MP के इस शहर में महाभारत के समय का मंदिर, दानवीर राजा कर्ण ने की थी स्थापना

मोहित भावसार/शाजापुर. शाजापुर जिले में अनेक प्राचीन धरोहर हैं. यहां कई ऐतिहासिक और प्राचीनकालीन मंदिर आज भी स्थापित हैं, जो शाजापुर जिले को एक अलग ही पहचान दिलाते हैं. ऐसे ही एक प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर की जानकारी आज हम आपको देने जा रहे हैं, जिनका निर्माण राजा कर्ण ने करवाया था.

वैसे तों यह मंदिर उज्जैन जिले की तराना तहसील में आता है, लेकिन यह मंदिर शाजापुर जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. इसलिए यह शाजापुर शहर के लोगों का भी आस्था का केंद्र बना हुआ है.

5000 वर्ष पुराना मंदिर का निर्माण
इस मंदिर के निर्माण की बात करें तो मंदिर का निर्माण महाभारतकाल में राजा कर्ण के द्वारा किया गया था. वहीं मंदिर के पुजारी राकेश नाथ के मुताबिक, मंदिर लगभग 5000 वर्ष पुराना है. इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर की सेवा कई वर्षों से नाथ समाज के लोगों  द्वारा ही की जा रही है. पुजारी राकेश बताते हैं कि करेड़ी माता का पौराणिक नाम देवी कनकावती था, और मां कानकावती राजा कर्ण की आराध्या देवी थीं. राजा कर्ण की आराधना से प्रसन्न होकर मां कनकावती ने उन्हें सोना दिया, जिसे राजा ने गरीबों में बांट दिया.

मां सती ने दिए यज्ञ में अपने प्राण
लम्बे समय से मंदिर से जुड़े डॉ. भगवान शर्मा बताते हैं कि सतयुग में राजा दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया. जिस यज्ञ में विभिन्न देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन राजा ने अपनी प्रिय पुत्री सती और उनके पति शंभुनाथ को कपालधारी होने के कारण आंमत्रित नहीं किया. पर पिता के प्रेम से वशीभूत होकर पुत्री सती अपने पति के साथ यज्ञ में पहुंची और वहां अपने पति का आसन नहीं होने के कारण क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में ही अपने प्राण त्याग दिए. यह देखकर सती के पति शंभुनाथ क्रोधित हो उठे. शंभुनाथ को क्रोधित देख सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और सती के पति शंभुनाथ के क्रोध को शांत करने के लिए प्रार्थना करने लगे. तब भगवान बैकुंठवास ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए. जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे वह स्थान देवी शक्तिपीठ के नाम से कहलाने लगे.

ऐसे पड़ा देवी कनकावती नाम
डॉ.भगवान शर्मा बताते हैं कि ग्राम करेड़ी में माता सती का कर्ण (सोना) फूल गिरा था, इसलिए यह स्थान कर्णावती के नाम से प्रचलित हुआ. कर्ण फुल सोने का था, इसलिए इस माता के स्थान को कनकावती कहां जाने लगा,कनकावती का मतलब कनक और सोना. इसी के साथ ही डॉक्टर भगवान शर्मा यह भी बताते हैं कि भगवान श्री कृष्ण जब शिक्षा प्राप्त करने के लिए उज्जैन के सांदीपनि आश्रम की ओर जा रहे थे, तब आश्रम जाते समय उन्होंने इस स्थान पर मां सती के दर्शन कर रात्रि विश्राम किया था.

महाभारत काल में पांडवों ने भी यहां काटा वनवास
जानकारी देते हुए डॉक्टर भगवान शर्मा बताते हैं कि महाभारत काल में पांडवों ने 14 वर्ष के वनवास अवधि में कई महीनों तक माता की आराधना की थी, लेकिन पांडवों के कनकावती धाम पर होने की सुचना गुप्तचरों के द्वारा दानवीर राजा कर्ण को मिली और वह उन्हें खोजता हुआ कनकावती आ गया .राजा कर्ण की यह जानकारी भगवान श्री कृष्ण को पता चली तो उन्होंने पांडवों को वहां से दूर पहाड़ी क्षेत्र में भेज दिया.हम आपको बता दे कि यह पहाड़ी क्षेत्र आज भी शाजापुर में पाण्डुख़ोह के नाम प्रसिद्ध है.

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