इजराइल और फिलस्तीन के बीच वैसे तो संघर्ष कोई नई बात नहीं है लेकिन इस बार संघर्ष का जो स्वरूप सामने आया है उसने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। दरअसल रूस-यूक्रेन युद्ध ने आज की दुनिया को यह बता दिया है कि जंग में सिर्फ दो देश ही नहीं पिसते बल्कि उसका असर पूरी दुनिया पर किसी ना किसी रूप में पड़ता है। इजराइल और हमास के बीच छिड़ी लड़ाई के चलते जिस तरह दुनिया भर के शेयर बाजारों में गिरावट देखी जा रही है, सोने-चांदी और कच्चे तेल के भाव चढ़ रहे हैं उसको देखते हुए महंगाई के आसमान पर पहुँचने का अंदेशा है। पहले ही दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं तमाम तरह की चुनौतियों से जूझ रही हैं, ऐसे में सैन्य संघर्षों की बढ़ती तादात ने चिंता और बढ़ा दी है। खासतौर पर इजराइल पर जो भीषण हमला किया गया है उसके विनाशकारी परिणाम होना तय है क्योंकि इजराइल की ताकत, उसकी तकनीक, उसकी खुफिया ताकत और उसकी बुद्धिमत्ता को इस्लामिक आतंकवादियों ने तगड़ी चुनौती दी है।
साथ ही यह युद्ध पश्चिमी और अरब देशों के बीच मतभेदों की खाई को चौड़ा करेगा जोकि दुनिया के हित में नहीं है। इसे एक उदाहरण के जरिये समझा जा सकता है। आज से करीब 50 साल पहले, इजराइल 1973 के योम किप्पुर युद्ध का पूर्वानुमान लगाने में विफल रहा था और तब अरब देशों के गठबंधन ने उसकी सीमाओं पर चौंकाने वाला हमला किया था। अब जब हमास ने जोरदार हमला किया तब भी इजराइल उसका पूर्वानुमान लगाने में विफल रहा। 50 साल पहले अरब देशों के गठबंधन ने हमला किया था तो अब हुआ हमला इजराइल के सऊदी अरब से सुधर रहे रिश्तों से नाराज हमास और कुछ अरब देशों के गुस्से का परिणाम बताया जा रहा है।
इसके साथ ही ऐसा प्रतीत होता है कि इजराइल का खुफिया तंत्र एक बार फिर सुरक्षित होने के अति आत्मविश्वास का शिकार हो गया है। देखा जाये तो इजराइली समाज में व्यापक रूप से धारणा थी कि आतंकवादी समूह हमास खुद को और गाजा के निवासियों को और अधिक पीड़ा तथा नुकसान से बचाने के लिए इजराइल के साथ बड़े पैमाने पर सैन्य टकराव से बचेगा लेकिन शनिवार सुबह हवा, जमीन और समुद्र के रास्ते एक साथ किए गए हमलों ने इजराइलियों की इस धारणा को बुरी तरह तोड़ कर रख दिया है। हमले की शुरुआत इजराइल पर 2,000 से अधिक रॉकेट दागे जाने से हुई। रॉकेटों की आड़ में, गाजा से बड़े पैमाने पर, सावधानीपूर्वक समन्वित, जमीनी ऑपरेशन शुरू किया गया और गाजा पट्टी से सटे 20 से अधिक इजरायली कस्बों और सेना के ठिकानों पर हमला किया गया। इजराइल को इससे भारी नुकसान हुआ। जवाब में इजराइल ने गाजा स्थित हमास के ठिकानों और कमान पर हवाई बमबारी की और अपने सैन्य रिजर्व की बड़े पैमाने पर लामबंदी शुरू कर दी।
हमास आखिर योम किप्पुर युद्ध की तरह यह हमला करने में कैसे सफल रहा? इस पर आने वाले हफ्तों, महीनों और वर्षों में कई विश्लेषण किये जाएंगे। यह भी जांचा जायेगा कि खुफिया, परिचालन और राजनीतिक तौर पर क्या विफलताएं रहीं। वैसे यहां गौर करने लायक बात यह भी है कि हमले के लिए 1973 के युद्ध की तरह जानबूझकर सबाथ और सुक्कोट की यहूदी छुट्टी को चुना गया था। लेकिन इजराइल ने जिस तरह एकजुट होकर हमास को तगड़ा सबक सिखाने का अभियान शुरू किया है उसमें उसे अमेरिका सहित विभिन्न देशों का समर्थन मिलना भी शुरू हो गया है इसलिए ऐसा लग रहा है कि यह संघर्ष जैसे को तैसे के जवाब से परे जा सकता है। हालांकि दुनिया ने यह भी देखा कि अचानक हुए हमले का जवाब देने में ताकतवर देश इजराइल के भी पसीने छूट गये थे और घंटों तक अपर्याप्त या बिना तैयारी के इजराइली सैनिकों ने इन हमलों का मुकाबला किया।
हमले की संभावित वजहें
इस हमले के पीछे जो कई सारे कारण बताये जा रहे हैं उनमें एक यह भी है कि इजराइली जेलों में बंद हमास के आतंकवादियों को बाहर निकलवाने के लिए ही इजराइली नागरिकों का अपहरण किया गया है। हम आपको याद दिला दें कि इजराइली सैनिक गिलाद शालित को गाजा में 2006 से बंदी बनाकर रखा गया था और 2011 में उसे एक हजार से अधिक फिलस्तीनी कैदियों के बदले में रिहा किया गया था। इन कैदियों में गाजा में हमास का वर्तमान नेता याह्या सिनवार भी शामिल था जो इजराइल की जेल में 22 साल से कैद था। हमास का एक और व्यापक उद्देश्य सऊदी अरब और इजराइल के बीच संबंधों को सामान्य बनाने को लेकर अमेरिका और सऊदी अरब के बीच चल रही बातचीत को बाधित करना हो सकता है। इन वार्ताओं को विफल करना हमास के प्रमुख समर्थक ईरान और उसके सहयोगियों के लिए एक अहम सफलता होगी। हम आपको बता दें कि ईरान ने कहा है कि वह इजराइल के खिलाफ हमास के हमलों का समर्थन करता है।
आगे क्या हो सकता है?
गाजा में हमास के खिलाफ इजराइल का जवाबी हमला ‘आयरन स्वॉर्ड्स’ नाम से लंबे समय तक चलने की संभावना है। हालांकि इसके सामने आने वाली चुनौतियां भी बहुत बड़ी हैं। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार को इजरायली जनता के विश्वास को बहाल करने और हमास व अन्य दुश्मनों के खिलाफ इजराइल की ध्वस्त हो चुकी सैन्य प्रतिरोध क्षमता को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ अन्य चुनौतियों का भी सामना करना होगा। इसके अलावा, फिलस्तीनी नागरिकों के हताहत होने की संख्या बढ़ने के साथ ही इजराइल के लिए अपने आक्रामक अभियान के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन को लंबे समय तक बनाए रखना भी मुश्किल हो सकता है। वहीं, उत्तरी इजराइल में लेबनान के चरमपंथी समूह हिजबुल्ला (लेबनान में आतंकवादी समूह जिसकी हमास के साथ साझेदारी है) के साथ संघर्ष जिस तरह शुरू हुआ है उससे युद्ध के व्यापक पैमाने पर फैलने की आशंका बढ़ गयी है। इजराइल की जमीनी कार्रवाई के चलते लेबनान, वेस्ट बैंक और इजराइल के भीतर मिश्रित यहूदी-फलस्तीनी आबादी वाले शहरों सहित अन्य मोर्चों पर तनाव बढ़ने का खतरा भी बढ़ गया है।
देखा जाये तो हिंसा का मौजूदा दौर अभी शुरू हुआ है, लेकिन यह दशकों में सबसे खूनी हो सकता है। शायद यह 1980 के दशक में लेबनान में इजराइल और फिलस्तीनियों के बीच हुए युद्ध के बाद से भी ज्यादा खूनी साबित हो सकता है। बताया जा रहा है कि इजराइली, हमास के खिलाफ अपने देश की सैन्य प्रतिरोध क्षमता को पुनः ताकतवर होना बहुत जरूरी मानते हैं। कई लोगों को यह भी लगता है कि यह क्षमता गाजा पर इजराइल के सैन्य कब्जे के रूप में भी हो सकती है, अगर ऐसा होता है तो यह गाजा के आम लोगों के लिए और अधिक विनाशकारी परिणाम लाएगा।
घरेलू राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
अल्पकाल और मध्यम काल में हमास द्वारा अचानक किए गए हमले के नुकसान का असर इजराइल की घरेलू राजनीति पर पड़ना तय है। हालांकि, हमले के इजराइलियों और उनकी सुरक्षा पर पड़ने वाले असर का आकलन करना जल्दबाजी होगी। इसके अलावा, एक चीज तय है कि इजराइलियों और फिलस्तनियों के बीच मौजूद अविश्वास का भाव और भी निचले स्तर पर चला जाएगा। माना जा रहा है कि नेतन्याहू की दक्षिणपंथी सरकार के लिए अब संयम दिखा पाना मुश्किल है। नेतन्याहू अब संकल्प ले चुके हैं कि फिलस्तीन के मानचित्र को बदल कर रख देना है। वह जान रहे हैं कि पश्चिमी देशों का जिस तरह इजराइल को प्रबल समर्थन मिला है उसके चलते संयुक्त राष्ट्र भी लगभग मौन व्रत धारण किया रहेगा।
संघर्ष के लंबा खिंचने का संकेत अमेरिका ने भी दिया
बहरहाल, इस युद्ध में अमेरिका खुल कर इजराइल का साथ दे रहा है। उसने अपने युद्धपोत और युद्धक विमान इजराइल की मदद के लिए भेज भी दिये हैं। अमेरिका भी मान रहा है कि गंभीर खुफिया विफलता हुई है लेकिन उसका कहना है कि पहले उस क्षेत्र को वापिस हासिल करना प्राथमिकता है जिस पर चरमपंथी समूह ने कब्जा कर लिया है उसके बाद खुफिया विफलता के मुद्दे पर गौर किया जायेगा। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि ‘‘यह उन सभी के लिए चुनौती है, जो इजराइल का समर्थन करते हैं तथा आतंकवाद के भीषण कृत्यों का विरोध करते हैं। इसलिए फिर से ऐसे उपाय करना जरूरी है ताकि जो हुआ उसके लिए जवाबदेही तय हो।” साथ ही अमेरिका का कहना है कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ऐसा दोबारा न हो। इसलिए इसमें कुछ समय लगने की संभावना है।