दीपक पाण्डेय/खरगोन. निमाड़ अंचल में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली बोली है ‘निमाड़ी’ भाषा. हर साल 19 सितंबर को पूरे निमाड़ अंचल में ‘निमाड़ी दिवस’ मनाया जाता है और इस दिन निमाड़ी बोली से जुड़े रचनाकार, साहित्यकार, कलाकार एक मंच पर एकत्रित होते है और निमाड़ी में चर्चा करते हैं. निमाड़ी से जुड़े कलाकारों का सम्मान भी इस दिन किया जाता है. यह सिलसिला विगत 2 दशक से निरंतर चल रहा है.
निमाड़ दिवस पर संत सिंगाजी के यहां जन्मी, पली और बड़ी हुई निमाड़ी बोली से जुड़ी एक ऐसी शख्सियत हरीश दुबे के बारे में हम आपको बताने जा रहे है, जो खरगोन जिले की पर्यटन नगरी महेश्वर के रहवासी है और पेशे एक लेखक और साहित्यकार है, विगत 30 वर्षो से निमाड़ी बोली से जुड़े रहकर निमाड़ी में कई गीत, कहानियां, कविताएं और किताबें लिख चुके है. अंतरराष्ट्रीय फलक पर निमाड़ी के लिए पहचाने जाते है.
ऐसे हुई निमाड़ी दिवस की शुरुआत
लोकल 18 से बातचीत में साहित्यकार हरीश दुबे बताते है की निमाड़ अंचल में 1 करोड़ से ज्यादा लोग निमाड़ी बोली बोलते है. निमाड़ी में आलेख, उपन्यास, कहानियां, कविताएं और गीत लिखे जा रहे है. उपन्यासकार जगदीश जोशीला ने निमाड़ी में बड़े-बड़े उपन्यास लिखे हैं और निमाड़ी गम्मत तो वैसे भी पुराने विधा है. निमाड़ के वरिष्ठ रचनाकारों एवं साहित्यकारों ने सन 1953 में निमाड़ी को लेकर एक संस्था का गठन किया और निमाड़ी का उत्थान, इसका उन्नयन कैसे हो, इसकी चिंता प्रकट की. इसी वजह से हर साल 19 सितंबर को अखिल निमाड़ लोक परिषद द्वारा निमाड़ अंचल में निमाड़ी दिवस मनाया जाना शुरू हुआ. यह सिलसिला पिछले दो दशकों से निरंतर चल रहा है.
मिला राज्य स्तरीय सम्मान
इसी साल संस्कृति विभाग की संस्कृति परिषद के साहित्यिक अकादमी द्वारा राज्य स्तरीय पुरस्कार वितरित किए थे. अखिल भारतीय पुरस्कारो में निमाड़ी बोली को भी शामिल किया गया. निमाड़ी बोली के साहित्यकार रचनाकार के रूप में हरीश दुबे को भोपाल में सम्मानित किया गया. यह सम्मान उन्हे उनके द्वारा लिखी किताब, जिसका शीर्षक ‘दीयों बणायों कुम्हार न’ के लिए उन्हें सम्मानित किया गया.
100 से ज्यादा गीत लिखे
हरीश दुबे बताते है की निमाड़ी के साथ उन्हे तीन दशक हो गए हैं . उनका लिखा एक गीत \”नर्मदा मैया तू महारानी छै…बड़ों मिठो मिठो…ओ मैया अमृत जैसो…थारो तो पानी छै\” काफी प्रसिद्ध हुआ है. इस गीत को प्रसिद्ध कथा वाचक रमेश ओझा ने करीब 122 देश में गाया है. जिससे निमाड़ी बोली जिले और प्रदेश से उठकर अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहुंची है. इसके अलावा उनकी 100 से अधिक कविताएं निमाड़ी संकलन में प्रकाशित हुई है, इतने ही गीत उन्होंने लिखे है जो यूट्यूब पर \”निमाड़ी गीत, नर्मदा गीत, निमाड़ के गीत\” नाम से उपलब्ध है और कई किताबें भी उन्होंने लिखी है.
पाठ्यक्रमों में शामिल हो रही बोली
वें बताते है की, आज की पीढ़ी, खास कर बच्चे अपनी संस्कृति, निमाड़ी बोली से धीरे-धीरे दूर होते जा रहे है, क्यूंकि हमारा परिवेश ऐसा हो गया है, जहां अंग्रेजीयत की बहुतायत है. अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है, चलन है. हिंदी भाषा पर ही बहुत संकट है. निमाड़ी की बात तो चिंताजनक होगी ही. हालांकि नई शिक्षा नीति के तहत निमाड़ी अब पाठ्यक्रमों में भी शामिल की जा रही है. बड़े शहरों में छोटी जगह में आदिवासी, निमाड़ी, बरेली,मालवी पर काम हो रहा है. इन बोलियां में साहित्य का लेखन और प्रशासन निरंतर जारी है और कई शोधार्थियों ने निमाड़ी में पीएचडी की है.
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FIRST PUBLISHED : September 19, 2023, 13:36 IST