Matrubhoomi | शिवाजी महाराज को क्यों कहा जाता है फादर आफ नेवी | Shivaji’s Navy

ये एक साल पहले की बात है जब भारतीय नौसेना को अपने पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत के साथ ही नया निशान मिला। नौसेना का निशान दरअसल, नेवी का वह झंडा है जो नेवी के सभी युद्धपोतों में, ग्राउंड स्टेशन और नेवल के साथ ही एयरबेस पर लगाया जाता है। प्रधानमंत्री निशान नरेंद्र मोदी ने 2 सितंबर 2022 को नौसेना के नए निशान का अनावरण किया।  भारतीय नौसेना को नया एन्साइन (निशान) दिया गया जो कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मुहर से लिया गया। शिवाजी महाराज को भारतीय नौसेना का जनक भी कहा जाता है। शक्तिशाली चोलों के बाद शिवाजी का नौसैनिक बेड़ा बहुत ही पावरफुल माना जाता था। ऐसे में आइए जानते हैं कि छत्रपति शिवाजी को राष्ट्रीय नौसेना का निर्माता क्यों कहा जाता हैं? वो भारतीय नौसेना के जनक कैसे हैं, जबकि हम जानते हैं कि चोलों के पास बड़ी नौसेना थी?

27 साल की उम्र में ही कर दी थी शुरू नौसेना गतिविधियां

शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को पुणे के पास स्थित शिवनेरी के दुर्ग में हुआ था। जब उनका जन्म हुआ तो मुगल साम्राज्य अपने शिखर पर था। औरंगजेब के शासनकाल में मुगलों ने अपने साम्राज्य का अच्छा खासा विस्तार किया। दक्कन में चार बड़ी रियासतें थी। पहली बीजापुर की आदिलशाही की सल्तनत, दूसरा अहमदनगर की निजामशाही, तीसरी कोलकोंडा की कुतुबशाही और चौथी माराठा साम्राज्य। शिवाजी महाराज ने अपने राजनीतिक और सैन्य कैरियर की शुरुआत बहुत ही छोटी आयु में ही कर दी थी। 27-28 साल की उम्र में ही शिवाजी ने अपनी नौसेना गतिविधि शुरू कर दी। अफजल खान बीजापुर की आदिल शाही हुकूमत का सबसे लड़ाका था। अफजल खान युद्ध से पहले छल से शिवाजी महाराज की हत्या करना चाहता था। उसने शिवाजी महाराज को प्रतापगढ़ के पास मिलने का संदेश भेजा। शिवाजी महाराज और अफजल खान की मुलाकात प्रतापगढ़ के पास शामियाने में हुई थी। अफजल खान जैसे ही शिवाजी महाराज से गले मिला उसने हाथ में बंधा चाकू शिवाजी की पीठ में घोपने की कोशिश की। शिवाजी ने सतर्कता बरती और अफजल खान का पेट बाघनख (बाघ के नाखून से बना हथियार) से चीर दिया। मुगल भी इसके बाद शिवाजी को एक बड़े खतरे के रूप में देखने लगे। औरंगजेब को शुरू से ही शिवाजी अपनी सल्तनत के लिए खतरा लगते थे। 

1657 में औरंगजेब ने मराठा विद्रोह को कुचलने का फरमान दिया था। 

शिवाजी ने अपनी नौसेना गतिविधिया उसी वक्त उत्तरी मुंबई के ठाणे और भिंवडी इलाके से शुरू की थी। शिवाजी ने कोंकण कोस्ट के इन दो इलाके पर कब्जा किया। जिसके साथ ही उन्होंने अपने नौसेना के बेड़े का निर्माण शुरू किया। उन्होंने शुरू में जहाज़ बनाने के उद्देश्य से पुर्तगालियों को काम पर रखा था। लेकिन उन्होंने स्थानीय मछुआरों और जनजातियों को शामिल किया और एक शक्तिशाली स्वदेशी नौसेना बनाने में सक्षम हुए। पुर्तगाली, ब्रिटिश और समुद्री लुटेरों से सुरक्षा के लिए नौसेना को मजबूत किया गया था। बताया जाता है कि शिवाजी की नौसेना में 500 से जहाज शामिल थे। 

स्वराज्य और नौसेना का महत्व

विदेशी आक्रांताओं से आजादी की दृष्टि से फोर्स बनाने का काम शुरू किया गया। उन्होंने कोकण तट पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया और 4 मई के अपने नए विचार के साथ स्वाभाविक रूप से नौसेना के बारे में सोचा जब उनका विस्तारित साम्राज्य समुद्र की सीमा से लगी शक्ति के संपर्क में आया। नौसेना को प्रोत्साहन आर्थिक के बजाय राजनीतिक था। शुरुआत में कोकण तट अंग्रेजी, पुर्तगाली और डचों से प्रभावित था। इन विदेशी शत्रुओं को रोकने और उन्हें अपनी मातृभूमि से उखाड़ फेंकने के लिए नौसेना आवश्यक थी। मराठा नौसेना के गठन का यही प्रत्यक्ष कारण था। 

जहाजों का निर्माण और संगठन

कल्याण शहर महाराज के हाथों में आ जाने के बाद भिवंडी ने भी उनका अनुसरण किया। ठाणे जिले के कुछ हिस्सों के साथ कल्याण उप-मंडल उनके प्रभाव में आ गया। 1657 के तुरंत बाद और 1659 के बीच शिवाजी महाराज ने कल्याण की खाड़ी में अपना पहला जहाज़ उतारा और यह मराठा नौसेना की प्रारंभिक शुरुआत थी। शुरुआत में महाराज ने अपने युद्धपोतों के निर्माण के लिए यूरोपीय तकनीक की मदद ली, ये निशान वसई के पुर्तगाली कैप्टन के 9 जून 1659 के एक पत्र में पाए जा सकते हैं। 

500 जहाजों से उड़ा दी दुश्मनों की नींद

जहाजों का निर्माण भिवंडी, कल्याण और गोवा में होता था। जहाजों की मरम्मत के लिए भी समुद्री ठिकाने बनाए गए थे। समुद्र तट पर भी शिवाजी ने जंजीरा के सिद्धियों से युद्ध किया था। शिवाजी ने दक्कन में बंदरगाहों पर कब्जा किया और फिर विदेशियों से व्यापार भी शुरू किया। मराठा से पहले चोलों ने भी नौसेना बनाई थी। शिवाजी महाराज ने 20 युद्धपोत बनवाए थे। इसके अलावा शिवाजी के पास कुल 500 जहाज थे। उनकी दो टुकड़ियों में कम से कम 200-200 जहाज हुआ करते थे। कान्होजी आंग्रे मराठा नौसेना के कमांडर थे। कान्होजी को एक मजबूत नौसैनिक नींव रखने का श्रेय दिया जाता है। जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मराठों को समुद्र में आगे बढ़ने की शक्ति थी। पहला मराठा जहाज 1654 में बनकर तैयार हुआ था। इसके बाद ये सिलसिला आगे बढ़ता गया।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *