Navratri 2023: नवरात्रि में घट स्थापना कब और कैसे करें? रायपुर के ज्‍योतिषी से जानें शुभ मुहूर्त

रामकुमार नायक, रायपुरः हिंदू धर्म में नवरात्रि त्योहार का बहुत ही खास माना जाता है, इस वर्ष 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होने जा रही है. शारदीय नवरात्रि का महापर्व आश्विन माह में मनाया जाता है, जो कि पूरे 9 दिनों तक दुर्गा मां के नौ स्वरूपों की पूजा-आराधना की जाती है. नवरात्र में कलश स्थापना यानि घट स्थापना का भी विशेष महत्व माना जाता है. घट स्थापना नवरात्रि के पहले दिन किया जाता है, जो कि एक बहुत ही विशेष अनुष्ठान है. इसकी स्थापना सही समय पर करना बहुत ही जरूरी होता है.


आपको बता दें कि, घटस्थापना के लिए सप्त धान्य के लिए साफ मिट्टी, मिट्टी के बर्तन, सात प्रकार का अनाज, छोटा मिट्टी या पीतल का कलश, गंगा जल, कलावा, इत्र, सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्का, 5 आम या अशोक के पत्ते, अक्षत, नारियल, लाल कपड़ा, गेंदे का फूल और दूर्वा घास जैसे पूजा की सामग्री की आवश्यकता होती है.

कैसे करें घट स्थापना
कलश स्थापना के लिए मिट्टी के बर्तन में मिट्टी डालकर, उसमें 7 प्रकार के अनाज डालकर मिट्टी की तीन परतें बना लेनी चाहिए, फिर उसमें थोड़ा पानी डाल देना चाहिए. कलश में गंगा जल भरकर उसमें कलावा बांध लेना चाहिए. इस जल में सुपारी, अक्षत और सिक्का डालकर कलश के किनारे पर 5 आम या अशोक के पत्ते रखना चाहिए फिर इसके बाद नारियल के ऊपर लाल कपड़ा बांधकर कलश पर रख देना है, और कलश पर कलावा लपेटकर स्थापित किए गए इस कलश को मां दुर्गा की पूजा के बाद उनके सामने 9 दिनों तक रखना होता है.

पूजा करने का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि नवरात्रि पर्व शक्ति आराधना का महापर्व होता है. शारदीय नवरात्र में कलश स्थापना की जाती है, कलश स्थापना का विशेष महत्व माना जाता है. कलश स्थापना का तात्पर्य यह है कि, उस दिन हम मां भगवती दुर्गा जी की ज्योति स्वरूप की पूजा करने घर, मंदिर और पंडालों में घट स्थापना करते हैं. कलश स्थापना का मुहर्त प्रतिपदा तिथि के सूर्योदय से प्रारंभ हो जाती है, लेकिन मंदिर और पंडाल वाले अपनी व्यवस्था के अनुसार से इस घट स्थापना की पूजा करते हैं. राजधानी रायपुर के प्राचीन मंदिर मां महामाया देवी मंदिर की परंपरा है यहां घट स्थापना का मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट के मध्य पूजन प्रारंभ होता है. इस अवसर पर पुजारी, आचार्यगण और मंदिर ट्रस्ट के सभी सदस्य मौजूद रहते हैं. सभी पूजन कक्ष में जाकर विधि विधान से इस शुभ मुहूर्त में पूजन प्रारंभ करते हैं. प्राचीन परंपरा के अनुसार प्रधान राज ज्योत को एक कुंवारी कन्या के हाथों से कराई जाती है. यह ज्योत चगमक पत्थर से निकली चिंगारी की निकली हुई अग्नि रहती है.

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