Matrubhoomi | राम मंदिर की ये कहानी जो किसी को नहीं पता | Ram Mandir ka Asli Sach

अयोध्या ने केवल राजा ही नहीं बनाए हैं बल्कि राजाओं के राजा यानी राजेश्वर भी बनाए हैं। अयोध्या का अर्थ जिससे कोई युद्ध नहीं कर सकता। अगर युद्ध कर भी ले तो हराया नहीं जा सकता। जिसको हराना नामुमकिन है उसी का नाम अयोध्या है। अयोध्या नगरी की बनावट ऐसी थी कि उससे युद्ध करना नामुमकिन था। अगर कर भी ले तो विजय प्राप्त करना एकदम असंभव था। पूरी दुनिया के ऊपर राज करने वाले प्रथम दो चक्रवर्ती भरत चक्रवर्ती और सगर चक्रवर्ती दोनों की राजधानी अयोध्या ही थी। आपको जानकर ये आश्चर्य होगा कि हमारे भारत का नाम भी इसी भरत चक्रवर्ती के नाम पर पड़ा और प्रसिद्ध हुआ। 

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की कहानी से आज बच्चा-बच्चा वाकिफ है। बचपन में या फिर लॉकडाउन में आपने रामायण तो जरूर देखी होगी। रामायण में हमें देखने को मिलता है कि भगवान राम जल समाधि के बाद गरुड़ पर सवार होकर बैकुंठ के लिए निकल जाते हैं। लेकिन इसके बाद अयोध्या और अयोध्या वासियों का क्या हुआ? ये किसी को पता हो या न हो लेकिन ये जरूर पता है कि अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो चुका है। जिसका उद्घाटन 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। अयोध्या में बने इस राम मंदिर की कहानी कहीं न कहीं भगवान राम के बैकुंठ जाने के बाद से शुरू हो जाती है। जी हां, सही सुना आपने। जब इनके पुत्र कुश के द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण करवाया जाता है। अयोध्या में राम लला के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां जोरों पर हैं जिसमें सभी दिग्गज नेता के साथ फिल्म इंडस्ट्री के कलाकार भी शामिल होंगे। आज हम आपको अयोध्या के इतिहास और राम मंदिर की कहानी बताएंगे। इस कहानी में कब-कब क्या क्या हुआ? 

अयोध्या का इतिहास 

उत्तर प्रदेश का एक पवित्र शहर अयोध्या, भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में अत्यधिक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख होने के कारण, अयोध्या हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया है। शहर की सांस्कृतिक पहचान इसके इतिहास और धार्मिक महत्व के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयोध्या प्राचीन कोसल साम्राज्य की राजधानी और भगवान राम का जन्मस्थान था। राजा दशरथ द्वारा शासित इस शहर को एक समृद्ध और सामंजस्यपूर्ण राज्य के रूप में वर्णित किया गया था। इक्ष्वाकु, पृथु, मांधाता, हरिश्चंद्र, सगर, भगीरथ, रघु, दिलीप, दशरथ और राम उन प्रसिद्ध शासकों में से थे जिन्होंने कोसलदेश की राजधानी पर शासन किया था। बौद्ध काल के दौरान, लगभग छठी-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व, श्रावस्ती राज्य की राजधानी बन गई। कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि अयोध्या साकेत के समान है, जहां कहा जाता है कि बुद्ध कुछ समय के लिए रहे थे। सदियों से, मौर्य और गुप्त राजवंशों के दौरान अयोध्या बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन गया, जहां बौद्ध मठों और स्तूपों का निर्माण हुआ। 

कुश ने बनवाया था पहला मंदिर 

भगवान राम के बैकुंठ जाने के बाद इनकी 44 पीढ़ियों ने अयोध्या पर राज किया। जब भगवान राम के पुत्र कुश अयोध्या के राजा थे तो इन्होंने भगवान राम की जन्मस्थली पर एक जन्मभूमि मंदिर के साथ-साथ कई छोटे मंदिर बनवाएं। समय के साथ साथ इन मंदिरों की हालात जर्जर होती चली गई। जिन्होंने 57वीं ईसा पूर्व के आस पास उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने रिनुएट करवाया। लेकिन 1526 में बाबर के भारत आने के बाद मुगल शासन की शुरुआत होती है। 1528 से 1529 में बाबर अयोध्या जाता है तो अपने सेनापति मीर बांकी से मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवाने का आदेश दे देता है। अपने मालिक की बात मानते हुए मीर बांकी मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवा देता है और हिंदुओं के अंदर आने पर रोक लगा देता है। फिर 190 साल बाद 1717 में आमेर के राजा जयसिंह द्वितीय मस्जिद के बाहर एक जमीन देखकर चबूतरा बनवाते हैं। जहां राम लला की मूर्ति को स्थापित किया जाता है। मस्जिद के अंदर मुस्लिम नमाज करते थे। जबकि बाहर चबूतरे पर हिंदू भगवान राम की पूजा किया करते थे। ऐसा कई सालों तक चलता रहा। 

चीनी भिक्षुओं ने भी की थी अयोध्या की चर्चा 

कहते हैं कि 300 ईस्वी में भारत यात्रा पर आए भिक्षु फा हियान ने देखा कि यहां कई मंदिर है। यहां पर बौद्ध मठों का रिकॉर्ड रखा गया है। इसके बाद यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। यहां हिंदुओँ का एक प्रमुख भव्य मंदिर भी था। जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे। 

निर्मोही अखाड़ा पहुंचा कोर्ट 

फिर 1853 में भारत के 14 अखाड़ों में से एक निर्मोही अखाड़ा ने दावा किया कि इस मस्जिद के जगह पर मंदिर था जिसे बाबर के समय तोड़कर मस्जिद बनाया गया। अब हम यहां पर राम मंदिर बनाएंगे। मुसलमानों की तरफ से इसका विरोध किया जाता है। फिर यही से दोनों धर्मों के बीच लड़ाई शुरू हो जाती है। कई जगहों पर दंगे होते हैं। इन दंगों को रोकने के लिए 1859 में चबूतरा और मस्जिद के बीच में एक फैसिंग करवा देती है। जिससे ये मामला कुछ सालों के लिए तो सुलझ जाता है। 1885 में निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवर दास फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में राम चबूतरे के ऊपर छतरी बनाने की अपील करते हैं। लेकिन उनकी अपील को खारिज कर दिया जाता है। अपील खारिज होने के बाद हिंदू धर्म के लोगों में रोष की स्थिति पैदा हो जाती है। बाद में मस्जिद की दीवार और नुकेले फैसिंग को भी नुकसान पहुंचाया जाता है। ब्रिटिश सरकार हालांकि बाद में इस दीवार को फिर से बनवा देती है और साथ ही ये नियम भी बनाती है कि मस्जिद को केवल जुमे की नमाज के लिए ही खोला जाएगा। फिर भारत देश के आजाद होने तक यही व्यवस्था चलती रही। 

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