MP Election: चुनाव के ऐलान से पहले भाजपा को टिकट वितरण से फायदा या नुकसान?

हाइलाइट्स

भाजपा की दूसरी सूची भी विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले आने के आसार हैं.
जानकार मानते हैं कि पार्टी के पक्ष में चुनावी माहौल रहा तो जीत का आंकड़ा 30 में से 20-25 सीटों तक भी पहुंच सकता है.

भोपाल. आम आदमी पार्टी के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में जल्द टिकट वितरण का फायदा उठाया. आप ने दिल्ली में तो कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव जीत लिया. भाजपा ने भी अब यही प्रयोग मध्यप्रदेश में किया है. हारी हुई 39 सीटों पर टिकट का ऐलान हो चुका है. यही नहीं, बाकी सीटों पर भी विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले टिकट बांटे जाने के कयास हैं. कांग्रेस इस मामले में पिछड़ गई है.
39 टिकटों पर उम्मीदवारों के नाम आते ही यह चर्चा है कि इससे भाजपा को फायदा होगा? राजनीतिक जानकार बताते हैं कि नुकसान के मुकाबले फायदा ज्यादा होगा. हो सकता है कि कुछ सीटों भीतरघात हो. लेकिन यह तो तब भी होता जबकि बाद में उम्मीदवारों के ऐलान होते. हकीकत यह है कि भाजपा ने 39 में से आधे ऐसे उम्मीदवार दिए हैं जो कि अपने दम पर चुनाव जीत सकते हैं. वैसे भी भाजपा के लिए यह हारी हुई सीटें थी. तो, इनमें से भाजपा 10 सीट भी जीत लेगी तो फायदा ही होगा. जानकार मानते हैं कि पार्टी के पक्ष में चुनावी माहौल रहा तो जीत का आकार 20 से 25 सीटों तक भी पहुंच सकता है. निश्चित ही कांग्रेस के लिए यह स्थिति ठीक नहीं होगी लेकिन भाजपा की बल्ले-बल्ले हो जाएगी.

2018 में हारी सीटों का नाम आकांक्षी सीट
साल 2018 में भाजपा के 103 उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था. इसे भाजपा ने आकांक्षी सीटों का नाम देते हुए जल्दी टिकट घोषित करने का प्रयोग किया है. ऐसे में उम्मीदवार को लंबे समय तक चुनाव के लिए मैदान में काम करने का अवसर देने के मकसद से टिकट घोषित किए हैं. हालांकि इसका दूसरा फैक्टर भी होगा. चुनाव बेहद लंबा हो जाएगा. पार्टी के अंदर ही रहकर विरोध करने वाले नेताओं को इतने लंबे समय तक थामकर रखना आसान नहीं होगा. इसी तरह इतने लंबे समय तक वित्तीय प्रबंधन करना आसान नहीं होगा. अब असली तस्वीर तो नतीजे घोषित होने के बाद ही सामने आएगी.
चुनौती… 18 साल की एंटी इन्कम्बेंसी से निपटना आसान नहीं
मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं. यदि बीच के करीब डेढ़ साल का वक्त छोड़ दिया जाए तो करीब सवा अठारह साल से भाजपा की सरकार है. इसमें से भी करीब पंद्रह साल से ज्यादा वक्त से शिवराज सिंह ही मुख्यमंत्री हैं. ऐसे में भाजपा सरकार से एंटी इन्कम्बेंसी होना लाजिमी है. इस बात को खुद भाजपा के सीनियर लीडर ऑफ द रिकॉर्ड चर्चा में मान भी रहे हैं. 39 सीटों पर भी उम्मीदवारों के सामने यही चुनौती है. हालांकि उन्हें एक बात का यह भी फायदा है कि वहां मौजूदा कांग्रेस के विधायकों के खिलाफ भी एंटी इन्कम्बेंसी है. भाजपा की रणनीति यही है कि खुद की सरकार की एंटी इन्कम्बेंसी की बजाय कांग्रेसी विधायकों की एंटी एन्कम्बेंसी का नेरेटिव बनाया जाए.

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