नई दिल्ली. पड़ोसी देश पाकिस्तान में सेना के आगे किसी भी नियम और कानून के लिएए कोई चीज नहीं है, यह बात भारत अक्सर कहता रहता है. बुधवार को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी की, जिससे इस बात पर मुहर भी लग गई. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने किसी ऐसे वैसे शख्स के लिए नहीं बल्कि पाकिस्तान के पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो को साल 1979 में दी गई फांसी पर सवाल उठाए. सर्वोच्च अदालत ने माना कि आर्मी कोर्ट द्वारा फांसी दिए जाने से पहले जुल्फिकार अली भुट्टो को अपने बचाव में निष्पक्ष ट्रायल का मौका नहीं दिया गया था.
मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के संस्थापक को दी गई मौत की सजा से संबंधित राष्ट्रपति के संदर्भ की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत की नौ सदस्यीय पीठ की सर्वसम्मति वाली इस राय की जानकारी दी. दरअसल पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अपने ससुर भुट्टो को हत्या के एक मामले में उकसाने के लिए दोषी ठहराए जाने और 1979 में उन्हें दी गई फांसी की सजा मामले को दोबारा विचार के लिए 2011 को सुप्रीम कोर्ट भेजा था, जिसके बाद न्यायालय ने यह फैसला सुनाया.
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‘अब सजा बदली नहीं जा सकती…’
न्यायमूर्ति ईसा ने कहा,‘‘ लाहौर उच्च न्यायालय की ओर से मामले की कार्यवाही और पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की अपील संविधान के अनुच्छेद चार और नौ में निहित निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया के मौलिक अधिकार से मेल नहीं खाती.’’ शीर्ष अदालत ने हालांकि अपनी राय व्यक्त की, लेकिन यह भी कहा कि भुट्टो को सुनाई गई मौत की सजा को बदला नहीं जा सकता था क्योंकि इसकी इजाजत न तो संविधान देता और न ही कानून और इसलिए यह एक फैसले के तौर पर ही देखा जाएगा. उच्चतम न्यायालय इस पर अपनी विस्तार से राय बाद में जारी करेगा.
(भाषा इनपुट के साथ)
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FIRST PUBLISHED : March 6, 2024, 21:07 IST