
भाजपा
और
आप
ने
विधानसभा
चुनाव
की
तरह
किया
प्रचार
भाजपा,
आप
और
कांग्रेस
तो
मैदान
में
हैं
ही
बसपा,
सपा,
रालोद
जदयू,
एआइएमआइम,
एनसीपी,
सीपीएम,
सीपीआइ
जैसे
दल
भी
अपनी
किस्मत
आजमा
रहे
हैं।
इसलिए
इस
बार
दिल्ली
में
पार्षद
के
टिकट
के
लिए
विधानसभा
चुनाव
से
अधिक
मारामारी
रही।
चुनाव
जीतने
के
ख्याल
से
आप,
भाजपा
और
कांग्रेस
ने
विधायकों,
पूर्व
विधायकों
के
रिश्तेदारों
को
टिकट
दिये
हैं।
भाजपा
पिछले
तीन
बार
से
दिल्ली
नगर
निगम
का
चुनाव
जीत
रही
है।
लेकिन
इस
बार
उसके
सामने
कठिन
चुनौती
थी।
इसलिए
भाजपा
ने
सात
राज्यों
के
अपने
मुख्यमंत्रियों
को
यहां
चुनाव
प्रचार
में
उतारा
था।
केन्द्रीय
मंत्रियों
ने
भी
भाजपा
प्रत्याशियों
के
लिए
वोट
मांगे
थे।
इतनी
चुनावी
गहमागहमी
पहले
कभी
नहीं
रही।
भाजपा
और
आप
ने
सभी
250
वार्डों
के
लिए
उम्मीदवार
उतारे
हैं।
कांग्रेस
ने
247
उम्मीदवार
दिये
हैं।
बसपा
132
वार्डों
में
चुनाव
लड़
रही
है।
एआइएमआइएम
और
चंद्रशेखर
रावण
की
पार्टी
में
गठबंधन
है।
ओवैसी
की
पार्टी
15
सीटों
पर
चुनौती
पेश
कर
रही
है।

शीला
दीक्षित,
केजरीवाल
नहीं
रोक
पाये
थे
भाजपा
की
राह
दिल्ली
नगर
निगम
की
राजनीति
में
भाजपा
एक
बड़ी
ताकत
के
रूप
में
स्थापित
है।
इसका
वोटिंग
पैटर्न
लोकसभा
या
विधानसभा
चुनाव
से
बिल्कुल
अलग
है।
2007
और
2012
में
कांग्रेस,
केन्द्र
और
दिल्ली
राज्य
में
सत्तारूढ़
थी।
इसके
बाद
भी
भाजपा
नगर
निगम
चुनाव
जीत
गयी
थी।
शीला
दीक्षित
की
सरकार
या
मनमोहन
सिंह
की
सरकार
नगर
निगम
चुनाव
में
भाजपा
की
राह
नहीं
रोक
पायी
थी।
दिल्ली
विधानसभा
चुनाव
में
करिशमा
करने
वाले
अरविंद
केजरीवाल
भी
2017
में
भाजपा
को
नहीं
हरा
पाये
थे।
2022
में
अरविंद
केजरीवाल
ने
दिल्ली
नगर
निगम
चुनाव
जीतने
के
लिए
पूरा
जोर
लगा
रखा
है।
उन्होंने
वार्डों
में
साफ-सफाई
और
भ्रष्टाचार
के
मुद्दे
पर
वोट
मांगा
है।
उन्होंने
कूड़े
के
ढेर
के
आधार
पर
भाजपा
की
छवि
बिगाड़ने
की
कोशिश
की।
दूसरी
तरफ
भाजपा
ने
सत्येन्द्र
जैन
और
टिकट
बेचने
के
मामले
को
उछाल
कर
आप
को
घेरने
की
कोशिश
की।
कांग्रेस
नगर
निगाम
चुनाव
के
जरिये
दिल्ली
की
राजनीति
में
पुनर्स्थापित
होना
चाहती
है।
अब
फैसला
जनता
को
करना
है।
रविवार
को
दिल्ली
के
मतदाता
राजनीतिक
दलों
के
भाग्य
का
फैसला
कर
देंगे
जिसके
नतीजे
7
दिसम्बर
को
घोषित
होंगे।

भाजपा
पर
जीत
बरकरार
रखने
की
चुनौती
पिछले
चुनाव
में
272
वार्डों
में
चुनाव
हुआ
था।
परिसीमन
के
बाद
22
वार्ड
कम
हो
गये
इसलिए
250
वार्डों
में
चुनाव
हो
रहे
हैं।
पिछली
बार
भी
भाजपा,
आप
और
कांग्रेस
के
अलावा
18
दलों
ने
चुनाव
लड़ा
था।
लेकिन
तब
अन्य
दलों
के
केवल
11
वार्ड
पार्षद
ही
चुने
गये
थे।
भाजपा
की
बंपर
जीत
हुई
थी।
उसे
181
वार्डों
में
जीत
मिली
थी।
आप
के
खाते
में
48
और
कांग्रेस
के
खाते
में
30
जीत
दर्ज
हुई
थी।
2017
के
चुनाव
के
समय
दिल्ली
में
अरविंद
केजरीवाल
की
सरकार
थी।
लेकिन
मतदाताओं
ने
नगर
निगम
के
चुनाव
में
आप
की
बजाय
भाजपा
को
पसंद
किया।
राज्य
में
सत्तारूढ़
रहने
के
बाद
भी
आप,
भाजपा
को
बिल्कुल
टक्कर
नहीं
दे
पायी।
वह
बहुत
बड़े
अंतर
से
दूसरे
स्थान
पर
फिसल
गयी
थी।
2012
के
नगर
निगम
चुनाव
में
भाजपा
और
कांग्रेस
के
मुकाबला
हुआ
था।
उस
समय
आम
आदमी
पार्टी
का
गठन
नहीं
हुआ
था।
2012
के
चुनाव
में
भाजपा
को
138
तो
कांग्रेस
को
77
सीटें
मिलीं
थीं।
बसपा
को
15
वार्डों
में
जीत
मिली
थी।
यानी
दस
साल
पहले
स्थानीय
चुनाव
में
बसपा
तीसरी
बड़ी
ताकत
थी।
इस
चुनाव
में
सपा
को
2,
लोजपा
और
जदयू
को
एक-एक
सीट
मिली
थी।
2022
में
भाजपा
चौथी
जीत
हासिल
करने
के
लिए
मैदान
में
है।