राजस्थान राजा रजवाड़ों के इतिहास और अपनी हेरिटेज इमारतों, किलों, बावड़ियों और छतरियों के लिए जाना जाता है. ऐसा ही नायाब सूर्य मंदिर बूंदी में है. 350 साल पहले बने इस मंदिर की कारीगरी आज भी लोगों को हैरान करती है. बूंदी की सूरज की छतरी पर आज भी सूर्य की पहली किरण पड़ती है, इसके बाद शहर में सवेरा होता है. रिपोर्ट: शक्ति सिंह/कोटा.
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बूंदी में अरावली पर्वतमाला की चोटी पर स्थापित सूरज की छतरी, जिसका निर्माण सन 1673 में राजमाता श्याम कंवर ने महाराव छत्रसाल सिंह की स्मृति में करवाया था. इसे बनाने में 3 साल का समय लगा.
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विशाल और नायाब इस छतरी को ज्योतिष और वैज्ञानिक विधि से बनाया गया था. बूंदी में सबसे पहले सूर्य की किरण इसी सूर्य मंदिर पड़ती है, इसके बाद शहर में सवेरा होता है.
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इतिहास के जानकार राजकुमार दाधीच ने बताया कि सूरज की इस छतरी का इतिहास 350 साल से भी अधिक समय का है. इसका निर्माण राजमाता श्याम कंवर ने करवाया था, जिसे बनने में 3 साल का समय लगा.
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बताया कि यह नायाब छतरी ज्योतिष और वैज्ञानिक दृष्टि से अरावली की पर्वतमाला की चोटी पर स्थापित करवाई गई थी. यह छतरी सनराइज और सनसेट पॉइंट है. यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त देखने में अलग ही आनंद आता है.
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इस छतरी के गर्भगृह में संगमरमर के पत्थर से बनी सात घोड़े पर सवार भगवान सूर्यनारायण की प्रतिमा है. पद्मासन में भगवान सूर्य यहां अपने साथ घोड़ों वाले रश्मि रथ पर विराजमान हैं.
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5 फीट 8 इंच ऊंची इस मूर्ति पर जब सूर्य की किरणें गिरती हैं तो इसकी स्वर्ण आभा मंत्रमुग्ध कर देती है. सूरज की छतरी किले के ऊंचे पहाड़ पर मौजूद है. यहां से किले की निगरानी भी की जाती थी.