MP Chunav 2023: मध्यप्रदेश में 20 साल पुराना इतिहास दोहराने की तैयारी में सपा, अखिलेश यादव ने बनाई रणनीति

उत्तर प्रदेश में भले ही समाजवादी पार्टी ने साल 2024 के चुनाव कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के चुनावी रणभूमि में सपा ने बीजेपी के साथ कांग्रेस को भी पटखनी देने की योजना बना ली है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव एमपी के रीवा में दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे थे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मध्य प्रदेश में सपा 20 साल पुराना चुनावी इतिहास दोहरा पाएगी। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा इस बार पूरे दमखम के साथ किस्मत आजमा रही है। सपा ने मध्यप्रदेश की छह विधानसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट भी घोषित कर रखे हैं। सपा ने निवाड़ी सीट से पूर्व विधायक मीरा दीपक यादव, राजनगर सीट से बृजगोपाल पटेल, सीधी जिले की धौहनी विधानसभा सीट से विश्वनाथ सिंह गोंड मरकाम, चितरंगी सीट से श्रवण कुमार सिंह गोंड, भांडेर सीट से आरडी राहुल और मेहगांव सीट से बृजकिशोर सिंह गुर्जर को उतारा है। 

इन इलाकों में सपा का आधार

यूपी के सटे हुए एमपी के बुंदेलखंड, बघेलखंड और ग्वालियर-चंबल संभाग इलाके में सपा का खासा प्रभाव है। बुलंदेखंड क्षेत्र में निवाड़ी, राजनगर और भांडेर सीट तो मेहगांव सीट चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में है। वहीं बिंध्य क्षेत्र में धौहनी और चितरंगी सीट आती है। वहीं समाजवादी पार्टी भी इन्ही इलाकों की सीटों पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित किए हुए है। मध्य प्रदेश अखिलेश यादव का दौरा भी बघेलखंड के इलाके में हो रहा है। यहीं से सपा प्रमुख चुनावी अभियान को धार दे रहे हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को सपा काफी गंभीरता के साथ लड़ने की रणनीति बना रही है। 

सपा आजमा रही किस्मत

गठबंधन के बाद से ही सपा मध्य प्रदेश में चुनावी किस्मत आजमाती रही है। लेकिन इस पार्टी का सबसे अच्छा प्रदर्शन साल 2003 के विधानसभा चुनाव में रहा था। मध्य प्रदेश में साल 2003 के चुनाव में सपा ने सात सीटें जीती थीं। जिसे वह दोबारा फिर हासिल नहीं कर सकी। सपा मध्यप्रदेश में हर चुनाव लड़ी है। लेकिन वह ना तो 20 साल पुराने नतीजे को बरकरार रख पाई और ना ही उसे दोबारा हासिल कर सकी। सपा का राजनीतिक ग्राफ चुनाव दर चुनाव मध्य प्रदेश की सियासत में लगातार गिरता जा रहा है। भले ही साल 2003 में समाजवादी पार्टी 7 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। लेकिन फिर उसकी सीटें कम होती गईं। 

साल 2008 में सपा सिर्फ एक सीट पर ही जीत हासिल कर पाई थी। वहीं साल 2013 में सपा का मध्यप्रदेश में खाता तक नहीं खुल पाया था। वहीं साल 2013 में अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में सीएम की कुर्सी पर विराजमान थे। हांलाकि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में सपा एक सीट जीतने में कामयाब हुई थी। लेकिन सियासी उलटफेर में बिजावर सीट से जीतने वाले सपा विधायक राजेश शुक्ला ने भाजपा का दामन थाम लिया था। ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश 20 साल पुराने नतीजों को फिर से दोहराने के कोशिश में हैं। एमपी के चुनावी रण में उतरकर अखिलेश यादव अब कांग्रेस पर ज्यादा से ज्यादा सीटों के लिए दबाव बनाने की रणनीति अपना रहे हैं। जिससे कि वह कुछ सीटें हासिल कर किंगमेकर की भूमिका में आ सकें। 

राज्य में सपा का सियासी आधार

उत्तर प्रदेश में भले ही समाजवादी पार्टी का वोटबैंक यादव और मुस्लिक के इर्दगिर्द है, लेकिन एमपी में सपा का सियासी आधार सिर्फ यादव समुदाय है। कांग्रेस और बीजेपी का प्रभाव यादव समुदाय में सपा से ज्यादा है।  बुलंदेखंड और चंबल के इलाके में 6 फीसदी यादव समुदाय किसी भी पार्टी का खेल बनाने और बिगाड़ने में सक्षम हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश में यादव समुदाय के बीच सपा द्वारा अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखना किसी मुश्किल टास्क से कम नहीं है। लेकिन यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या सपा एक बार फिर 20 साल पुराने इतिहास को दोहराने में कामयाब होगी।

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