Main Atal Hoon Review: अभ‍िनय ‘अटल’, भाषण शानदार… फ‍िर भी कमाल नहीं कर पाई ये बायोप‍िक

Main Atal Hoon Review In Hindi: भारत जैसे लोकतंत्र में इस तंत्र को जीवित रखने का काम सालों से हो रहा है. व‍िपक्ष से पक्ष में पहुंचने की कोशिश और मेहनत के बीच हर राजनीतिक पार्टी का अपना इतिहास रहा है. लेकिन कुछ राजनेता ऐसे रहे हैं, जो चाहे पक्ष में रहे हो या व‍िपक्ष में, उनका व्‍यक्‍त‍ित्‍व हमेशा ही लोगों को लुभाता रहा है. ऐसे ही राजनेता थे देश के 10वें प्रधानमंत्री अटल ब‍िहारी वाजपेयी, ज‍िन्‍हें लोगों ने भरपूर प्‍यार क‍िया. वो एक कवि थे, एक पत्रकार थे, राजनेता, एक व‍िचारक और उनके व्‍यक्‍त‍ित्व के इन्‍हीं सारे ह‍िस्‍सों को द‍िखाती है उनकी बायोप‍िक फिल्‍म ‘मैं अटल हूं’. इस फिल्‍म में अटल ब‍िहारी वाजपेयी का क‍िरदार न‍िभाया है एक्‍टर पंकज त्र‍िपाठी ने.

कहानी: ‘मैं अटल हूं’ की कहानी अटल ब‍िहारी वाजपेयी के बचपन से शुरू होती है, जब वो अपने स्‍कूल की एक सभा में भी कविता सुनाने से डर जाते हैं. वो अपने प‍िता से कहते हैं, ‘लोग कैसे घूर रहे थे’. तब उनके प‍िता कहते हैं कि कोई घूरे तो उनकी आंखों में और जोर से घूरो और अपनी बात कहो. यहीं से शुरू होती है अटल जी के एक बेहतरीन वक्‍ता बनने की कहानी. उनके लॉ कॉलेज के द‍िन, उस बीच राजकुमारी जी से उनका लगाव, फिर संघ से जुड़ना, राजनीति में आना और प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के पूरे सफर को इस कहानी में द‍िखाया गया है.

‘मैं अटल हूं’ एक डॉक्‍यूमेंट्री टाइप बायोप‍िक है, ज‍िसमें शुरू से लेकर अंत तक अटल ब‍िहारी वाजपेयी के अच्‍छे पक्षों को ही उजागर क‍िया गया है. फिल्‍म की सबसे बड़ी ताकत है, अटल जी के भाषण, ज‍िन्‍हें पंकज त्र‍िपाठी ने पूरी श‍िद्दत से पर्दे पर उतारा है. कई बार तो पंकज हू-ब-हू अटल जी के अंदाज में नजर आते हैं. अटल ब‍िहारी वाजपेयी के स्‍वभाव की स्‍थ‍िरता को पंकज ने बखूबी दर्शया है. हालांकि अटल जी के युवा अवतार में पंकज त्र‍िपाठी की उम्र थोड़ी झलकती है. पर अभ‍िनय के मामले में पंकज त्र‍िपाठी ने इस क‍िरदार के साथ पूरा न्‍याय क‍िया है. दीनदयाल उपाध्‍याय के क‍िरदार में दयाशंकर म‍िश्रा ने बढ़‍िया काम क‍िया है. वहीं फिल्‍म में सुषमा स्‍वराज, अरुण जेटली, प्रमोद महाजन और आडवाणी जी का क‍िरदार न‍िभाने वाले कलाकार भी खूब जचे हैं.

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फ‍िल्‍म के पोस्‍टर में अटल ब‍िहारी वाजपेयी बने पंकज त्र‍िपाठी.

फिल्‍म का कमजोर पक्ष है, इसका एक सुर में होना. ये फिल्‍म अटल जी के साथ-साथ राष्‍ट्रीय स्‍वंय सेवक संघ, बीजेपी के बनने जैसी घटनाओं को भी द‍िखाती है. लेकिन सब कुछ एक सुर में सीधा-सीधा और अच्‍छा-अच्‍छा है. कहानी में कुछ जगह पर देश की पूर्व प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी को नेगेट‍िव शेड में द‍िखाया गया है, लेकिन उसके अलावा कहानी में राजनीतिक पार्ट‍ियों में होने वाली राजनीतियों का कोई ज‍िक्र नहीं है. दरअलस कहानी में अटल जी के 4 दशक के राजनीतिक करियर से पहले उनकी कॉलेज लाइफ जैसी चीजें तक द‍िखाई गई है. और इतनी चीजें छूने के चलते कुछ भी ऐसा नहीं है जो बहुत गहरे तक असर कर पाए.

न‍िर्देशक रवि जाधव इससे पहले कई बेहतरीन फिल्‍में बना चुके हैं. लेकिन इस बायोपिक को हेंडल करने में उनसे थोड़ी चूक हुई है. फिल्‍म का फर्स्‍ट हाफ काफी धीमा है और उनका रुचिकर भी नहीं है. लेकिन सेकंड हाफी में कहानी में रफ्तार है. ये फिल्‍म के ठीक-ठाक फिल्‍म है जो अटल जी के कई पहलूयों को द‍िखाती है. पर इसे एक बेहतरीन फिल्‍म बनने में थोड़ी कसर रह गई है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Atal Bihari Vajpayee, Pankaj Tripathi

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