परमजीत कुमार/देवघर. हिंदी कैलेंडर के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष तिथी को पितृपक्ष कहा जाता है. अगर अंग्रेजी कैलेंडर की बात करें सितंबर माह के अंतिम दिनों सें पितृपक्ष की शुरुआत होने जा रही है. हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का खास महत्व है. पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए बिहार के गया जिले में उनके नाम का पिंड दान दिया जाता है. ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि अगर आपके पितृ प्रशन्न होते हैं तभी भगवान भी प्रशन्न होते हैं. 30 तारीख से पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है.
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नन्द किशोर मुद्गल ने लोकल 18 को बताया कि पितृपक्ष में अपने पितरो को पिंडदान देने या श्राद्धक्रम करने से उनकी आत्मा को शान्ति मिलती है. किसी व्यक्ति की मृर्त्यु होने पर परिवार के द्वारा श्राद्धक्रम किया जाता है. इसके बाद अगर पिंडदान नहीं किया जाता है तो आत्मा मिर्त्युलोक में भटकती रहती है. पितरों के पिंडदान के लिए सबसे अच्छी तिथि अमावस्या मानी गयी है. वहीं अगर किसी व्यक्ति की मौत उम्र से पहले हुई हो तो उसका पिंडदान चतुर्दशी को किया जाता है. पिंडदान करने के बाद ही आत्मा सीधेश्वर लोक जाती है, जहां से वह अपने परिवार की कल्याण के लिए आशीर्वाद देते हैं.
कब से कब तक है पितृपक्ष ?
पितृपक्ष की शुरुआत भाद्र माह के पूर्णिमा के बाद आश्विन माह के प्रतिपदा तिथि में होती है. 29 सितंबर को दोपहर 3.26 बजे तक पूर्णिमा है. इसके बाद आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत होगी, जो 30 सिंतबर को दोपहर 12.21 मिनट तक है. उदयातिथि को मानते हुए 30 सितंबर सो पितृपक्ष की शुरुआत मानी जाएगी. जो अमावस्या तिथि यानि 14 अक्टूबर तक रहने वाली है. यह पिंडदान कुल 15 दिनों तक चलता है. इन 15 दिनों मे देश के कोने-कोने से लोग गया पहुंचकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए पिण्डदान करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 03, 2023, 10:13 IST