अधीर रंजन ने कहा कि पंडित नेहरू ने कहा था कि संसदीय लोकतंत्र कई गुणों की मांग करता है, यह क्षमता, काम के प्रति समर्पण और आत्म-अनुशासन की मांग करता है। हालाँकि उन्हें (पंडित नेहरू) संसद में भारी बहुमत हासिल था, लेकिन वे विपक्ष की आवाज़ सुनने में अथक थे और सवालों का जवाब देते समय कभी भी मज़ाक नहीं उड़ाते थे या टाल-मटोल नहीं करते थे।
काफी चर्चा के बीच, संसद का ‘विशेष’ सत्र आज, 18 सितंबर को शुरू हो गया है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा कामकाज की सूचियां प्रसारित कर दी गई हैं, लेकिन विपक्षी दलों द्वारा दावा किए जाने के बाद अटकलें तेज हो गईं कि केंद्र पांच सत्रों के दौरान आश्चर्यजनक तत्व ला सकता है। इन सब के बीच बैठक के पहले दिन ने संविधान सभा के गठन से लेकर संसदीय यात्रा के 75 वर्षों को चिह्नित किया है। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में पिछले 75 वर्षों की उपलब्धियों, अनुभवों, यादों और सीखों पर चर्चा होगी। इसी दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि आज इस (पुराने) संसद भवन से बाहर निकलना हम सभी के लिए वास्तव में एक भावनात्मक क्षण है। हम सभी अपनी पुरानी इमारत को अलविदा कहने के लिए यहां मौजूद हैं।
अधीर रंजन ने कहा कि पंडित नेहरू ने कहा था कि संसदीय लोकतंत्र कई गुणों की मांग करता है, यह क्षमता, काम के प्रति समर्पण और आत्म-अनुशासन की मांग करता है। हालाँकि उन्हें (पंडित नेहरू) संसद में भारी बहुमत हासिल था, लेकिन वे विपक्ष की आवाज़ सुनने में अथक थे और सवालों का जवाब देते समय कभी भी मज़ाक नहीं उड़ाते थे या टाल-मटोल नहीं करते थे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू जब संसद में भाषण देते समय अपनी समय सीमा पार कर जाते थे तो उनके लिए स्पीकर की घंटी बजती थी, इससे पता चलता है कि संसद के अपमान से परे कोई नहीं है, यह भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में नेहरू का योगदान था।
अधीर रंजन चौधरी ने आगे कहा किचंद्रयान को लेकर चर्चा चल रही थी, मैं कहना चाहता हूं कि 1946 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में परमाणु अनुसंधान समिति बनी थी। वहां से हम आगे बढ़े और 1964 में इसरो का विकास किया। लेकिन आज हम इसरो को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन नहीं तो क्या कहेंगे? ये भारत, इंडिया का मुद्दा कहां से उठ गया? लोकसभा में विपक्ष के नेता ने याद किया कि कैसे जब पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू अपने भाषण के दौरान समय सीमा से आगे बढ़ जाते थे तो स्पीकर घंटी बजाते थे। उन्होंने उस समय भारत के लिए नेहरू के योगदान की ओर ध्यान दिलाया जब देश भारत-पाकिस्तान विभाजन, गरीबी और अन्य चुनौतियों के दुष्परिणामों से जूझ रहा था। मनमोहन सिंह पर बोलते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि उनके बारे में कहा जाता था कि वह मौन रहते हैं, वह मौन नहीं रहते थे. बल्कि काम ज्यादा और बात के सिधांत कर चलते थे।