अरविंद शर्मा/भिण्ड. जिले के बोरेश्वर धाम मंदिर पर मोर छठ के दिन दूल्हा-दुल्हन के मोर विर्सजन के लिए मेला का आयोजन किया जाता. इस मेले में भिण्ड जिले के आसपास के लोग अपने टैक्टर, टेम्पो आदि वाहनो से सैकड़ों की संख्या में पहुंचकर बोरेश्वर धाम मंदिर में भगवन का दर्शन करते हैं. उसके बाद बड़े ताल में दूल्हा-दुल्हन का मोर विर्सजन किया जाता है. इस दौरान महिलाए मंगल गीत भी गाती हैं.
भिंड जिले के प्राचीन बोरेश्वर धाम शिव मंदिर में मोर छठ के दिन एक बड़े मेला का आयोजन किया जाता है, इस मेले में महिलाएं वर-वधु के सिर पर लगे मोर को विसर्जन करती हैं. इस दौरान महिलाएं मंगल गीत गाकर वर – वधु को आशीर्वाद देती हैं और उनकी जोड़ी की सलामत रखने के लिए शिव जी से आराधना करती हैं.
पति-पत्नी के बीच नहीं होता मनमुटाव
ज्योतिषो की माने तो वर वधु के सिर के ऊपर मोर मोरिया रखने से पति-पत्नी का आपसी मनमुटाव नहीं होता, आने वाली नकरात्मक शक्ति का प्रभाव दूर होता है. शादी होने के एक साल बाद मोर पंख का विसर्जन नदी या मंदिर के आसपास तालाब में किया कर दिया जाता है.
सिर पर मोर रखने का महत्व
बोरेश्वर धाम पर लाखों महिलाएं सिर पर मोर लगाकर पहुंचती हैं. इसके महत्व के बारे में ज्योतिषाचार्य ओमप्रकाश जी बताते हैं कि जब वर वधु की शादी होती है तो उस दौरान सात फेरे लिए जाते हैं. तब वर- वधु के सिर के ऊपर एक एक मोर के पंख मुकुट में लगाते हैं. मान्यता है कि मोर भगवान विष्णु जी की सवारी है, इसलिए इसे पवित्र माना गया है. श्री कृष्ण भी मुकुट पर मोर पंख धारण करते हैं. इसे धारण करने से शरीर पर नकारात्मक शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता है.
जानिए मोर छठ पूजा के बारे में
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर लाल चंदन और केसर से भगवान सूर्य की प्रतिमा बनाई जाती है. प्रतिमा पर भगवान सूर्य को प्रिय वस्तुएं जैसे लाल चंदन, लाल फल, लाल वस्त्र आदि चढ़ाएं जाते हैं, घी का दीपक जलाया जाता है और सूर्य देव के विभिन्न नाम तथा मंत्रों का जाप किया जाता है. सूर्यनारायण को तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल कुमकुम, लाल रंग के पुष्प डालकर अर्घ दिया जाता है. पूजन के बाद शाम को चीनी, घी, फल, दृव्य दक्षिणा और वस्त्र ब्राह्मण को दान देने होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 21, 2023, 16:30 IST