Periods Taboo Girls Menstruation: दिल्ली दरियागंज में हमारा घर है. वहीं पास में एक को-एड स्कूल में मैं 7वीं कक्षा में पढ़ती थी. मेरी छोटी बहन भी उसी स्कूल में 5 वीं में पढ़ती थी. हम दोनों हमेशा की तरह रोजाना स्कूल जाते, प्रेयर करते, पढ़ते और घर आ जाते. सब कुछ नॉर्मल ही चल रहा था कि एक दिन प्रेयर के लिए हम सब बच्चे खड़े थे. तभी अचानक मेरे पेट में अजीब दर्द सा उठा. हालांकि वह इतना तेज नहीं था कि मैं बहुत ज्यादा परेशान होती या वहां मौजूद मैम को बताती. इसलिए मैं चुपचाप खड़ी रही और प्रेयर करती रही.
5 मिनट ही हुए होंगे कि मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे पैर भीग गए हैं. बिल्कुल ऐसे जैसे कोई बच्चा खड़ा-खड़ा टॉयलेट कर जाए. मैंने देखा तो मेरी सफेद स्कर्ट और मोजे लाल रंग के हो गए थे. ये ब्लड था. ये सब देख के मुझे समझ ही नहीं आया कि हो क्या रहा है, मैं घबरा रही थी और प्रेयर करना छोड़कर पास में खड़ी मैम को हिम्मत जुटाकर आवाज लगाई. मेरे आवाज लगाने के बाद आसपास के बच्चों ने आंखें खोलकर देखना शुरू कर दिया..
जैसे ही मैम मेरे पास आईं, उन्होंने देखा तो वो भी थोड़ा परेशान हो गईं लेकिन मुझसे बोलीं कि घबराओ नहीं और उन्होंने 2 और मैम को अपने पास बुलाया. 3 मैम ने मुझे आसपास से घेर रखा था लेकिन इतनी हलचल में प्रेयर में मौजूद बच्चे भी आपस में बातें करने लगे, झांकने लगे और पूछने लगे मैम क्या हुआ है?
मेरी नजरें बस जमीन पर थीं और जमीन पर मुझे ब्लड की कुछ बूंदें दिखाई दे रही थीं, उन्हें देखकर मैं बस रो रही थी. धीरे-धीरे मैम मुझे वॉशरूम की तरफ ले गईं. वहां उन्होंने पहले मुझसे पूछा कि मैं ठीक हूं? क्या मुझे पीरियड आया है? मैंने रोते हुए बताया कि मुझे नहीं पता ये सब कैसे हुआ है, तब तक मुझे पीरियड्स के बारे में भी नहीं पता था. मैम ने मुझे पैड्स दिए और लगाने को कहा. मैंने पैड लगा लिया लेकिन मैं रो रही थी कि आखिर ये हुआ क्या, मुझे तो किसी ने मारा नहीं ये खून कहां से आया? मैं डर के मारे कांप रही थी, तभी मुझे स्कूल से घर छोड़ने की बात कही गई.
स्कर्ट खराब हो चुकी थी, किसी तरह मैम के एक दुपट्टे से ढककर मैं जब स्कूल से घर जा रही थी तो वहां प्रेयर से क्लासेज में जाने के लिए बहुत सारे बच्चे खड़े थे. सब मुझे घूर रहे थे.
घर पहुंचकर मैं मम्मी से लिपटकर खूब रोई और मैंने कहा कि मैंने कुछ नहीं किया, ये सब कैसे हुआ. मम्मी ने मुझे खूब समझाया और बताया कि यह कोई बड़ी बात नहीं है, ऐसा सब लड़कियों को होता है लेकिन मैं इतना डर गई थी कि मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था और मैं अगले 5 दिन तक स्कूल नहीं गई.
जब मुझे पता चला कि यह हर महीने होने वाला है तो मैं पीरियड्स आने पर डर के चलते तब तक स्कूल नहीं जाती थी जब तक कि ब्लीडिंग पूरी तरह बंद न हो जाए. इस तरह स्कूल में और घर पर लाख समझाने के बाद भी मैं करीब दो साल तक हर महीने 4-5 दिन तक स्कूल नहीं जाती थी, यहां तक कि मैं एक बार पेपर देने भी नहीं गई और वह पेपर मैंने बाद में दिया.
लेकिन करीब दो साल के बाद जब मेरी छोटी बहन को पीरियड्स हुए और उसने मुझे समझाना शुरू किया, पीरियड्स में स्कूल जाकर, गेम खेलकर और डांस करके मुझे दिखाने लगी तो मुझे कुछ हिम्मत आई. वो एक बार सच्ची सहेली की रैली में गई, वहां उसने जो-जो सुना मुझे सब बताया और आज मैं 10वीं कक्षा में आ चुकी हूं और कभी पीरियड्स में स्कूल की छुट्टी नहीं करती.
(ये कहानी पीरियड्स के टैबू को दूर करने के लिए जागरुक कर रहीं गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सुरभि सिंह के नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन सच्ची सहेली के कार्यक्रम में शामिल हुई एक बच्ची की कहानी है.. )
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FIRST PUBLISHED : February 6, 2024, 08:27 IST