कुंदन कुमार/गया. पितृपक्ष के पहले दिन पटना जिले की पुनपुन नदी में स्नान कर पिंडदान का विधान है. मान्यता के अनुसार, पितरों का गयाजी में पिंडदान करने से पहले यहां पिंडदान करना जरूरी होता है. पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गया में पिंडदान को संपन्न माना जाता है. पिंडदानी पुनपुन नदी में श्राद्ध करने के बाद गया के लिए रवाना होते हैं.
कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ कारणों से पिंडदानी पुनपुन में पिंडदान नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में अगर कोई श्रद्धालु सीधे गयाजी आता है तो वे यहां के गोदावरी तालाब में पिंडदान के साथ त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू कर सकता है. इस बार 28 सितंबर से पितृपक्ष मास की शुरुआत हो रही है. पितृपक्ष मास में पूर्वजों का पिंडदान, तर्पण आदि किया जाता है.
भगवान श्री राम ने किया था पहला पिंडदान
मान्यताओं के अनुसार, पुनपुन घाट पर ही भगवान श्री राम माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहले पिंड का तर्पण किया था, इसलिए इसे पिंडदान का प्रथम द्वार कहा जाता है. इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर पूरे विधि-विधान से तर्पण किया गया था. त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने वाले श्रद्धालु पटना के पुनपुन या गया के गोदावरी से कर्मकांड शुरु करते हैं. वैसे तो गया शहर में सालभर पिडंदानी आते हैं, लेकिन पितृपक्ष माह में पिंडदान करने का विशेष महत्व है. पितृपक्ष पखवारे में मुख्य रूप से पांच तरह के कर्मकांड का विधान है. जिसमें 1, 3 ,7 और 17 दिन का पिडंदान होता है. 17 दिन का पिडंदान को त्रिपाक्षिक पिंडदान कहा जाता है.
पुनपुन या गोदावरी में स्नान के बाद करें पिंडदान
इस संबंध में जानकारी देते हुए गया के पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने के लिए पुनपुन नदी से पिंड प्रदान आरंभ होता है, जो भी श्रद्धालु बाहर से आते हैं वह सबसे पहले पुनपुन नदी में तिल और जल का अर्पण करने के बाद गया जी आएं, लेकिन किसी कारणवश श्रद्धालु पुनपुन नदी में पिंडदान नहीं कर सके. गया के गोदावरी तालाब में स्नान कर पिंडदान करने से उन्हें पुनपुन श्राद्ध जैसा ही फल मिलता है. इस वर्ष 28 सितंबर को पुनपुन श्राद्ध होगा और इस दिन पुनपुन या गोदावरी में स्नान कर विधि विधान के साथ पिंडदान किया जाएगा.
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FIRST PUBLISHED : September 27, 2023, 13:30 IST