(अमित जायसवाल), खंडवा. देश के 12 ज्योतिर्लिंग में से चौथे स्थान पर आने वाले ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में प्राचीन परंपरा का निर्वहन होता है. भगवान ओंकारेश्वर भक्तों से मिलने और उन्हें दर्शन देने के लिए मालवा भ्रमण पर जाते हैं. इस दौरान उनके साथ सवा मन सुकड़ी का भोग रहता है. 15 दिन इसी में से उन्हें भोग लगता है. यानी, भगवान महादेव बाहर का कुछ भी नहीं खाते. इस अवधि में पार्वती और नंदी उनके साथ मूर्ति रूप में नहीं रहते. यानी भ्रमण के दौरान उनके साथ माता पार्वती और नदी नहीं होते. हाल ही में महादेव मालवा भ्रमण से लौटे हैं. उनके यहां वापस आते ही उत्सव शुरू हो गया. मंदिर संस्थान के सेवादार ये उत्सव मना रहे हैं.
गौरतलब है कि भगवान ओंकारेश्वर कार्तिक माह की गोपाष्टमी को मालवा भ्रमण पर निकलते हैं. इस दौरान उन्हें भक्त दोपहर का भोग नहीं चढ़ा सकते. इसके अलावा उनकी शयन आरती भी बंद रहती है. भ्रमण के बाद महादेव जब लौटते हैं तो भैरवअष्टमी से उन्हें बाहर का भोग लगाया जाता है. इस बार जब भगवान् ओंकारेश्वर भ्रमण से लौटे तो मंदिर संस्थान के प्रमुख सेवादारों के मार्गदर्शन में उन्हें 251 किलो मिठाई का छप्पन भोग खिलाया गया. उसके बाद इस प्रसाद को सभी श्रद्धालुओं में बांट दिया गया.
यह है मालवा भ्रमण की मान्यता
भगवान के मालवा भ्रमण को लेकर मान्यता है कि पुराने समय में लोगों का ओंकारेश्वर मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं होता था. साथ ही यहां के सेवादार मंदिर ट्रस्ट की अन्य जिलों में स्थित संपत्तियों और कृषि भूमि की देखरेख करने जाते थे. ऐसे में स्वयं भगवान यहां से मालवा भ्रमण के लिए निकलते थे और भक्तों को दर्शन देते थे. इसी परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है.
कर्मचारी मिलकर आयोजित करते हैं कार्यक्रम
खास बात ये है कि यह धार्मिक कार्यक्रम मंदिर के सभी कर्मचारी आपस में मिलकर आयोजित करते हैं. मंदिर प्रबंधन इस आयोजन में से शामिल होता है लेकिन आयोजन की पूरी जिम्मेदारी यहां के कर्मचारी निभाते हैं.
ओंकारेश्वर में ही रात्रि विश्राम करते हैं शिव-पार्वती
ओंकारेश्वर मंदिर में श्याम कालीन आरती के पुजारी पंडित दंतेश्वर दीक्षित कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती रात्रि में ओंकारेश्वर में ही रात्रि विश्राम करते हैं. वे रात्रि में यहां चौसर खेलने के साथ ही झूला भी झूलते हैं. उनके लिए यहां चौसर-पासे , झूला, पालना सजाया जाता है. लेकिन, कार्तिक माह की गोपाष्टमी से ये बंद कर दिया जाता है. फिर, 15 दिन बाद भैरव अष्टमी पर जब भगवान वापस आते हैं तो उत्सव मनता है और फिर परंपरा शुरू हो जाती है.
सूक्ष्म रूम में यहीं रहते हैं महादेव
15 दिनों के लिए भगवान यहां से स्थूल (शरीर) के रूप में मालवा भ्रमण पर जाते हैं. लेकिन, सूक्ष्म यानी आत्मा उनकी यहां रहती है. पार्वती और नंदी भी स्थूल रूप में रहते हैं. ऐसे में भगवान की पालकी के साथ सवा मन (50 किलो) सुकड़ी का भोग साथ में भेजा जाता है. आटे को घी में डालकर उसमें शकर डालकर सूखा प्रसाद बनाया जाता है, जिसे सुकड़ी प्रसादी कहा जाता है. 15 दिन तक इसी में से भोग लगाया जाता है। वहीं मंदिर में भगवान के सूक्ष्म रूप के समक्ष स्वल्पाहार यानी ड्रायफ्रूट या मिठाई का भोग लगाया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : December 7, 2023, 13:55 IST