Pitru Paksha: 12वें दिन मुंड पृष्ठा, आदि गदाधर और धौतपद पर होता है पिंडदान! जानें कैसे मिलती है मुक्ति

कुंदन कुमार/गया. मोक्ष नगरी गयाजी में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा, आदि गदाधर एवं धौतपद तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. त्रिपाक्षिक श्राद्ध कर रहे श्रद्धालु 12वें दिन मुंड पृष्ठा, आदि गदाधर एवं धौतपद पर पिंडदान करते है. तीनों पिंडवेदी विष्णुपद मंदिर से पश्चिम करसिल्ली पहाड़ी पर स्थित है. यहां पिंडदान करने से पितरों के मुक्ति मिलती है. सर्वप्रथम मुंड पृष्ठा वेदी पर पिंडदान एवं देवी दर्शन पिंडदानी करते हैं. उसके बाद आदि गदाधर पर पिंडदान किया जाता है.

इसके चलते इस तीर्थ को आदि गया कहते हैं
कहा जाता है गया सुर पर जब धर्मशिला पर्वत को रखा गया तो उसे स्थिर करने के लिए आदि गदाधर भगवान मुंड पृष्ठा पर बैठ गए. इसके चलते इस तीर्थ को आदि गया कहते हैं. जो मुंडपृष्ठा पर स्थित आदि गदाधर देव स्तुति करते हैं, पूजा करते हैं वो विष्णु लोक को चले जाते हैं. करसल्ली पर्वत पर तीनों पिंड वेदी को नाभि तीर्थ भी कहते हैं. मुंड पृष्ठा और आदि गदाधर पिंड वेदी पर पिंडदान करने के बाद मुंडपृष्ठा पर ही अवस्थित धौतपद वेदी पर श्राद्ध करते हैं.

यहां ब्रह्मा जी ने चांदी का दान दिया था और धौंता ऋषि ने संकल्प कराया. इसलिए इस वेदी का नाम द्दोतपद पड़ा. द्दोतपद पर अपने पुरोहित को यथा शक्ति चांदी का दान अवश्य करना चाहिए, जिससे पितर तर जाते हैं.

एकादशी नहीं द्वादशी के दिन होता है पिंडदान
जानकारी देते हुए गया मंत्रालय वैदिक पाठशाला के पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि गया में 17 दिन रहकर त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने वाले तीर्थ यात्री एकादशी तिथि को विष्णुपद के समीप स्थित तीन पिंड वेदी मुंड पृष्ठा, आदि गदाधर और धौतपद पर पिंडदान करते हैं.

एकादशी के दिन पिंडदान नहीं करना चाहिए इसलिए इन पिंड वेदियों पर द्वादशी के दिन पिंडदान किया जाएगा. इस दिन यदि श्राद्धकर्ता पितरों को खोआ का पिंडा बना कर दान करता है, उसके पितरों के मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही श्राद्धकर्ता को भी अमोघ पुण्यलाभ मिलता है.

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