MP की इन गुफाओं में हैं 12 हजार साल पुरानी रॉक पेंटिंग, देख रह जाएंगे दंग!

अनुज गौतम/ सागर: हजारों साल पहले मानव क्या करते थे. उनके विलास के क्रम को समझने के लिए शैल चित्रों का अध्ययन किया जाता है. ऐसे ही हजारों साल पुराने शैल चित्र विंध्य की पर्वत श्रृंखलाओ पर भी पाए जाते हैं. सागर की आफचंद (आबचंद) की गुफाओं में भी 10 से 12 हजार साल पुराने शैल चित्र मौजूद हैं, शोधकर्ताओं के अनुसार आबचंद सागर का प्रागैतिहासिक काल हैं. आबचंद की गुफाओं में उच्च पुरापाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के मानव विकास के शैलचित्र पाए जाते हैं. बुंदेलखंड में आदम मानव के विकास की कहानियों को समझने के लिए यही एक स्थान है जो उनकी कर्मस्थली रही है. यहां पर एक दर्जन से अधिक गुफाओं और कंदराओं में विकास की कहानी समझने को मिलती है. जानकारो के अनुसार यहां पर. पशुपालन, शिकार , आमोद-प्रमोद, मनोरंजन और युद्ध के साथ कई तरह के शैलचित्र देखने मिल जाएंगे. खास बात ये है कि इस इलाके में मानव द्वारा पत्थरों से तैयार करें कई उपकरण जगह-जगह बिखरे पड़े हैं. जिसे मानव ने कहीं और से लाकर उपकरण तैयार किए थे. क्योंकि इस तरह की पत्थर इस पूरे इलाके में नहीं पाए जाते हैं.

सागर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डॉ मशकूर अहमद क़ादरी बताते हैं कि आबचंद की गुफाएं गधेरी नदी के किनारे लाल बलूआ पत्थरो में आदिमानव के आवास का पुराना केंद्र है. उसे समय शिलालेख तो नहीं होते थे. इसलिए अपनी आने वाली पीढ़ी को वह अपनी इस संस्कृति के बारे में प्रशिक्षित कर सकें. इसलिए वह इन चित्रों को कंद्राओ के आसपास बनाते थे. ताकि वह अपनी बात का संप्रेषण आसानी से दूसरों तक कर पाए. हर एक चित्र के माध्यम से कोई ना कोई संदेश देने की कोशिश की गई है. जैसे वहां पर पशुपालन के चित्र हैं तो पशुपालन कैसे करना है. शिकार के दृश्य हैं तो इनमें बताया गया कि शिकार कैसे किया जाता है. घुड़सवार अपने हाथों में शस्त्र लिए हुए हैं तो चलाना कैसे है कुछ मनोरंजन की गतिविधियां जैसे नृत्य मृदंग वादन भी प्रतीत होती हैं.

डॉ मशकूर अहमद क़ादरी के अनुसार आब चंद की गुफाओं में अलग-अलग कालों के शैल चित्र देखने मिल जाएंगे. सबसे प्राचीन शैल चित्र लगभग उच्च पुरा पाषाण काल के, मध्य पाषाण काल के शैल चित्र के साथ-साथ वो उपकरण भी मौजूद हैं, जो पाषाण निर्मित हैं. ऐतिहासिक काल के चित्रों की विशेषता ये है कि इनमें घुड़सवार और हाथी के साथ मानव मिलते हैं.

उन्होंने बताया कि पहले रंग वगैरा तो होती नहीं थे ऐसे में मानव पलाश के फूल चूना पत्थर जैसी चीजों को कूट पीसकर इस्तेमाल करते थे सेंड स्टोन पर बनाने की वजह से इनकी अमिट छाप आज भी बरकरार है. लेकिन अब इनके संरक्षण और संवर्धन की भी जरूरत आन पड़ी है.

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