‘अभियान निलंबित रखने’ (एसओओ) संबंधी समझौता जारी करने के बारे में अब तक फैसला नहीं किया है। वहीं मणिपुर विधानसभा ने बृहस्पतिवार को एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से सभी कुकी उग्रवादी समूहों के साथ एसओओ समझौते को पूरी तरह रद्द करने का आग्रह किया। मणिपुर में विभिन्न राजनीतिक दलों और मेइती समूहों ने राज्य के आदिवासी उग्रवादी समूहों के साथ शांति समझौते को आगे नहीं बढ़ाने की मांग की है। एसओओ समझौता पहली बार 2008 में मणिपुर के पहाड़ी जिलों में सक्रिय कुकी उग्रवादी समूहों के साथ किया गया था। इसे समय-समय पर बढ़ाया गया और यह 28 फरवरी को समाप्त हो गया। एक अधिकारी ने बताया, “केंद्र सरकार अब भी बातचीत कर रही है।” हालांकि अधिकारी ने इस बाबत कोई संकेत नहीं दिया कि क्या एसओओ को बढ़ाया जाएगा या नहीं। मणिपुर विधानसभा ने प्रस्ताव पारित कर केंद्र से एसओओ समझौते को पूरी तरह रद्द करने का आग्रह किया। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, “12वीं मणिपुर विधानसभा ने अपने पांचवें सत्र के दूसरे दिन सर्वसम्मति से केंद्र सरकार से सभी कुकी-ज़ो उग्रवादी समूहों के साथ एसओओ समझौते को पूरी तरह से रद्द करने का आग्रह करने का प्रस्ताव पारित किया।” उन्होंने कहा कि यह निर्णय क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के हित में होगा। मणिपुर के 10 कुकी-ज़ोमी-हमार विधायक, तीन मई 2023 को राज्य में कुकी और मेइती के बीच जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से विधानसभा सत्र में भाग नहीं ले रहे हैं। इनमें दो मंत्री भी शामिल हैं। प्रभावशाली मेइती नागरिक समाज संगठन, मणिपुर कोओर्डिनेशन कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी (सीओसीओएमआई) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया कि कुकी समूहों के साथ एसओओ समझौते के विस्तार के संबंध में किसी भी निर्णय में “सावधानी बरतने और पुनर्मूल्यांकन की तत्काल आवश्यकता” है।

इसके अलावा, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने बृहस्पतिवार को विधानसभा में कहा कि पिछले साल मई में राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 13,264 ढांचों को नष्ट किए जाने की सूचना है। विधायक सुरजाकुमार ओकराम के एक प्रश्न के जवाब में सिंह ने कहा कि विभिन्न जिलों में क्षतिग्रस्त, नष्ट या जलाए गए ढांचों का आकलन और पहचान का काम अब भी जारी है। सिंह ने बताया कि सरकार ने उन परिवारों के लिए अग्रिम अंतरिम राहत के रूप में 15 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं जिनके घर हिंसा के दौरान पूरी तरह से जल गए या क्षतिग्रस्त हो गए। उन्होंने कहा कि लाभार्थियों की पहचान और खातों का सत्यापन संबंधित जिला उपायुक्त कर रहे हैं। कानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा बलों की तैनाती के संबंध में सिंह ने कहा कि मई से अक्टूबर 2023 तक केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की 200 कंपनियां तैनात की गईं हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के कारण मोरेह में केंद्रीय बलों की तैनाती के बारे में विशेष विवरण सदन में नहीं दिया जा सकता है। 

इसके अलावा, मणिपुर सरकार ने राज्य के हिंसा प्रभावित छह जिलों में शांति कायम रखने और जनता का विश्वास बहाल करने के लिए असम राइफल्स से मदद मांगी है। इंफाल पश्चिम के जिला मजिस्ट्रेट ने बृहस्पतिवार को कानून व्यवस्था के उल्लंघन की खबरों, खासतौर पर भीड़ हिंसा की घटनाओं का उल्लेख किया। आदेश में कहा गया, ‘‘हालात जिला प्रशासन और पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो गए हैं।’’ इसमें कहा गया है कि जिले के विभिन्न हिस्सों में 29 फरवरी से पांच मार्च तक असम राइफल्स की सेवाएं मांगी गई हैं। इससे पहले बुधवार रात को इंफाल पश्चिम में हजारों महिलाओं ने मशाल जुलूस निकालकर केंद्र सरकार और कुकी उग्रवादी समूहों के बीच ‘अभियानों का निलंबन’ (एसओओ) समझौते को समाप्त करने की मांग की। करीब 200 हथियारबंद लोगों ने 27 फरवरी को अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एम अमित सिंह के वांगखेई स्थित आवास में गोली चलाईं और तोड़फोड़ की थी। उन्होंने इसके बाद सिंह को अपहृत कर लिया और सुरक्षा बलों ने उनकी रिहाई कराई। अधिकारियों ने कहा कि बिगड़ते हालात के मद्देनजर बिष्णुपुर, थौबल, चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल जैसे अन्य जिलों ने भी शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए असम राइफल्स की तैनाती की मांग की है।

इसके अलावा, मणिपुर पुलिस ने राज्य पुलिस के एक अधिकारी पर हमले के बाद बृहस्पतिवार को हमलों व जबरन वसूली जैसे अपराधों में शामिल कट्टरपंथी मैतेई समूह अरामबाई टेंगोल (एटी) और अन्य असामाजिक समूहों के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करने की घोषणा करते हुए कहा कि सेना और अन्य केंद्रीय बलों की तैनाती को बढ़ाना की आवश्यकता है। मणिपुर पुलिस ने एक सख्त बयान जारी कर यह भी कहा कि राज्य पुलिस एक तटस्थ बल है और किसी भी समुदाय के खिलाफ या पक्ष में कार्य नहीं करता है। बयान के मुताबिक, राज्य पुलिस जनता के जीवन और संपत्तियों की रक्षा व सुरक्षा के लिए हमेशा प्रतिबद्ध है। बयान में कहा गया कि जनता को गुमराह नहीं होना चाहिए और राज्य में शांति व सौहार्द वापस लाने में मणिपुर पुलिस का सहयोग करना चाहिए। बयान के मुताबिक, ‘आने वाले दिनों में तलाशी अभियान जारी रहेगा और आपराधिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। अगर मणिपुर पुलिस को निशाना बनाया जाता है तो सेना और अन्य केंद्रीय बलों की तैनाती को बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी।’ दो दिन पहले मणिपुर पुलिस के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मोइरांगथेम अमित सिंह पर कथित रूप से एटी सदस्यों ने हमला किया था, जिसके मद्देनजर यह बयान आया है। मणिपुर पुलिस ने बयान में कहा कि पुलिस बल के शीर्ष से लेकर निचले पद तक सभी कर्मी एकजुट हैं और किसी भी अधिकारी या कर्मी पर किसी भी प्रकार का हमला या फिर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर निशाना बनाने के कृत्य को गंभीरता से लिया जाएगा और उसपर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

इसके अलावा, मणिपुर सरकार ने बुधवार को चुराचांदपुर जिले में कानून और व्यस्था की स्थिति में सुधार को देखते हुए इंटरनेट से प्रतिबंध हटा लिया। गृह विभाग ने यह जानकारी दी। वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यालयों पर हमले के बाद 16 फरवरी को सेवाएं निलंबित कर दी गई थीं। आदेश में कहा गया, “मणिपुर सरकार इंटरनेट सेवाओं के निलंबन के आदेश को रद्द कर रही है और चुराचांदपुर जिले के पूरे राजस्व क्षेत्राधिकार में सेवाओं की बहाली का आदेश देती है।”

इसके अलावा, मणिपुर की राज्यपाल अनुसूइया उइके ने बुधवार को कहा कि राज्य में पिछले साल मई से जातीय हिंसा में 219 लोग मारे गए हैं। मणिपुर विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत में अपने संबोधन में राज्यपाल ने कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य के बलों के साथ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की 198 कंपनियां और सेना की 140 टुकड़ियां तैनात की गई हैं। उइके ने राज्य में जातीय हिंसा में 219 लोगों की मौत पर दुख जताते हुए कहा कि मृतकों के परिजनों को उचित सत्यापन के बाद 10-10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान की जा रही है। राज्यपाल ने विश्वास जताया कि सभी हितधारक और आम लोग राज्य के विभिन्न समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और भाईचारे की बहाली में योगदान देंगे। उन्होंने कहा, ‘‘मणिपुर हमेशा से बहु-संस्कृति वाला राज्य रहा है और रहेगा जो विविधताओं का सम्मान करता है। सरकार विकास के मार्ग पर सभी लोगों को साथ लेकर चलने में विश्वास करती है।’’ उइके ने कहा, ‘‘राज्य सरकार 3 मई, 2023 को शुरू हुई हिंसा के बाद वर्तमान कानून व्यवस्था की स्थिति से संबंधित विभिन्न जटिल मुद्दों के समाधान के लिए चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अथक प्रयास कर रही है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘शुरुआत के कुछ दिनों के भीतर, संघर्ष के दोनों ओर फंसे हुए लोगों को निकालने का काम युद्ध स्तर पर किया गया। मणिपुर राज्य परिवहन सेवाओं ने 4,000 से अधिक छात्रों और फंसे हुए नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया।’’ राज्यपाल ने कहा कि राहत शिविरों में रहने वाले छात्रों को आसपास के स्कूलों से संबद्ध किया गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने मौजूदा हालात के लिए जिम्मेदार तथ्यों की पड़ताल के लिए उच्च न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया था। उइके ने कहा कि अनेक जातीय समूहों में शांति एवं सौहार्द स्थापित करने के लिए एक शांति समिति भी बनाई गई। उन्होंने कहा कि सरकार ने स्वतंत्र और पारदर्शी जांच के लिए 29 मामले केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और एक मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया है।

मिजोरम

मिजोरम से आये समाचारों की बात करें तो आपको बता दें कि राज्य की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2022-23 में 13.5 प्रतिशत रही। आर्थिक समीक्षा में यह कहा गया है। मिजोरम आर्थिक समीक्षा 2023-24 के मुताबिक 2022-23 में सकल राज्य मूल्य वर्धित (जीएसवीए) में सेवा क्षेत्र ने 45 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया है। मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने बृहस्पतिवार को विधानसभा में आर्थिक समीक्षा पेश की। इसमें कहा गया कि महामारी की अवधि को छोड़कर राज्य की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है। समीक्षा के मुताबिक स्थिर कीमतों (2011-12) पर जीएसडीपी 2022-23 में बढ़कर 21,000.56 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है। इसके 2021-22 में 18,493.72 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। इस तरह इसमें सालाना आधार पर 13.55 प्रतिशत वृद्धि रही।

इसके अलावा, मिजोरम विधानसभा में बुधवार को एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें केंद्र के भारत-म्यांमा सीमा पर बाड़ लगाने और दोनों देशों के बीच मुक्त आवगमन व्यवस्था (एफएमआर) को रद्द करने के फैसलों का विरोध किया गया। प्रस्ताव राज्य के गृहमंत्री के. सपडांगा ने पेश किया और केंद्र से इन फैसलों पर पुनर्विचार करने की अपील की। इसने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया कि जो जानजाति के लोग, ‘‘जोकि विभिन्न देशों में विभाजित हैं, एक प्रशासनिक इकाई के तहत एकीकृत हों।’’ प्रस्ताव को आगे बढ़ाते हुए, सपडांगा ने कहा कि जो जातीय लोग सदियों से मिजोरम और म्यांमा की चिन पहाड़ियों में बसे हुए हैं और अपने प्रशासन के तहत एक साथ रहते थे। लेकिन अंग्रेजों द्वारा क्षेत्र पर कब्जा किए जाने के बाद उन्हें भौगोलिक रूप से बांट दिया गया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भारत-म्यांमा सीमा का सीमांकन किया और जो जातीय लोगों की भूमि को दो देशों में विभाजित कर दिया। गृहमंत्री ने कहा, ‘‘जो जातीय लोग भारत-म्यांमा सीमा को स्वीकार नहीं कर सकते, जो उन पर अंग्रेजों द्वारा थोपी गई है। वे किसी दिन एक प्रशासनिक इकाई के तहत एक होने का सपना देख रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि भारत-म्यांमा सीमा पर बाड़ लगाना या एफएमआर को खत्म करना मौजूदा सीमा को सुदृढ़ करेगा और यह जो जातीय लोगों के लिए अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि मिजोरम सरकार को अभी तक केंद्र की योजना के बारे में आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। लेकिन मीडिया में आई खबरों और केंद्रीय मंत्रियों के बयानों से यह स्पष्ट है कि केंद्र भारत-म्यांमा सीमा पर बाड़ लगाने और म्यांमा के साथ मौजूदा एफएमआर को निलंबित करने की योजना बना रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छह फरवरी को घोषणा की थी कि भारत-म्यांमा सीमा पर बाड़ लगाई जाएगी। दो दिन बाद, आठ फरवरी को उन्होंने कहा कि केंद्र ने देश की आंतरिक सुरक्षा और पूर्वोत्तर राज्यों की जनसांख्यिकीय संरचना को बनाए रखने के लिए भारत-म्यांमा के बीच मुक्त आवाजाही व्यवस्था (एफएमआर) को खत्म करने का फैसला किया है। सपडांगा ने आरोप लगाया कि हालिया फैसले मुख्य रूप से मणिपुर सरकार की मांगों से प्रेरित हैं। लंबी चर्चा के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस दौरान मुख्यमंत्री लालदुहोमा और विपक्षी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के नेता लालछंदामा राल्ते भी उपस्थित थे। चार भारतीय राज्यों – मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश की सीमा म्यांमा से लगती है जिसकी लंबाई करीब 1,643 किलोमीटर है। मिजोरम, म्यांमा के चिन राज्य के साथ 510 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है और मिजो लोग के चिन लोगों के साथ जातीय संबंध हैं।

इसके अलावा, मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने मंगलवार को वित्त वर्ष 2024-25 के लिए कुल 14,412.12 करोड़ रुपये के परिव्यय का बजट पेश किया। यह लालदुहोमा की अगुवाई वाली जोरम पीपल्स मूवमेंट (जेडपीएम) सरकार की तरफ से पेश पहला सालाना बजट है। इसमें किसी भी नये कर का प्रस्ताव नहीं किया गया है। वित्त विभाग का भी दायित्व संभालने वाले लालदुहोमा ने अगले वित्त वर्ष का बजट पेश करने के साथ ही चालू वित्त वर्ष के लिए 3,287.93 करोड़ रुपये के अनुदान की अनुपूरक मांगें भी सदन में रखीं। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक ऋण में 697.69 करोड़ रुपये की गिरावट का अनुमान है। उन्होंने 2024-25 को वित्तीय सशक्तीकरण का वर्ष बताते हुए कहा कि इस दौरान प्राथमिकता राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार करने पर दी जाएगी। उन्होंने कहा, ‘‘सार्वजनिक वित्त के विवेकपूर्ण प्रबंधन से राजकोषीय घाटे में कटौती और ऋण वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए रणनीतिक कार्रवाई की जाएगी।’’ मिजोरम के मुख्यमंत्री ने बजट पेश करने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘सरकार उन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करेगी, जो पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्तपोषित हैं। इसकी वजह यह है कि राजकोषीय सशक्तीकरण के दौरान राज्य सरकार अपने पैसे से परियोजनाएं शुरू करने में असमर्थ होगी।’’

त्रिपुरा

त्रिपुरा से आये समाचारों की बात करें तो आपको बता दें कि टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा के नेतृत्व में उसका तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा बुलाई गई बैठक में हिस्सा लेने के लिए नयी दिल्ली पहुंचा। टिपरा मोथा के एक वरिष्ठ नेता ने यह जानकारी दी। टिपरा मोथा के नेता अनिमेष देबबर्मा के मुताबिक गृह मंत्रालय की इस बैठक में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा और असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा के शामिल होने की उम्मीद है। इससे पहले दिन में त्रिपुरा के प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं ने टिपरासा लोगों के मुद्दे के संवैधानिक समाधान की मांग को लेकर पश्चिम त्रिपुरा जिले के हताई कटार में आमरण अनशन शुरू किया। अनिमेष देबबर्मा ने कहा कि इस बैठक में प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा, पार्टी अध्यक्ष बी के ह्रांगखाल और पूर्व विधायक राजेश्वर देबबर्मा शामिल होंगे। बैठक के विषय के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है।

इसके अलावा, टिपरा मोथा प्रमुख प्रद्योत देबबर्मा ने राज्य के मूल निवासी समुदाय से उनके आमरण अनशन में शामिल होने की अपील की है। देबबर्मा, समुदाय के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक संवैधानिक समाधान की मांग कर रहे हैं। देबबर्मा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वह नहीं चाहते कि जो लोग त्रिपुरा में बस गए हैं वे वापस जाएं, लेकिन अगर इस छोटे राज्य में ‘घुसपैठ’ जारी रही तो समस्या पैदा होगी। उन्होंने कहा, ‘‘लगभग 90 प्रतिशत मूलवासी भूमिहीन हैं। मैं चाहता हूं कि केंद्र हमारे समुदाय की समस्याओं का समाधान करे।’’ देबबर्मा ने कहा, ‘‘मैं बीमार हूं और अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाऊंगा। मेरा कोई परिवार नहीं है। मैं मरने से पहले टिपरासा लोगों के हितों की रक्षा करना चाहता हूं। इसलिए मैं टिपरासा के सभी लोगों से अपील करता हूं कि वे उनके अनशन का समर्थन करें।’’ देबबर्मा राज्य की राजधानी अगरतला से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पश्चिम त्रिपुरा के हताई कटार क्षेत्र में अनशन करेंगे।

इसके अलावा, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने स्कूली छात्रों के बीच इंजेक्शन के माध्यम से ली जाने वाली नशीली दवाओं के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त करते हुए मंगलवार को अभिभावकों से उनके बच्चों पर कड़ी नजर रखने का आग्रह किया। गोमती जिले में एक कार्यक्रम में उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के शासन के दौरान मादक पदार्थें की खेती बढ़ी जिसकी जानकारी लोगों को शासन परिवर्तन के बाद मिली। उन्होंने कहा, “राज्य में लगभग 1,100 स्कूली छात्रों और युवाओं को इंजेक्शन से नशीली दवाओं का उपयोग करने वालों के रूप में पहचाना गया है, जिनके लिए इंजेक्शन वाली नशीली दवाओं का उपयोग घातक बन गया है। जैसा कि सभी जानते हैं कि नशीले पदार्थ मिजोरम और असम के रास्ते म्यांमा से आ रहे हैं।” उन्होंने कहा, “बढ़ते खतरे को देखते हुए बच्चों पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। जैसा कि आप जानते हैं कि नशीली दवाओं की जब्ती और नष्ट करने के मामले में पूर्वोत्तर में असम के बाद त्रिपुरा दूसरे स्थान पर है।” साहा ने कहा कि पहले राज्य से भारी मात्रा में नशीले पदार्थों की तस्करी की जाती थी लेकिन 2018 तक लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा, “अब यह सर्वविदित है कि मादक पदार्थ की खेती पारंपरिक फसलों का विकल्प बन गई थी। अब, सरकारी एजेंसियां त्रिपुरा को नशा मुक्त राज्य बनाने के लिए लगातार काम कर रही हैं।” साहा ने कहा कि राज्य के सभी आठ जिलों में नशामुक्ति केंद्र बनाए जाएंगे।

इसके अलावा, त्रिपुरा में पिछले एक साल में कुल कर संग्रह में काफी वृद्धि हुई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में जनवरी तक 2022-23 वित्त वर्ष में 2014.32 करोड़ रुपये से 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। जीएसटी संग्रह वित्त वर्ष 2023-24 में समीक्षाधीन माह तक 3,302.58 करोड़ रुपये हो गया है। वित्त सचिव अपूर्व कुमार रॉय ने संवाददाताओं से कहा कि इस अवधि के दौरान राज्य उत्पाद शुल्क का संग्रह 298.08 करोड़ रुपये से 10 प्रतिशत बढ़कर 327.90 करोड़ रुपये हो गया है। इस अवधि के दौरान बिक्री कर संग्रह 367.67 करोड़ रुपये से 16 प्रतिशत बढ़कर 428.32 करोड़ रुपये हो गया है। रॉय ने कहा कि राज्य का राजस्व 2,445 करोड़ रुपये से बढ़कर 2,656.86 करोड़ रुपये हो गया है।

नगालैंड

नगालैंड से आये समाचारों की बात करें तो आपको बता दें कि राज्य विधानसभा में म्यांमा की सीमा पर बाड़ लगाने और पड़ोसी देश के साथ मुक्त आवागमन व्यवस्था (एफएमआर) को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया। मुख्यमंत्री नीफियो रियो ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर बृहस्पतिवार को चर्चा की गई और सदन के सभी 60 सदस्यों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को पारित करने में सहमति जताई थी। एफएमआर पर चर्चा की शुरुआत नागा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) के विधायक कुझोलुजो नीनु ने की और अन्य सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया। विधायकों ने चिंता व्यक्त की कि सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को निलंबित करने से नगाओं को समस्या हो सकती है और ‘‘यहां तक कि कानून और व्यवस्था की समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं।’’ विधायकों ने दावा किया गया कि बाड़ लगाने का निर्णय लेने से पहले लोगों की सहमति नहीं ली गई थी। नीनु ने कहा, ‘‘1826 में एंग्लो-बर्मा युद्ध के बाद खींची गई औपनिवेशिक सीमाएं सीमा पार आदिवासी समुदायों के बीच घनिष्ठ पारंपरिक, प्रथागत और रिश्तेदारी के संबंधों का सम्मान करती थीं।’’ उन्होंने कहा, ”एफएमआर को वर्तमान भाजपा सरकार ने 2018 में सुसंगत और औपचारिक बनाया था। इसने इन सीमाओं की कृत्रिम प्रकृति को मान्यता दी और म्यांमा के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की सुविधा प्रदान की। यहां सवाल यह है कि इसे वापस क्यों लेना पड़ा।’’ उप मुख्यमंत्री वाई पैटन ने भी सीमा को सील करने और एफएमआर को रद्द करने के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव का समर्थन किया। बहस के दौरान प्रस्ताव का समर्थन करते हुए उप मुख्यमंत्री टीआर ज़ेलियांग ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत केंद्र सरकार की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति भारत-म्यांमा सीमा पर व्यापार और संचार में सुधार करने की मंशा पेश करती है और अगर सीमा पर बाड़ लगाई जाती है तो यह विफल हो जाएगी। बाद में रियो ने सदस्यों की चिंता का समर्थन करते हुए कहा कि सदन शुक्रवार को एफएमआर और सीमा पर बाड़ लगाने के मुद्दे पर एक प्रस्ताव अपनाएगा और इस मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाया जाएगा।

इसके अलावा, नगालैंड के उप मुख्यमंत्री वाई पैटन ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्य सरकार असम के साथ अंतर सीमा विवाद सौहार्द्रपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए कदम उठाने जारी रखेगी। साथ ही सुनिश्चित करेगी कि नगा लोगों के अधिकार सुरक्षित रहें। राज्य में सीमा मामलों के विभाग को भी देख रहे पैटन ने यह टिप्पणी विधानसभा में शून्यकाल के दौरान कानून एवं विधि और भूमि राजस्व सलाहकार टी एन मन्नन द्वारा पड़ोसी राज्य असम के मंत्री अतुल बोरा द्वारा आठ फरवरी को दिए गए बयान पर चिंता जताए जाने पर की। मन्नन ने सदन को सूचित किया कि असम के मंत्री ने नगालैंड पर असम की लगभग 60,000 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है, जो ‘‘भ्रामक है और रिकॉर्ड को सही करने की आवश्यकता है’’। इस पर, पैटन ने कहा कि सीमा विवाद नगालैंड को राज्य का दर्जा प्राप्त होने से पहले का है, और ‘‘मूल रूप से जंगलों और अन्य क्षेत्रों की वापसी का मामला है, जिन्हें अंग्रेजों ने 1823 में असम पर कब्जा करने के दौरान नगाओं से अलग कर दिया था’’। उन्होंने कहा, ‘‘इन भूमि का स्वामित्व नगाओं के पास है, लेकिन तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने केवल उनकी प्रशासनिक और आर्थिक सुविधा के उद्देश्य से इसे स्थानांतरित कर दिया और असम के पड़ोसी जिलों में शामिल कर लिया।’’ उन्होंने कहा कि दावा किया कि वन क्षेत्र वर्तमान नगालैंड राज्य की सीमा से सटे हुए हैं। पैटन ने कहा, ‘‘सीमा पर रहने वाले नगा उक्त भूमि उनकी पारंपरिक ग्राम भूमि होने का दावा करते हैं। उन्होंने कहा कि असम सरकार द्वारा कथित अतिक्रमण को लेकर दिया गया बयान 1925 की सीमा अधिसूचना पर आधारित है जिसे नगालैंड ने स्वीकार नहीं किया है। उप मुख्यमंत्री ने सदन को यह भी बताया कि नगालैंड विधानसभा ने अदालत के बाहर सौहार्द्रपूर्ण समाधान के लिए असम के साथ सीमा मुद्दा सुलझाने के लिए पांच अगस्त, 2021 को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिमंडलीय प्रवर समिति का गठन किया है। पैटन ने कहा कि सभी सीमावर्ती जिलों में जिला स्थानीय समितियों का भी गठन किया गया है, जबकि सौहार्दपूर्ण समाधान के मकसद से जनसंवाद से रास्ते तलाशने के लिए हितधारकों के साथ बैठकों और चर्चाओं का सिलसिला शुरू किया गया है।

अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश से आये समाचारों की बात करें तो आपको बता दें कि राज्य के अंजॉ जिले से म्यांमा के छह लोगों को भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने बुधवार को यह जानकारी दी। पुलिस अधीक्षक राईक कमसी ने कहा कि मंगलवार को यासोंग गांव से छह लोगों को गिरफ्तार किया गया। कमसी ने बताया कि पूछताछ के दौरान गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों ने दावा किया कि उन्होंने जंगली मशरूम इकट्ठा करने के लिए भारत में प्रवेश किया था और वे सभी म्यांमा के पुताओं गांव के निवासी हैं। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि उनके कब्जे से छह किलोग्राम जंगली मशरूम और भारतीय मुद्रा के रूप में 68,000 रुपये जब्त किए गए हैं।

इसके अलावा, अरुणाचल प्रदेश में चुनाव से पहले कांग्रेस और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के दो-दो विधायक सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। साठ सदस्यीय अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में अब कांग्रेस और एनपीपी दोनों के दो-दो विधायक हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व केंद्रीय मंत्री निनोंग ईरिंग (पासीघाट पश्चिम सीट) और वांगलिन लोवांगडांग (बोरदुरिया-बोगापानी निर्वाचन क्षेत्र) और एनपीपी के मुच्चू मीठी (रोइंग विधानसभा) और गोकर बसर (बसर विधानसभा) यहां स्थित भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में एक समारोह में पार्टी में शामिल हुए। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी शामिल हुए। इन चार विधायकों के शामिल होने से भाजपा के पास अब सदन में 53 विधायक हैं, जबकि तीन निर्दलीय विधायक सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं। इस साल अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर कहा कि विधायकों के शामिल होने से “उनके संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों और अरुणाचल प्रदेश में हमारा आधार और मजबूत होगा।” उन्होंने कहा, “उनका पार्टी में शामिल होना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा समर्थित सुशासन के सिद्धांतों में उनके विश्वास का प्रमाण है।” मुख्यमंत्री ने कहा, “एक साथ मिलकर, हम समावेशी विकास और जन-केंद्रित कल्याण के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जारी रखने के लिए तत्पर हैं।”

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