कुंदन कुमार/गया. हिंदु धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है. पितरों के लिए यह पक्ष समर्पित माना जाता है. श्राद्ध पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इन दिनों पितृ, पितृलोक से मृत्यु लोक में अपने वंशजों से सूक्ष्म रूप में मिलने आते है. मान्यता है कि सभी पितृ अपनी पसंद का भोजन व सम्मान पाकर प्रसन्न होते हैं और यदि उन्हें संतुष्टि मिलती है तो वे परिवार के सदस्यों को दीर्घायु, वंशवृद्धि व अनेक प्रकार के आशीर्वाद देकर पितृलोक लौट जाते हैं.
इस वर्ष पितरों का पितृपक्ष मास की शुरुआत 28 सितंबर से हो रही है जो 14 अक्टूबर तक रहेगा. श्राद्ध पितरों की तिथि के अनुसार किया जाता है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध या तर्पण का महत्व है. आमतौर पर पुरुष ही ये काम करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाएं भी पितरों के निमित्त श्राद्ध या तर्पण कर सकती हैं? किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हैं, तो ऐसे में परिवार की महिलाएं अपने पिता के श्राद्ध और पिंड का दान कर सकती हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार यदि कोई पुत्री सच्चे मन से अपने पिता का श्राद्ध करती है तो पुत्र के न होने पर पिता उसे स्वीकार कर आशीर्वाद देते है. वहीं परिवार में पुरुषों की अनुपस्थिति में महिलाएं भी श्राद्ध करने की हकदार होती हैं.
‘माता सीता ने ससुर का किया था पिंडदान’
गया वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजा आचार्य ने बताया कि गया के फल्गू तट पर स्थित सीता कुंड के पास माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. राजा दशरथ की इच्छा का पालन करते हुए माता सीता ने तब फालगु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. इस तरह से शास्त्रों में पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्रवधू को पिंडदान या श्राद्ध का अधिकार प्राप्त हुआ.
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FIRST PUBLISHED : September 18, 2023, 20:27 IST